सागर। मध्यप्रदेश के सबसे बड़े वन्यजीव अभ्यारण्य नौरादेही अभ्यारण्य में बाघ किशन (एन-2) की मौत का मामला तूल पकड़ रहा है. इस मामले में कई वन्यजीव प्रेमियों ने नौरादेही अभ्यारण्य की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े किए हैं. इसकी शिकायत एनटीसीए ( राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण) में की गयी है. शिकायतकर्ता वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे का कहना है कि "अभ्यारण्य के वरिष्ठ अधिकारियों को बाघों के बीच संघर्ष और घायल होने की खबर थी, लेकिन उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया. करीब 5 दिन बाद बाघ का इलाज शुरू किया गया और फिर उसको नहीं बचाया जा सका है. शिकायतकर्ता ने एनटीसीए से एक जांच टीम भेजकर बाघ की मौत के मामले की जांच कराने की मांग की है. (Ntca Reached Case Of Death Tiger Kishan Nauradehi)
क्या है मामला: नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य में टेरिटोरियल फाइट के चलते करीब 10 दिन पहले दो बाघों में संघर्ष हो गया था. जिसकी जानकारी प्रबंधन को करीब 5 दिन बाद मिली और टेरिटोरियल फाइट में गंभीर रूप से घायल हुए बाघ किशन का इलाज शुरू किया गया. लगातार तीन दिन चले इलाज के बाद भी बाघ किशन ने दम तोड़ दिया. दरअसल किशन ने नौरादेही रेंज में बमनेर नदी के पास अपनी टेरिटरी बनायी थी. कुछ दिन पहले बाहर से आया एक बाघ एन-3 नौरादेही रेंज से लगी सिंगपुर रेंज में अपनी टेरिटरी बनाया था. कुछ दिनों से नौरादेही में अपनी टेरिटरी बनाना चाह रहा था. इस वजह दोनों के बीच कई बार टेरिटोरियल फाइट हुई और 7-8 जून को हुई टेरिटोरियल फाइट में किशन गंभीर रूप से घायल हो गया और इलाज में देरी के चलते उसने दम तोड़ दिया.
पेट्रोलिंग टीम ने टेरिटोरियल फाइट के दिन ही दी थी सूचना: अभ्यारण्य प्रबंधन के सूत्रों और नौरादेही के आसपास रहने वाले लोगों ने बताया कि "7 और 8 जून को बाघों के संघर्ष के चलते काफी तेज आवाजें आ रही थी. इसकी जानकारी अभ्यारण्य के लोगों को भी थी. उनका कहना था कि बाघ लड़ रहे हैं. दोनों के बीच टेरिटोरियल फाइट की खबर को गंभीरता से नहीं लिया गया और मामूली मानकर टाल दिया गया. 12 जून को सागर वनवृत्त के सीसीएफ अनिल कुमार सिंह जब नौरादेही दौरे पर पहुंचे, तो बाध एन-2 घायल अवस्था में मिला, तब जाकर आनन-फानन में उसका इलाज शुरू किया और लगातार इलाज किया गया. बाघ को नहीं बचाया जा सका.
नौरादेही अभ्यारण्य में जानवरों के इलाज की सुविधा नहीं: बाघ के घायल होने की जानकारी वैसे भी 4 दिन बाद मिली और जानकारी मिलने के बाद इलाज में 24 घंटे की देरी इसलिए हो गयी कि नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य द्वारा पन्ना टाइगर रिजर्व सूचना दी गयी. दूसरे दिन पन्ना टाइगर रिजर्व के डाक्टर संजीव गुप्ता पहुंचे. तब जाकर इलाज शुरू हो सका. तीन दिन तक डॉ. संजीव गुप्ता ने बाघ किशन का इलाज शुरू किया.
एक हजार वर्ग किमी से ज्यादा क्षेत्रफल में वाहनों की कमी: नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य जिसको टाइगर रिजर्व घोषित किए जाने की अधिसूचना बस जारी होना बाकी है. वहां के ये हालत है कि अभ्यारण्य का 1097 वर्ग किमी क्षेत्रफल होने के बावजूद वाहनों की कमी के कारण पेट्रोलिंग और बाघों की सुरक्षा में कई परेशानी आती है. वाहनों की कमी के चलते कर्मचारियों को भी पेट्रोलिंग में बहानेबाजी और लापरवाही का मौका मिल जाता है.
क्या कहना है शिकायतकर्ता वन्यजीव प्रेमी का: मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट कहलाता है और यहां पर बाघों की संख्या काफी ज्यादा है. दुर्भाग्य से कई वर्षों से हम बाघों की मौत के मामले में भी नंबर वन है. हाल ही में नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य जिसे टाइगर रिजर्व बनाया जा रहा है. वहां से एक गंभीर घटना की जानकारी मिली है कि वहां पर एक बाघ जिसके एक साल पहले ही दांत टूट गए थे. उसके मामले में अभ्यारण्य प्रबंधन लापरवाह रहा. उसकी एक बाघ से संघर्ष के दौरान मौत हो गयी. जब 7 और 8 जनवरी को बाघ एन-2 और एन-3 के बीच संघर्ष हुआ, तो पेट्रोलिंग कर रहे वन्यकर्मी ने वायरलेस के जरिए अपने वरिष्ठ अधिकारी को सूचना दी. लेकिन वहां पर किसी भी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया.
12 जून को सागर वृत्त के सीसीएफ पहुंचे, तब घायल अवस्था में बाघ मिला और आनन-फानन में इलाज शुरू हुआ. नौरादेही में सुविधाओं का अभाव है. वहां पर पर्याप्त मात्रा में वाहन नहीं है. विशाल क्षेत्रफल में फैले वन्यजीव अभ्यारण्य की पेट्रोलिंग में लापरवाही में बरती जाती है. नौरादेही में वाइल्डलाइफ ट्रैंड अधिकारी कर्मचारी नहीं है. नौरादेही वन्यजीव अभ्यारण्य के बदतर हालातों को लेकर हमनें एनटीसीए में शिकायत दर्ज की है. उनसे मांग की है कि तत्काल एक जांच टीम भेजी जाए और भविष्य में टाइगर रिजर्व के रूप में स्थापित होने वाले नौरादेही टाइगर रिजर्व को ध्यान रखते हुए व्यवस्थाओं में सुधार किया जाए.