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नया नहीं काशी से दक्षिण का रिश्ता, यहां तो सैकड़ों सालों से तंग गलियों में ही बसता है मिनी साउथ इंडिया

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Published : Nov 19, 2022, 1:56 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज काशी तमिल संगमम की शुरुआत करेंगे. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फी थिएटर ग्राउंड में प्रधानमंत्री तमिल भाषियों को संबोधित भी करेंगे. एक महीने तक चलने वाले इस आयोजन से काशी तमिल समेत उत्तर भारत संग दक्षिण भारत के रिश्ते मजबूत होंगे.

काशी तमिल संगमम
काशी तमिल संगमम

वाराणसी: काशी तमिल संगमम की शुरुआत आज औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने वाले हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एम्फी थियेटर ग्राउंड प्रधानमंत्री तमिल भाषियों को संबोधित भी करेंगे और कई अन्य कार्यक्रम भी होंगे. माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री के आगमन के साथ ही एक महीने तक चलने वाले इस आयोजन से काशी तमिल समेत उत्तर भारत संग दक्षिण भारत के रिश्ते मजबूत हो जाएंगे.

काशी तमिल संगमम पर संवाददाता की स्पेशल रिपोर्ट.

इन सबके बीच सवाल यह भी उठता है कि क्या काशी के साथ दक्षिण भारत के रिश्ते नए हैं या फिर इन संबंधों को नए सिरे से बनाने की शुरुआत की जा रही है. जब इसकी गहराइयों में जाएंगे तो हकीकत पता चलेगी. ऐसा इसलिए क्योंकि, काशी का दक्षिण भारत के तमिलनाडु, कर्नाटक, केरला, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित दक्षिण के तमाम हिस्सों के साथ रिश्ता कोई नया नहीं है. क्योंकि, काशी की तंग गलियों में एक-दो नहीं बल्कि 6 से ज्यादा ऐसे मोहल्ले हैं जो दक्षिण भारत की पहचान हैं. यहां पर रहने वाले लोग सैकड़ों सालों से दक्षिण भारत से आकर काशी में बसे हैं और काशी संरक्षण की संस्कृति को अपने में समाहित करके जीवन यापन कर रहे हैं. तो आइए हम बताते हैं कि शिक्षण तमिल और दक्षिण के अन्य हिस्सों के उन पुराने रिश्ते के बारे में जिसको निश्चित तौर पर यह संगमम और मजबूती प्रदान करेगा.

वाराणसी का हनुमान घाट, मानसरोवर, अगस्त कुंडा, हरिश्चंद्र घाट और इससे सटे तमाम इलाके अपने आप में काशी और दक्षिण भारत के रिश्तों की गाथा को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त हैं. ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि, काशी के हनुमान घाट में एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों ऐसे परिवार हैं जो 2 राज्यों के रिश्तों की कहानी कहते हैं. जिस तरह से केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आयोजन से 1 दिन पहले काशी के हनुमान घाट इलाके में पहुंचे और यहां तमिलनाडु के महाकवि सुब्रमण्यम भारती के भांजे 96 वर्ष के केवी कृष्णन और उनके बच्चों से मुलाकात की वह यह स्पष्ट करता है कि काशी का तमिलनाडु या दक्षिण भारत से रिश्ता बहुत पुराना है.

महाकवि सुब्रमण्यम भारती की छठवीं पीढ़ी काशी में निवास कर रही है. उनके भांजे केवी कृष्णन और उनकी बेटियों के साथ उनके परिवार के अन्य सदस्य यहां पर लगभग सैकड़ों सालों से रह रहे हैं, जो यह स्पष्ट करता है कि काशी और तमिलनाडु का रिश्ता बहुत पुराना है. डॉ टीवी कृष्णन 96 वर्ष के हो चुके हैं और बीएचयू से रिटायर्ड हैं. उनका कहना है कि काशी की तमिलनाडु संग रिश्ते की विरासत कोई नई नहीं बल्कि सैकड़ों साल पुरानी है. उनके मामा और उसके पहले भी बहुत से तमिल भाषियों ने इस रिश्ते को मजबूती देने की अपने स्तर पर कोशिशें की हैं.

भले ही आज भाषा को लेकर दक्षिण और उत्तर में मतभेद हो. लेकिन, यह मतभेद सच में कभी दिखाई नहीं देता था. शुरुआत में काशी की पांडित्य परंपरा से लेकर सांस्कृतिक परंपरा और धरोहर विरासत दोनों के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती रही है. डॉ कृष्णन की बेटी डॉ हेमा कृष्णन का कहना है दक्षिण भारतीयों के लिए तो काशी का मतलब ही वैदिक और पांडित्य परंपरा को जीवंत करना है. क्योंकि, दक्षिण भारत के लोगों का यही मानना है कि यदि वेद, वेदांग और संस्कृत समेत पांडित्य परंपरा को जीना है तो काशी आना ही होगा. यही वजह है कि सैकड़ों साल पहले बड़े-बड़े विद्वान तमिलनाडु और दक्षिण के अन्य हिस्सों से काशी आकर बसे और यहीं पर आकर स्वाध्याय करते हुए अपने जीवन को जीना शुरू कर दिया.

यही वजह है कि काशी को बड़े-बड़े संत, महात्माओं ने भी साउथ से आकर अपनी कर्मभूमि बनाया. काशी के हनुमान घाट में ही शंकराचार्य कांचीकामकोटी मठ स्थापित है. यहां पर कांची कमाकोटी मंदिर को देखकर आपको यह एहसास ही नहीं होगा कि यह काशी है, क्योंकि इसकी खूबसूरत डिजाइन बिल्कुल दक्षिण भारतीय मंदिरों के तर्ज पर बनाई गई है. इसके अलावा जंगमबाड़ी मठ से लेकर कई अन्य मठ और मंदिर काशी केदारेश्वर मंदिर, चिंतामणि गणेश मंदिर, विशालाक्षी मंदिर यह सभी काशी में दक्षिण भारतीय परंपरा और संस्कृति के साथ धर्म के सीधे जुड़ाव का बड़ा केंद्र हैं.

डॉ हेमा के मुताबिक, काशी से जाने वाला हर पुरुष दक्षिण भारतीयों के लिए साक्षात शिव और महिलाएं माता अन्नपूर्णा का रूप होती हैं. यही वजह है कि दक्षिण भारत में यहां की पुरुष और महिलाओं को देखते ही प्रणाम किया जाता है. वहीं, काशी में रहने वाले कर्नाटक के शास्त्रीय परिवार का कहना है कि काशी से उनके परिवार का जुड़ाव सैकड़ों साल पहले का है. छठवीं पीढ़ी इस समय काशी में रह रही है और यहां पर उनका खुद का आवास भी है. परिवार के साथ जीवन यापन करते हुए 200 सालों से ज्यादा का वक्त बीत चुका है. सबसे बड़ी बात यह है कि शास्त्रीय परिवार मैसूर के राजघराने के राजपुरोहित हैं और कर्नाटक भवन जिसका निर्माण मैसूर के राजपरिवार ने काशी में करवाया उसकी देखरेख की जिम्मेदारी भी इन्हीं के ऊपर है.

शास्त्री परिवार के लोगों का कहना है कि तमिल संगमम का आयोजन भले आज हो रहा हो. लेकिन, काशी आकर बसे दक्षिण भारतीयों के लिए दोनों राज्यों के रिश्तों को मजबूत रखना हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है. क्योंकि, काशी के बिना दक्षिण नहीं और दक्षिण बिना काशी नहीं है. यही वजह है कि दक्षिण भारत के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग आकर काशी में बस गए और यहां के जीवन के हिसाब से अपनी और यहां की संस्कृति को मिलाकर जीने लगे.

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काशी तमिल संगमम और दक्षिण भारत के इस पुराने रिश्ते पर पदमश्री पंडित राजेश्वर आचार्य का कहना है कि दक्षिण शिव को पूजता है और काशी साक्षात शिव की नगरी है. यहां शिव कण-कण में निवास करते हैं. यही वजह है कि दक्षिण भारतीयों के लिए इस पवित्र भूमि का महत्व है. काशी में न जाने कितने बड़े बड़े वेद वेदांग से लेकर संगीत और शिक्षा जगत से जुड़े दक्षिण भारत के लोगों ने अपना जीवन जिया. यहां पर आकर बसे इसे अपनी कर्मभूमि बनाया और यहां से ही पूरे देश में दक्षिण भारत का डंका मजबूती के साथ बजाया. आज भले ही यह कार्यक्रम दोनों राज्यों के रिश्तो को मजबूती देने का दावा कर रहा हो लेकिन सच तो यह है काशी का दक्षिण से बहुत पुराना नाता है और यहां आने वाला हर व्यक्ति ने भारतीय शिव तत्व में लीन होना चाहता है. जिसके लिए वह काशी में रहता है काशी को जीता है और काशी में ही अपने जीवन को समाप्त कर लेता है.

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