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Mothers day 2022: 'मदर इंडिया' से कम नहीं इन तीन मांओं की कहानी...मुश्किलों से कभी हार नहीं मानी

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Published : May 8, 2022, 6:04 AM IST

Updated : May 8, 2022, 6:28 AM IST

Single mothers heart touching story from Rajasthan
Mothers day 2022: 'मदर इंडिया' से कम नहीं है इन तीन मांओं की कहानी, जिन्होंने हार नहीं मानी

बिना पिता के बच्चों के जीवन को संवारना और उन्हें भरपूर प्यार देना अपने आप में एक चुनौती है. इसी चुनौती से दो-चार होना पड़ा इन तीन महिलाओं को. ईटीवी भारत ने मदर्स डे के मौके पर इन तीन सिंगल मदर्स से कहानी के अंदर झांक इनके संघर्ष को जानने की सच्ची कोशिश की (Single mothers heart touching story from Rajasthan) है. आइए जानते हैं बिना पिता के कैसे इन ​मदर्स ने बच्चों का पालन-पोषण किया...

जयपुर. 'मां' जितना संक्षिप्त शब्द, उसका सार उतना ही विशाल है. एक मां ही है जो अपनी औलाद की हर मुश्किल को खुद पर ओढ़ लेती है. मां खुद कांटों भरी राह पर चलती है, लेकिन बच्चों को इसका एहसास तक नहीं होने देती. मातृ दिवस पर ईटीवी भारत ऐसी मांओं को नमन करता है, जो अकेले दम पर अपने बच्चों की जिंदगी संवार रही हैं. मदर्स डे पर आपको मिलवाते हैं ऐसी सिंगल मदर्स से जो बिना पति के बच्चों को अकेले संभाल रही (Single mothers heart touching story from Rajasthan) हैं. ये तीन अलग-अलग किरदारों की अलग-अलग कहानियां जरूर हैं, लेकिन मर्म एक जैसा ही है...

चुनौतियों का रंजना व्यास ने किया डट कर सामना: चुनौतियों से लोहा लेती और अपने दम पर जिंदगी जीने का माद्दा रखने वाली इन मांओं की लाजवाब कहानियों में सबसे पहले जानिए रंजना व्यास की कहानी. रंजना का संघर्ष एक मां के तौर पर काबिले तारीफ है. 14 वर्ष की उम्र में रंजना के सिर से पिता का साया उठा गया और शादी के महज 6 साल बाद पति की मौत ने जीवनभर का दर्द दे (Struggle of single mothers) दिया.

अचानक टूटे इस दुखों के पहाड़ के साथ दूसरी बड़ी चुनौती 3 साल के बेटे का जीवन था. रंजना ने अपने बेटे की जिम्मेदारी ही नहीं संभाली, बल्कि एक दोस्त बनकर उसकी जरूरतों और भावनाओं को समझा. आज बेटा 12 साल का हो गया है. बेटा समझने लगा है कि मां किन परिस्थितियों में उसे पाल रही है. बेटे अंशुल को बहन की कमी महसूस नहीं हो इसलिए रंजना खुद बहन बन कर राखी बांधती हैं. उसके साथ खेलना, डांस करना, मस्ती करना जैसे हर काम मन नहीं होते हुए भी करती हैं जो बेटे अंशुल को पसंद है.

बेटे के लिए रंजना निभा रहीं हर जिम्मेदीरी

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दूसरी शादी से बंट जाता प्यार: रंजना बताती हैं कि 8 जून, 2006 को उनकी शादी महावीर व्यास से हुई. एक साल बाद बेटे अंशुल का जन्म हुआ. दोनों ने मिलकर बेटे के लिए कई तरह के सपने देखे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था. अंशुल के तीसरे जन्मदिन के कुछ दिन बाद 30 जून, 2012 को पति की अचानक तबियत खराब हुई. डॉक्टर के पास लेकर जाते, उससे पहले ही उन्होंने आखिरी सांस ली. रंजना बताती हैं कि पति के देहांत के कुछ दिन बाद से ही रिश्तेदारों ने कहना शुरू कर दिया कि अभी तो 25 साल की उम्र है, कैसे इस पहाड़ से जीवन को काटोगी, दूसरी शादी कर लो.

शादी से मुझे तो प्यार करने वाला पति मिल जाएगा, लेकिन बेटे को लेकर उसका प्यार बंट जाएगा. दूसरे पिता से उसको वह प्यार नहीं मिल सकता था. ऐसे में शादी के सभी प्रस्ताव खारिज कर, अंशुल को अच्छी एजुकेशन देने के लिए परिवार वालों के न चाहने पर भी भीलवाड़ा से जयपुर आ गई. रंजना के सामने बच्चे के लालन-पालन की जिम्मेदारी बड़ी चुनौती थी. ऐसे में रंजना ने जिस डांस को बचपन में ही अपनी जिम्मेदारियों के आगे दबा दिया था, उस शौक को अपना प्रोफेशन बनाया. अब वो शादियों में महिला संगीत, भजन संध्या और डांस क्लास के जरिये बेटे की अच्छी परवरिश के लिए पैसे कमा लेती है.

भंवर कंवर ने दुकान और बेटी दोनों संभाला : पहले पत्नी और अब मां के तौर पर भंवर कंवर की जिंदगी से जंग जारी है. उम्र से पहले ही इस मां के चेहरे पर झुर्रियां आ गई हैं, जो उसकी कहानी बयां करने को काफी है. पति महावीर सिंह को जिंदगी और मौत की जद्दोजहद से न निकाल पाने की कसक तो जिंदगी भर के लिए है ही, दो बच्चों की जिम्मेदारी और उनके सपने को पूरा करना अब जिद है. दरअसल भंवर के पति पंजाब में एक बड़ी निजी कम्पनी में मैनेजर की पोस्ट पर काम कर रहे थे. सबकुछ अच्छा चल रहा था. शादी के बाद 5 साल पति से दूर रहकर सास-ससुर की सेवा की. इस बीच बेटे पुष्पेंद्र का जन्म हुआ. जब बेटे की पढ़ाई शुरू करने का वक्त आया, तो पति के साथ पंजाब चली गई. इस दौरान एक नन्ही परी हिमांशी के जन्म ने परिवार को पूरा कर दिया.

भंवर कंवर की कहानी

नियति को कुछ और ही मंजूर था: पति, एक बेटा और बेटी के साथ भंवर का जीवन बहुत खूबसूरती के साथ चल रहा था, लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था. अचानक 2015 के शुरुआत में पति बीमार पड़ गए. बीमारी ने इस कदर बिस्तर पर ला दिया कि एक साल के लम्बे इलाज के बाद भी बिस्तर से नहीं उठ सके. 12 दिसंबर, 2015 को पति दो बच्चों की जिम्मेदारी अकेली भंवर के कंधों पर डाल इस दुनिया से चले बसे. हाउस वाइफ की जिंदगी जीने वाली भंवर के सामने मानों पहाड़ सा टूट गया, कैसे जिंदगी अकेले काटी जाएगी. उस पर दो बच्चे जिन्हे कामयाब बनाने का सपना कभी पति के साथ देखा था. लेकिन कहते हैं ना मां शब्द ही काफी है उस हिम्मत के लिए जो उसे दुनिया की हर मुसीबत से लड़ना सीखा देता है.

अब भी जारी है जिंदगी से जंग: भंवर बताती हैं कि बहुत मुश्किल था उनके बगैर जिंदगी को आगे बढ़ाना, लेकिन दोनों बच्चों की सूरत सामने थी. कभी स्कूल टाइम में जिस पेंटिंग और हैंडवर्क शौक था, उसे ही जीवन जीने का आधार बनाया. पति की डेथ पर मिले पैसे से जयपुर में एक घर बनाया. उसी घर में एक बुटीक खोला. पेंटिंग और हैंडवर्क के जरिये खूबसूरत डिजाइन बना कर बिजनेस को खड़ा किया. बेटे पुष्पेंद्र ने पढ़ाई पूरी कर बड़ी निजी कम्पनी में कैरियर शुरू कर कर लिया. बेटी हिमांशी भी कॉलेज में बीसीए कर रही है. भंवर कहती हैं कि पिता की कमी तो पूरी नहीं कर सकती, लेकिन उन्होंने जो बच्चों के लिए सपने देखे थे, उन्हें पूरा करने में कोई कसर नहीं रखी है.

मां के लिए हर दिन मदर्स डे: बेटी हिमांशी कहती हैं कि ममा के लिए तो जितना कहा जाए उतना कम है. हमारे लिए मदर्स डे किसी एक दिन नहीं होता, हर दिन हमारा मां के लिए है. यह मां ही तो है, जो जिंदगी जीना सीखा रही हैं. कभी दोस्त बन कर तो, कभी पापा की तरह प्यार कर और कभी मां के दुलार से. खुद ने कभी अपने लिए कुछ नहीं किया, जो कुछ किया सिर्फ हमारे लिए किया. I LOVE YOU MAMA. आप दुनिया की बेस्ट मां हो.

वकालत के साथ अनिता शर्मा निभा रही बेटी की जिम्मेदारी : जीवन की राह अकेले काटना आसान नहीं होता. इसलिए विवाह संस्था का समाज में और भी ज्यादा महत्व हो जाता है. फिर भी जो इस कठिन राह पर अकेले चलने का हौसला करते हैं, उनके लिए इन राहों में कई चुनौतियां होती हैं. उसी तरह की चुनौतियों का सामना कर जीवन जी रही हैं एडवोकेट अनिता शर्मा. दरअसल अनीता के निजी जीवन में हुई एक घटना के बाद उन्होंने यह तय किया वे शादी करके वैवाहिक जीवन में नहीं बंधेगी. अनीता कहती हैं कि सबकुछ ठीक था. पापा अफसर रहे तो जाहिर था अच्छी शिक्षा मिली. हॉस्टल लाइफ में सबकुछ अच्छा था. शादी नहीं करने का फैसला परिवार को बता चुकी थी.

मां अनिता ने निभा रही जिम्मेदारी

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पहली बार मातृत्व का अनुभव हुआ: अनिता बताती हैं कि वकालात के साथ सोशल वर्क भी अच्छे से चल रहा था. इसी दौरान ढाई साल पहले विद्याधर नगर में एक केस के सिलसिले में जाना हुआ. वहां पर एक नवजात बच्ची के जन्म को लेकर पारिवारिक कलह चल रहा था. बच्ची के माता-पिता उसे अपनाना नहीं चाह रहे थे. उस वक्त ऐसा लगा कि अगर आज इस बच्ची को यहां से नहीं ले कर गई, तो शायद कल सुबह तक इसकी लाश मिलेगी. देर रात का समय था. बिना कुछ सोचे 24 घंटे से भी कम उम्र की उस बच्ची को लेकर घर आ गई. रात को बच्ची को अपने सीने से चिपका कर सो गई. सोचा था सुबह शिशु गृह में छोड़ आएंगे. लेकिन कहते हैं ना नियति जब कुछ करना चाह रही हो, तो कोई कुछ नहीं कर सकता.

अनीता कहती हैं कि सुबह बच्ची अचानक से खूब रोने लगी. मेरी जो भी दोस्त उसे लेती, उनके पास खूब रोई. जैसे ही मेरी गोद में आती, चुप हो जाती. कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. फिर अचानक देखा कि उसका हाथ जिसकी अच्छे से ग्रिप भी नहीं बन रही थी, उसने मेरी टीशर्ट को गले के पास से पकड़ रखा था. उस वक्त ऐसा लगा जैसे वो कह रही हो कि मुझे आपसे दूर नहीं जाना. पहली बार मुझे मातृत्व का अहसास हुआ. दोस्तों ने भी मजाक में कहा कि यह तुझे नहीं छोड़ना चाहती. उसी वक्त तय किया कि अपने लिए 40 साल से ज्यादा जी लिए, अब इस मासूम बच्ची के लिए जीना है.

मातृत्व सुख से बड़ा कोई सुख नहीं होता: अनिता कहती हैं कि उसके बाद तय किया कि मैं इस बच्ची को गोद लूंगी. कागजी कार्रवाई कर मैंने इस बच्ची को गोद ले लिया. वक्त किस तरह से इसके साथ गुजर जाता है, पता ही नहीं चलता. कभी सोचती हूं तो लगता है कि मैंने कभी सोचा नहीं था कि जीवन में खुद को किसी भी बंदिशों में बांध कर रखूंगी. लेकिन कहते हैं ना कि मातृत्व सुख से बड़ा कोई भी सुख नहीं होता और शायद यही वजह थी कि मैंने अपने वकालत के करियर से ऊपर इस नन्ही सी परी को महत्व देना शुरू कर दिया. इसकी परवरिश के लिए मैंने लंबे समय के लिए वकालत से ब्रेक भी लिया ताकि मैं इसका अच्छे से लालन-पालन कर सकूं.

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बच्ची के लिए रखी मेड: अनिता कहती हैं कि जब बच्ची 6 महीने की हो गई थी, उसके बाद मैंने इसके लिए घर पर मेड को 24 घंटे के लिए रख लिया, ताकि मैं अगर कोर्ट जाऊं तो पीछे से उसका ख्याल रखे. फ्लैट के चारों तरफ सीसीटीवी कैमरे लगाए ताकि इसकी सुरक्षा पर कोई आंच ना आए. अब यह नन्ही परी ढाई साल की हो गई है. इसी साल इसको स्कूल में भी एडमिशन कराना है. अनीता कहती हैं कि अब इसके बिना जीना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन सा है. कोई किस तरह से आपके जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाता है, इसका उदाहरण यह नन्हीं परी है.

अधूरी नहीं जिंदगी शादी बिना: अनिता कहती हैं कि परिवार वह संस्था है जहां औरतों की प्रतिभा चूल्हे-चक्की में व्यर्थ होती है और पुरुष की क्षमताएं पारिवारिक जिम्मेदारियां उठाने में जाया होती हैं. यह बात स्थान-काल-परिस्थिति के संदर्भ में कही गई थी. लेकिन आज की स्थितियां भिन्न हैं. शादी के बगैर भी रहा जा सकता है. जरूरी नहीं कि सिंगल लोग गैर-जिम्मेदार हों या शादी से भागते हों. यह भी जरूरी नहीं कि महज इसलिए शादी कर लें कि शादी करनी है. शादी प्यार के लिए की जाती है और यदि प्यार न मिले तो शादी का कोई मतलब नहीं. घर-परिवार-समाज के लिए तो शादी की नहीं जा सकती. अकेले लोग भी खुश रह सकते हैं. दोस्त बनाएं, सामाजिक जीवन में व्यस्त रहें, अपने शौक पूरे करें.

सवाल उठते हैं, लेकिन परवाह नहीं करें: अनिता कहती हैं कि यह सही है कि जब आप शादी नहीं करते तो आपके पर कई तरह के दबाव बनते हैं. लोग कई तरह की बातें करते हैं. रिश्तेदार परिवार पर दबाव बनाते हैं, लेकिन मेरा मानना यही है कि अगर आपको लगता है कि आपकी पसंद का जीवन साथी आपके साथ नहीं है. आप उस विवाह से खुश नहीं रह सकते, तो फिर ऐसे बंधन में नहीं बंधना चाहिए. सवाल उठाने वाले उठाएंगे, उनकी परवाह नहीं करनी चाहिए. जीवन आपका है इसे किस तरह से जीना है, किस तरह से आपको खुश रहना है, यह आपको खुद को तय करना है.

Last Updated :May 8, 2022, 6:28 AM IST
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