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1857 की क्रांति का गवाह है यह चर्च, सिंधिया राजवंश से मिला था अनोखा तोहफा, जानिए खासियत

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Published : Dec 23, 2021, 6:15 AM IST

Updated : Dec 23, 2021, 7:33 AM IST

ग्वालियर में 300 साल पहले बना क्राइस्ट चर्च इतिहास के लम्हों को अपने में समेटे है. (History of Christ Church of Gwalior) 1857 की क्रांति हो या देश की आजादी. सभी का साक्षी है यह चर्च. इस चर्च को सिंधिया राजवंश के राजा माधवराव प्रथम ने खास तोहफा भी दिया था. जिसका स्तेमाल हर साल क्रिसमस के दिन किया जाता है. हर साल देश-विदेश से पर्यटक इस चर्च को देखने आते है. जानिए इस चर्च की खासियत...

300 year old church in gwalior
ग्वालियर में 300 साल पुराना चर्च

ग्वालियर। ब्रटिश काल का वह चर्च जो 1857 की क्रांति, देश की आजादी, देश का बंटवारा और कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी है. क्रिसमस के मौके पर हम आपको ऐसे चर्च के बारे में बताएंगे. इसका इतिहास 300 साल पुराना है. ब्रिटिश काल में ग्वालियर के उपनगर मुरार में बना यह 300 साल पुराना क्राइस्ट चर्च है. इस चर्च की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसकी बनावट ब्रिटिश शैली की है. क्रिसमस के मौके पर हर साल देश-विदेश से सैलानी क्राइस्ट चर्च को देखने के लिए ग्वालियर आते हैं. इसकी बनावट और सुंदरता अपने आप में अनोखी है. क्रिसमस के मौके पर यहां कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं. (History of Christ Church of Gwalior)

ग्वालियर में 300 साल पुराना चर्च

ब्रिटिश आर्मी ने बनवाया था क्राइस्ट चर्च

ग्वालियर के मुरार में 1775 में क्राइस्ट चर्च का निर्माण एक ब्रिटिश ऑफिसर ने करवाया था. उस समय इस चर्च को ग्वालियर ब्रिटिश आर्मी का गढ़ माना जाता था. क्राइस्ट चर्च में ब्रिटिश आर्मी के ऑफिसर प्रार्थना करने आते थे. इस चर्च का निर्माण करवाने के लिए ब्रिटिश शासन के दौर में आर्मी के अधिकारियों ने पैसे एकत्रित किए थे. यह क्राइस्ट चर्च 1775 में बनकर तैयार हुआ था, जिसकी पुष्टि 1844 में बंदोबस्त के डाक्यूमेंट्स में हुई थी. लेकिन बाद में चर्च एक्ट 1927 के तहत चर्च ऑफ इंडिया और इंडियन ट्रस्ट एक्ट के तहत इसे डायसिस ऑफ नागपुर को हस्तांतरित कर दिया गया.

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1857 की क्रांति का आगाज और अंजाम का गवाह चर्च

300 साल पुराना यह क्राइस्ट चर्च 1857 की क्रांति का गवाह भी रही है. इस चर्च ने 1857 की क्रांति का आगाज और अंजाम दोनों को देखा है. क्रांति के दौरान ब्रिटिश आर्मी के कई अधिकारी मारे गए थे. इस दौरान चर्च के पास में रहने वाली एक अधिकारी और उनके बच्चों की मौत हुई थी. इस चर्च में मरने वाले लोगों के नाम भी अंकित है. यही वजह है कि क्रिसमस के मौके पर देश और विदेश से कई लोग यहां पर आते हैं. सबसे खास बात यह है यह चर्च आज भी उतना ही सुंदर दिखाई देता है, जितना 300 साल पहले दिखाई देता था.

सिंधिया राजवंश ने दिया था चर्च को अनोखा तोहफा

सिंधिया राजवंश के राजा माधवराव प्रथम ने इस चर्च को एक अनोखा तोहफा दिया था. उन्होंने सन् 1915 में गिफ्ट के रूप में एक बड़ा घंटा इस चर्च को दिया था. तब से लेकर आज तक यह घंटा साल में एक बार क्रिसमस के मौके पर बजाया जाता है. इस चर्च से सिंधिया राजवंश का काफी लगाव रहा है. पिछले साल कोरोना संक्रमण के कारण क्रिसमस के मौके पर इसमें कोई आयोजन नहीं किया गया था, लेकिन इस बार में भव्य आयोजन की तैयारियां की जा रही है.

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Last Updated :Dec 23, 2021, 7:33 AM IST
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