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हजारों बच्चे जिस बीमारी से हुए मौत का शिकार, उसे उत्तर प्रदेश में लगभग कर दिया समाप्त

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 15, 2023, 9:54 PM IST

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जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) को उत्तर प्रदेश से लगभग समाप्त कर दिया गया है. यही कारण है कि इस रोग से इस साल एक भी बच्चे की मौत पूर्वांचल में नहीं हुई है.

जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त. देखें खबर

लखनऊ : जापानी इंसेफेलाइटिस नाम का रोग पूर्वांचल के लगभग 10 जिलों में 2017 से पहले खतरनाक स्थिति में था. लाखों बच्चों की मौत इस रोग से हो जाती थी. वर्ष 2017 में गोरखपुर के अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी की वजह से बच्चों की मौत हुई थी. इस घटना के बाद सरकार ने इस पर गंभीरता से काम शुरू किया तो आज की तारीख में इस रोग से इस साल एक भी बच्चे की मौत पूर्वांचल में नहीं हुई है. सरकार की यह कामयाबी अभूतपूर्व है. इस रोग के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में हजारों परिवारों में हर साल शोक पसर जाता था.

जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त. फाइल फोटो
जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त. फाइल फोटो

जापानी इंसेफेलाइटिस को पूर्वांचल की भाषा में दिमागी बुखार भी कहा जाता है. जुलाई अगस्त औऱ सितंबर माह में जब बारिश का दौर होता है. तब तब इस रोग के वायरस बिहार से लेकर पूर्वांचल के 10 जिलों में बहुत सक्रिय हो जाते हैं. खासतौर पर हवा, गंदगी और अशुद्ध जल के माध्यम से इस रोग का प्रसार होता था. बिहार से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश तक के बच्चे मुख्य तौर पर गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए ले जाते रहे हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब गोरखपुर से सांसद थे तब से ही वे इस रोग को लेकर बहुत संवेदनशील थे. उस समय अस्पतालों में संसाधन जुटाने को लेकर वे जब तब संसद में सवाल उठाते रहे हैं.

जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त.
जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त.
जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त. फाइल फोटो
जापानी इंसेफेलाइटिस (दिमागी बुखार) यूपी में समाप्त. फाइल फोटो



एक घटना ने बदल दिया परिदृश्य : वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ सरकार का पहला साल था. उसे साल अगस्त में दिमागी बुखार से पीड़ित सैकड़ों बच्चे बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में भर्ती थे. अचानक अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी हो गई. जिससे कुछ बच्चों की मृत्यु हो गई. इस पूरे मामले पर बड़ा राजनीतिक विवाद हो गया था. विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया था. तब डॉक्टर कफील जो कि उसे दिन मेडिकल कॉलेज में तैनात थे. उनके खिलाफ सरकार ने कार्रवाई की थी. वे लंबे समय तक जेल में भी रहे थे. इस पूरे विवाद में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह नेएक विवादित बयान दे दिया था. उन्होंने कहा था कि अगस्त माह में बच्चे मरते हैं. जिससे इस पूरे मामले में और अधिक तूल पकड़ लिया था. इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिमागी बुखार को और अधिक गंभीरता से लेते हुए. प्रत्येक वर्ष का विशेष संचारी रोग विरोधी योजना बनाकर रोग के खिलाफ अभियान की शुरुआत की. जिससे उत्तर प्रदेश धीरे-धीरे दिमागी बुखार से मुक्त हो रहा है.

ठाकुरगंज में दो युवकों की मौत से हड़कंप : बीते रविवार को ठाकुरगंज स्थित दो युवकों की रहस्यमयी तरीके से मौत होने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम ने इलाके का निरीक्षण किया. सोमवार को स्वास्थ्य विभाग से जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ. निशांत निर्वाण, डॉ. विश्वजीत, जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. रितु श्रीवास्तव की तीन सदस्यीय टीम निरीक्षण करने पहुंची थी. जहां 103 घरों का निरीक्षण किया गया और 577 लोगों को वेक्टर रोग जनित बीमारियों के बारे में जागरुक किया गया. जिसमें से 52 लोगों की मौके पर ही बुखार की जांच की गई. जिसमें सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई. वहीं 52 लोगों के सैंपल लैब में जांच के लिए भेजे जाएंगे. जिसकी रिपोर्ट बाद में आएगी. इसके साथ ही मृतकों के परिजनों से बातचीत में पता चला कि चांदबाबू की मौत हाईपरक्लेमिया से और मो. बाबर का बीपी 240 पहुंचने के कारण हुई.




निजी अस्पताल के डॉक्टर को बचाने की कोशिश में स्वास्थ्य विभाग

ठाकुरगंज स्थित हेल्थ प्वाइंट हॉस्पिटल में मरीज की मौत मामले में प्रोसीजर करने वाले डॉक्टर के बयान तक स्वास्थ्य विभाग ने दर्ज नहीं किए हैं. वहीं अस्पताल संचालक ने पत्र के जरिए अपना पक्ष सीएमओ कार्यालय भेजा गया है. आरोप है जांच में डॉक्टर को बचाने की कोशिश विभाग कर रहा है. यही वजह है कि अभी तक नोटिस तक नहीं जारी हुआ है. वहीं केजीएमयू ने संबंधित डॉक्टर को प्राइवेट प्रैक्टिस मामले नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है.


बता दें, राजाजीपुरम एलडीए कॉलोनी के रहने वाले राम खिलवान अवस्थी को फेफड़े में दिक्कत होने पर बीते माह ठाकुरगंज स्थित हेल्थ प्वाइंट हॉस्पिटल में डॉक्टर को दिखाया था. डॉक्टर ने फेफड़े में पानी व हवा भरने संक्रमण फैला होने की बात कही थी. इसके लिए प्रोसीजर करने की सलाह दी. डॉ. उत्तम संग मिलकर केजीएमयू प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र ने प्रोसीजर किया था. बेटी के अनुसार 19 अगस्त की रात करीब 7.30 बजे उनके पिता की इलाज दौरान मौत हो गई थी. परिजनों ने हंगामा शुरू कर दिया. इसी बीच केजीएमयू प्रोफेसर व डॉ. उत्तम वहां से भाग निकले.

पुलिस ने राजकुमारी की तहरीर पर केजीएमयू प्रोफेसर समेत तीन के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की थी. वहीं पुलिस के जरिए मामले में कार्रवाई के लिए रिपोर्ट सीएमओ को भेजी थी. सीएमओ की टीम ने बयान दर्ज करने के लिए तलब किया था. इसमें अस्पताल संचालक ने अपना बयान लिखित में सीएमओ कार्यालय को भेजा है. वहीं मरीज का प्रोसीजर करने वाले डॉक्टर शैलेंद्र के बयान तक दर्ज नहीं हुए. दूसरी ओर से केजीएमयू कुलसचिव ने डॉ. शैलेंद्र को नोटिस जारी करके जांच कमेटी गठित की गई है. नर्सिंग होम के नोडल अफसर डॉ. एपी सिंह के मुताबिक, डॉक्टर को बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया है.

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