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इतिहास बन गई नैरोगेज की छुक-छुक 'रफ्तार'! दो फीट चौड़े ट्रैक पर 128 सालों से दौड़ रही थी ट्रेन

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Published : Jul 12, 2021, 7:38 AM IST

Updated : Jul 26, 2021, 4:10 PM IST

मैदानी इलाकों में दो फिट चौड़े ट्रैक पर 35 स्टेशनों के 250 गांव के लोगों का भार ढोती दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन के नामोनिशां मिट जाएंगे. इस ट्रैक के स्थान पर ब्रॉडगेज ट्रैक बिछाने की प्रक्रिया आगे बढ़ चुकी है. जल्द ही छुक-छुक करती आवाज खामोश हो जाएगी और उसकी जगह सन्नाटे को चीरती हाई-टेक ट्रेनें पलक झपकते ही नजरों के सामने से ओझल हो जाएंगी.

narrow gauge train
पटरी पर खड़ी नैरोगेज ट्रेन

ग्वालियर। शहर की 128 साल पुरानी लाइफलाइन अब सिर्फ किताब में ही पढ़ी जाएगी और तस्वीरों में देखी जाएगी. दो फीट चौड़े ट्रैक पर 200 किमी तक 35 स्टेशनों के 250 गांवों के लोगों को उनकी मंजिल तक पहुंचाती नैनोगेज ट्रेन अब खुद अपनी ही मंजिल का रास्ता भटक गई है. वक्त के साथ बहुत कुछ बदलता है, जब ग्वालियर शहर में नैनोगेज ट्रेन की शुरुआत हुई थी, उस वक्त ये लोगों के लिए जीवन रेखा बन गई थी, पर धीरे-धीरे इसकी जरूरत भी कम होती गई और अब इसे ब्रॉड गेज रिप्लेस करने के लिए तैयार है. हो सकता है इसके कुछ कलपुर्जों को बतौर विरासत संभाल कर रख लिया जाए, पर हर हाल में अब ये बीते वक्त की ही बात होगी.

नैरोगेज ट्रेन का इतिहास

तत्कालीन महाराजा माधोराव सिंधिया ने 1893 में सिंधिया स्टेट रेलवे की स्थापना की थी, तब महल के अंदर ट्रेन दौड़ी थी, इसके बाद 1904 में नैरोगेज ट्रेन का ट्रैक बढ़ा दिया गया, जोकि उस वक्त की जरूरत थी. तब बैलगाड़ी-पैदल के सिवाय कोई और साधन नहीं था. नैरोगेज ट्रैक पर छुक-छुक करती ट्रेन जब गुजरती थी, लोगों का दिल बाग-बाग हो जाता था. क्योंकि इस ट्रेन की रफ्तार के साथ ही लोगों की जीवन शैली भी तेजी से बदलने लगी थी.

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नैरोगेज ट्रेन का ट्रैक

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भले ही इस ट्रेन को बंद करने की करीब-करीब पूरी तैयारी हो चुकी है, पर उस वक्त इस ट्रेन को ट्रैक पर दौड़ाना बेहद मुश्किल था. अब इस ट्रेन को बंद कराने के लिए सिंधिया घराने के वारिस राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने खुद ही रेल मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा है, ताकि नैरोगेज के बदले ब्रॉडगेज ट्रैक पर हाई-टेक ट्रेनें दौड़ सकें, जबकि ज्योतिरादित्य के पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया ने खुद रेल मंत्री रहते हुए इस ट्रेन को अपग्रेड कराया था. यह ट्रेन ग्वालियर शहर की शान हुआ करती थी.

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पटरी पर खड़ी नैरोगेज ट्रेन

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एक वक्त में ये दुनिया की सबसे बड़ी नैरोगेज ट्रेन लाइन होने का इसे तमगा हासिल था. जो कोरोना महामारी के दौर में ही संक्रमण की शिकार हो गई और अब ये सिमट कर ग्वालियर शहर तक रह जाएगी. जबकि इसके पहले इसकी पहुंच कई जिलों तक थी. बस बतौर विरासत इसे अब संभालने की तैयारी है, ताकि भविष्य में भी सनद रहे. मैदानी इलाकों में 128 वर्षों से दो फिट चौड़े ट्रैक पर 200 किलोमीटर लंबी दूरी तय करती नैरोगेज ट्रेन हजारों ग्रामीणों के लिए परिवहन का महत्वपूर्ण साधन रही है. जिसे ब्रॉड गेज में बदलने के लिए जल्द इस विरासत को ध्वस्त कर दिया जाएगा.

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साल 2020 में जब देश में कोरोना वायरस ने दस्तक दी और लॉकडाउन लगाया गया, तब से देश में कई बदलाव देखने को मिले. उस वक्त ग्वालियर-चंबल अंचल के लिए सबसे बड़ा बदलाव यही रहा कि दो साल से बंद पड़ी दुनिया की सबसे लंबी नैरोगेज ट्रेन इतिहास के पन्नों में सिमट गई. अब उसकी जगह ब्रॉडगेज ट्रेन चलाने की शुरुआत हो चुकी है. ग्वालियर से श्योपुर के बीच डिस्मेंटल टेंडर भी जारी कर दिया गया है. जल्द ही डिस्मेंटल प्रक्रिया शुरू हो जाएगी.

Last Updated :Jul 26, 2021, 4:10 PM IST
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