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NEET UG 2022: रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद विदेशों में एमबीबीएस पर असर, भारत में एमबीबीएस की क्लोजिंग रैंक भी जा सकती है ऊपर

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Published : Jul 16, 2022, 9:37 PM IST

Russia Ukraine war impact on studies
रूस यूक्रेन युद्ध का विदेशों में एमबीबीएस पर असर

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी हर साल मेडिकल प्रवेश परीक्षा कराती है. लेकिन इस बार 17 जुलाई को होने वाली ये परीक्षा काफी खास है. क्योंकि रशिया-यूक्रेन के बीच युद्ध (Russia Ukraine war impact on studies) और कई विदेशी यूनिवर्सिटियों में प्रवेश पर पाबंदी के बाद विद्यार्थियों की पूरी कोशिश होगी की भारत में ही प्रवेश मिल जाए. यही वजह है कि इस बार क्लोजिंग रैंक बीते साल से ऊपर रह सकती है.

कोटा. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी हर साल देश की सबसे बड़ी मेडिकल प्रवेश परीक्षा राष्ट्रीय सह-पात्रता परीक्षा (NEET UG 2022) का आयोजन करता है. लेकिन इस साल 17 जुलाई को हो रही यह प्रवेश परीक्षा कई मायनों में बीते सालों से अलग है. बीते सालों में जहां विद्यार्थियों का प्राइवेट मेडिकल सीट पर कम फोकस रहता था. लेकिन रशिया व यूक्रेन युद्ध के बाद यूक्रेन से वापस लौटे स्टूडेंट और भारत सरकार ने कई विदेशी यूनिवर्सिटी में प्रवेश पर पाबंदी लगाने के निर्देश जारी किए हैं. इसके चलते इस बार प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की सूची फुल होगी.

बीते साल जहां नीट यूजी 2021 में 108 नंबर यानी 15 फीसदी अंक लाने वाले विद्यार्थी (Russia Ukraine war impact on studies) को भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज सीट मिल गई थी. वहीं इस बार ऐसा होना संभव नहीं लग रहा है. विदेशों में एमबीबीएस करने को लेकर इस बार स्टूडेंट ज्यादा रुचि नहीं दिखाएंगे. इसके चलते देश के ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में ज्यादा फीस देकर एडमिशन भी लेंगे. इसके चलते क्लोजिंग रैंक बीते साल से ऊपर रह सकती है.

रूस यूक्रेन युद्ध का विदेशों में एमबीबीएस पर असर

एजुकेशन एक्सपर्ट देव शर्मा ने बताया कि रूस यूक्रेन युद्ध, चीन में कोविड 19 के कारण बनी आपात स्थितियां, आर्मीनिया व किर्गिस्तान के मेडिकल संस्थानों की मान्यता को लेकर उठे प्रश्न चिह्नों के कारण विदेशी मेडिकल संस्थानों से एमबीबीएस डिग्री के प्रति आम सोच में बदलाव आया है. रूस यूक्रेन युद्ध के मध्य गंभीर हालात से गुजरे व यूक्रेन से भारत वापस आए विद्यार्थियों की वर्तमान त्रिशंकु स्थिति को देखते हुए लाखों नीट परीक्षार्थियों ने विदेशी संस्थानों से एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करने का विचार बदल दिया है. ऐसे में इस साल विद्यार्थी अच्छे अंकों के साथ नीट यूजी परीक्षा उत्तीर्ण करने में प्रयासरत हैं.

कम फीस के चलते विदेशों का रुखः देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फीस काफी कम है. बड़े सरकारी मेडिकल कॉलेज में 2 लाथ से 3 लाख रुपये सालाना तक फीस है. राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज और देश के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में औसत फीस डेढ़ लाख रुपए के आसपास ही है. जबकि डीम्ड यूनिवर्सिटी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में 7 से 8 लाख रुपए सालाना से फीस शुरू होती है. यह 25 से 30 लाख रुपए तक भी पहुंच रही है. उनका औसत करीब 15 लाख के आसपास है.

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नीट में सरकारी सीट नहीं ले पाने वाले अच्छी रैंक के स्टूडेंट्स भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फीस नहीं भर पाते हैं. ऐसे में यह स्टूडेंट अगली नीट यूजी की तैयारी शुरू कर देते हैं या फिर दूसरे कोर्सेज में एडमिशन ले लेते हैं. इन स्टूडेंट के प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की सीट छोड़ने पर निचली रैंक वाले स्टूडेंट्स को फायदा मिल जाता है.

595 रैंक वाले को मिली थी सरकारी सीटः भारत में वर्तमान में 612 एमबीबीएस के कॉलेज हैं. इनमें इनमें 92,827 सीट हैं. जिनमें 292 सरकारी और 320 डीम्ड यूनिवर्सिटी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं. सरकारी और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में सीटों का अनुपात देखा जाए तो अभी भी 55 फीसदी यानी करीब 50,500 सीटें हैं. जबकि 45 फीसदी 41,000 सीटें सरकारी गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेजों के पास हैं.

वहीं NEET UG 2021 के रिजल्ट के बाद हुई मेडिकल काउंसलिंग कमेटी की स्टैटिक्स के अनुसार जनरल कैटेगरी रैंक 21,227 थी, जिसमें 595 नंबर नीट यूजी 2021 में स्टूडेंट्स के आए थे. ईडब्ल्यूएस कैटेगरी का 21,238 रैंक थी और ओबीसी में 21,188 थी. इनमें भी 595 नंबर ही थे. एससी कैटेगरी में एक लाख 9,310 रैंक पर 470 अंक आए थे. वहीं एसटी कैटेगरी में 1,30,823 रैंक पर 452 नंबर थे. इन्हें सरकारी मेडिकल कॉलेज की सीट मिल गई थी. जबकि प्राइवेट कॉलेज में 9,22,000 अंक लाने वाले विद्यार्थी को भी सीट मिल रही थी.

प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में है 7500 करोड़ की सालाना अर्थव्यवस्थाः देव शर्मा ने बताया कि विदेशों में फीस कम होने पर विद्यार्थी NEET UG के आधार पर विदेशों में प्रवेश ले लेते थे. लेकिन अब भारत के ही यूनिवर्सिटी व मेडिकल संस्थानों में एडमिशन लेने के चांस बढ़ गए हैं. विदेश में जाकर एमबीबीएस करने के मामले में स्टूडेंट और माता पिता दोनों ही मानसिक तौर पर तैयार नहीं हैं. ऐसे में प्राइवेट जितने भी संस्थान हैं, उनमें एमबीबीएस की सीटें बेहतर तरीके से भर जाएगी. करीब 50 हजार 500 एमबीबीएस सीटें प्राइवेट संस्थानों में हैं. जिनमें औसत करीब 15 लाख सालाना की फीस है. ऐसे में यह 7500 करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था का मामला है. इसमें से करीब 30 से 40 फीसदी राशि विदेशों में चली जाती थी. यह राशि देश में ही रहती है, तो उन्नति के लिए भी अच्छी बात है.

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भारत का मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर सुधरेगाः देव शर्मा का कहना है कि आगामी कुछ सालों में मेडिकल शिक्षा के लिए भारत सर्वश्रेष्ठ विकल्प के तौर पर उभर सकता है. इसके चलते मेडिकल सुविधाओं का इंफ्रास्ट्रक्चर भी भारत में सुदृढ़ होगा. ऑल इंडिया मेडिकल साइंसेज की संख्या बढ़ रही है. नई पॉलिसी के तहत जिला स्तर पर भी मेडिकल कॉलेज खोले जा रहे हैं. भारतीय चिकित्सा शिक्षा काफी महंगी है. फीस यहां ज्यादा है. अगर इसमें कमी होती है तो विदेशी विद्यार्थियों को भी हम आकर्षित कर सकते हैं. इसमें कमी होने के चलते विदेशी विद्यार्थियों के लिए बड़ा द्वार खुल जाएगा.

बदले हालात के चलते नहीं जाएंगे एमबीबीएस करनेः आरकेपुरम निवासी दिवाकर जोशी की बेटी धृति शर्मा यूक्रेन की चेन्निवेस्सी यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस कर रही है. रशिया यूक्रेन युद्ध के बाद वे भारत लौट आई थी. वर्तमान में उनकी क्लासेज ऑनलाइन ही चल रही है. दिवाकर जोशी का कहना है कि भारत के अलावा, यूएसए व यूके में भी पढ़ाई काफी महंगी है.

इसके अलावा रोमानिया, पोलैंड, कजाकिस्तान व किर्गिस्तान ऐसे देश बचे हैं, जहां पर भी बच्चे पढ़ने जाने के लिए इंटरेस्टेड नहीं हैं. रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद वहां जाने के ऑप्शन पहले ही खत्म हो चुके हैं. हालात बदल जाने के चलते बच्चों को बाहर मेडिकल स्टडी के लिए मुश्किल ही होगा. पहले तो हम भी लोगों को सलाह दिया करते थे कि वहां पर पढ़ने चले जाएं, लेकिन वर्तमान हालात में ऐसा संभव नहीं है.

भारत मे एक करोड़, चीन में 35 लाख में हो रही एमबीबीएसः कोटा के दादाबाड़ी शास्त्रीनगर निवासी राघव श्रृंगी चीन से एमबीबीएस कर रहे हैं. उनके परिजन काफी ज्यादा फीस होने के चलते ही यहां प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं करवा पाए. ऐसे में उसने चीन से एमबीबीएस शुरू कर दिया. राघव के नीट यूजी 2017 में 440 अंक थे, एमसीसी के अलॉट प्राइवेट कॉलेजों में करीब 18 लाख रुपए सालाना फीस मांगी गई. परिजन यह फीस नहीं दे पाए. वे चीन के ग्वांगझू से एमबीबीएस कर रहे हैं. जहां पर उन्होंने 2018 में प्रवेश ले लिया था. वहां 5 लाख रुपए सालाना फीस है. ऐसे में उनका फीस में करीब 25 लाख और अन्य खर्चों में 10 लाख रुपए खर्च होगा. कुल मिलाकर उनकी एमबीबीएस 35 लाख रुपए में हो जाएगी. जबकि भारत में यह खर्चा एक करोड़ रुपए के आसपास होता.

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करीब 20,000 स्टूडेंट जा रहे थे हर साल विदेशः विदेश की बात की जाए तो करीब 20,000 भारतीय स्टूडेंट एमबीबीएस कर रहे थे. यह अलग-अलग ईयर की पढ़ाई वहां की मेडिकल यूनिवर्सिटी और कॉलेज में कर रहे थे. इसके अनुसार माना जा सकता है कि हर साल करीब 5,000 विद्यार्थी यूक्रेन में भारत से एमबीबीएस के लिए जाते हैं. भारत सरकार या किसी भी एजेंसी के पास ऐसा कोई डाटा मौजूद नहीं है, जिसमें विदेश में एमबीबीएस करने जाने वाले विद्यार्थियों की जानकारी हो. हालांकि चाइना, और अन्य सभी देशों की बात की जाए तो यह आंकड़ा 20 हजार से ज्यादा हो जाता है. इनमें यूक्रेन, रूस, किर्गिस्तान, फिलीपींस, जर्मनी, चाइना, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, जॉर्जिया, पोलैंड, बांग्लादेश, नेपाल, क्रोशिया, सरबिया व टर्की में एमबीबीएस के लिए जा रहे स्टूडेंट शामिल हैं.

NEET UG 2021 में सरकारी कॉलेज की रैंक व कटऑफ स्कोर

कैटेगरी कटऑफ स्कोररैंक
जनरल ईडब्ल्यूएस720 से 59521227
ईडब्ल्यूएस 720 से 59521238
ओबीसी720 से 59521188
एससी720 से 473109310
एसट720 से 452130823

नीट यूजी 2021 की कटऑफ

कैटेगरी कटऑफ स्कोरकैंडिडेट
जनरल ईडब्ल्यूएस720 से 138770864
ओबीसी137 से 10866978
एससी137 से 10822284
एसटी137 से 1089312
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