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Kota High Level Bridges: बजट घोषणा में दिखाया 330 करोड़ के दो हाई लेवल ब्रिज का सपना, हकीकत कुछ और...

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Published : Jun 9, 2022, 10:46 AM IST

Updated : Jun 9, 2022, 9:05 PM IST

Kota High Level Bridges
प्रदेश के सबसे बड़े पुल निर्माण पर सिस्टम ने लगाया ब्रेक

प्रदेश सरकार ने पिछले 2 बजट में चंबल नदी पर 2 हाई लेवल ब्रिज (Kota High Level Bridges) की घोषणा की थी, लेकिन इनका निर्माण अगले कुछ साल में होना नामुमकिन ही नजर आता है. वजह व्यावहारिक है. आखिर क्या है कारण! जानते हैं इस रिपोर्ट में...

कोटा. राज्य सरकार ने बीते 2 बजट में चंबल नदी पर 2 हाई लेवल ब्रिज (Kota High Level Bridges) की घोषणा की थी. महत्वाकांक्षी योजना है ये. इसके लिए 165-165 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत है. देखने में सब परफेक्ट है. फिर भी ऐसे कुछ कारण हैं जिससे इनका निर्माण अगले कुछ साल में होना नामुमकिन सा ही है. कुछ व्यावहारिक अड़चनें हैं. सबसे बड़ी दिक्कत एनवायरमेंट क्लीयरेंस की है. प्रदेश में पहले भी ऐसा हुआ है जब एक पुल को बनने में तो 2 साल लगे लेकिन तकनीकी मजबूरियों के चलते पूरे 13 साल जाया हो गए.

मामला चंबल नदी के खातोली इलाके में बनने वाली झरेल के बालाजी और इटावा के नजदीक से बनने वाली गोठड़ा कला की पुलिया का है. यहीं पर हाई लेवल ब्रिज प्रस्तावित है. इनके बनते ही कोटा संभाग के माथे पर एक और ताज सज जाएगा. इनमें से एक प्रदेश का सबसे लंबा ब्रिज होने का खिताब हासिल कर लेगा. ये सब सुनने में रुचिकर है लेकिन रास्ता मुश्किल है. जिस हिसाब से सार्वजनिक निर्माण विभाग के बाद फाइल वाइल्डलाइफ बोर्ड में गई है उससे अगले एक-दो साल में स्वीकृति की उम्मीद न के बराबर है. बजट घोषणाओं के जरिए 330 करोड़ रुपए के दो हाई लेवल ब्रिज बनने का सपना जनता को दिखा तो दिया गया है लेकिन अगले कई सालों तक ये जमीन पर उतरता नहीं दिख रहा. क्योंकि जब तक वन विभाग की स्वीकृति नहीं मिल जाती, इनके टेंडर नहीं निकाले जा सकते.

ब्रिज के सपने पर फिलहाल ब्रेक

लाखों रुपए में होती है झरेल के बालाजी पुल की मरम्मत: चंबल नदी में बारिश के समय काफी पानी झरेल की पुलिया (Bridge On Chambal River) पर आ जाता है. इसके चलते पुलिया पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो जाती है. आसपास की रपट भी नदी के पानी के बहाव के साथ ही बह जाती है. ऐसे में सार्वजनिक निर्माण विभाग के पुलिया को दोबारा चलने के लायक बनाता है. जिसमें लाखों रुपए का खर्चा हर साल होता है. बीते कई सालों से ऐसा लगातार हो रहा है. अगर प्रस्तावित 165 करोड़ के ब्रिज का रास्ता साफ हो जाएगा तो इस लाखों के खर्चे पर भी कुछ हद तक लगाम लग जाएगी.

अब समझें अड़चनें: सार्वजनिक निर्माण विभाग ने मई 2021 में ही झरेल के बालाजी ब्रिज (Jharel Ke Balaji) के लिए ऑनलाइन आवेदन एनवायरमेंट क्लीयरेंस के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के जरिए किया था. जिसमें करीब 7 हेक्टेयर जमीन वन विभाग की आ रही है, जिस पर पुलिया का निर्माण होना है. इसमें सबसे पहले चंबल घड़ियाल सेंचुरी के सवाई माधोपुर स्थित डीएफओ ऑफिस से क्वेरीज आई थीं. जिनका भी समाधान किया (Constraints in Environment Clearance) गया. अब इसे स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड में भेजा गया है. जहां से भी क्वेरी जा रही है और उनका जवाब लगातार दिया जा रहा है. अभी स्टेट वाइल्डलाइफ बोर्ड के पास ये मामला पेंडिंग है, इसके बाद सेंट्रल वाइल्डलाइफ बोर्ड के पास जाएगा. जहां से अनुमति मिलेगी. इसके साथ ही लगातार कई बार पत्राचार भी इस संबंध में होता है. वैसे एक सुविधा है. पहले जहां पहले सारा काम ऑफलाइन होता था, पत्राचार हुआ करता था वहीं अब यह सिस्टम ऑनलाइन हो गया है. जिससे आसानी पैदा हो गई है फिर भी इसमें क्लीयरेंस में अभी काफी समय लगेगा.

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गोठड़ा कला ब्रिज के लिए आवेदन ही नहीं: दूसरी तरफ चंबल नदी पर ही 1600 मीटर लंबे बनने वाले गोठड़ा कला हाई लेवल ब्रिज के लिए सार्वजनिक निर्माण विभाग ने आवेदन एनवायरमेंट क्लीयरेंस के लिए नहीं भेजा है. अभी प्रारंभिक एलाइनमेंट फिक्स किया जा रहा है. इसके बाद रेवेन्यू डिपार्टमेंट से इस एरिया में आ रही जमीन और उसकी अवाप्ति के लिए प्रक्रिया की जाएगी. इस जमीन की जानकारी मिलने के बाद ऑनलाइन ही वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को ब्रिज निर्माण स्वीकृति के लिए आवेदन किया जाएगा.जिसमें लंबा समय लगेगा.

कई जिलों और मध्य प्रदेश को होगा फायदा: इस निर्माण के शुरू हो जाने के बाद बारिश के समय झरेल पुल पर आने वाले चंबल नदी के पानी से लोगों को निजात मिलेगी. बारिश के समय यह रास्ता करीब 3 से 4 महीने तक बंद रहता है. वर्तमान में जो रपट वाली पुलिया बनी है, उस पर 20 फीट तक पानी आ जाता है. ऐसे में बसें और अन्य साधन भी नहीं जा पाते हैं. इसके चलते मध्य प्रदेश और सवाई माधोपुर से कोटा जिले के इटावा और सुल्तानपुर इलाके और बारां जिले का संपर्क टूट जाता है. वर्ष 2020 में गोठड़ा कला का हादसा अभी भी लोग भूले नहीं हैं. इस हादसे में नाव पलटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी. यह सभी लोग इटावा इलाके से बूंदी जिले के कमलेश्वर महादेव मंदिर जा रहे थे. यहां लाखों की आबादी मेले के समय दर्शन के लिए जाती है और सीधा रास्ता नहीं होने के चलते चंबल नदी में चलने वाली नाव का ही उपयोग करती है. अगर ये ब्रिज बनकर तैयार होगा तो इस इलाके के लोगों को बूंदी, लाखेरी दौसा, सवाई माधोपुर जाने के लिए सीधा रास्ता मिल जाएगा. इन पुलों के निर्माण हो जाने के बाद कोटा, बारां, सवाई माधोपुर, बूंदी और मध्य प्रदेश के करीब 20 लाख लोगों को फायदा मिलेगा.

एक पुल की कहानी, जो होता रहा Delay: वर्तमान में प्रदेश का सबसे लंबा ब्रिज भी कोटा जिले में चंबल नदी पर ही बना हुआ है. यह ब्रिज इटावा के गैंता और बूंदी के माखीदा के बीच 1562 मीटर लंबा है. इस ब्रिज की घोषणा वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने बजट भाषण में की थी. इसके बाद इसकी डीपीआर यानी Detailed Project Report साल 2007 में बनकर तैयार हुई. फिर अनुमति के लिए इसे वाइल्डलाइफ बोर्ड को भेजा गया. इस प्रोजेक्ट की क्लीयरेंस में सुप्रीम कोर्ट के जरिए 18 अप्रैल 2011 को स्वीकृति मिली, इसके बाद वन विभाग की जो भी आपत्ति थी, उनको विभाग ने दूर किया. इसके बाद वर्ष 2016 में इसके निर्माण को सभी जगह से हरी झंडी मिल गई और वन विभाग के कैंपा फंड में पैसा भी जारी किया. वन विभाग की आपत्ति के अनुसार सुरक्षा दीवार भी बनाई गई. जिसके बाद पुल का निर्माण शुरू हुआ. 2018 नवंबर में इसका लोकार्पण हुआ. अच्छी बात ये रही कि इसके निर्माण में महज 2 साल का ही समय लगा था. यानी एक ब्रिज जो 2 साल में बनकर तैयार हो सकता था उसे तकनीकी कारणों से तैयार होने में 13 साल लगे. इसमें ज्यादातर समय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति में ही लगा.

क्षेत्रीय विधायक बोले, नहीं अटकने दिया जाएगा कामः पीपल्दा विधायक रामनारायण मीणा का झरेल और गोठड़ा कला की पुलिया के मामले में कहना है कि राज्य सरकार से बजट घोषणाओं में यह पुलिया पास कराई है. इनके सहित करीब 600 करोड़ की पुलिया मेरे विधानसभा क्षेत्र में बन रही है. क्षेत्रीय जनता को सुगम और सुव्यवस्थित यातायात मिले इसके लिए ही यह स्वीकृति दिलाई है. किसी भी निर्माण को अटकने नहीं दिया जाएगा. सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधिकारियों को पाबंद कर तीन पुलिया के निर्माण से जुड़ी स्वीकृति के लिए लगातार उच्चाधिकारियों से संपर्क में रहने के निर्देश दिए हैं. मैं खुद भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और प्रदेश के वन विभाग के उच्च अधिकारियों से बात इनके संबंध में करूंगा. राज्य सरकार के जरिए वाइल्ड लाइफ बोर्ड से जल्द इसे स्वीकृति दिला कर नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड में पुलिया के निर्माण का प्रस्ताव भेजा जाएगा. जहां से भी दोनों पुलियाओं के निर्माण के लिए एनवायरमेंट क्लीयरेंस दिलाएंगे, ताकि जल्दी इनका निर्माण शुरू हो.

Last Updated :Jun 9, 2022, 9:05 PM IST
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