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खजुराहो का हजारों साल पुराना विश्वनाथ मंदिर, जिसे कहते हैं काशी विश्वनाथ की फर्स्ट कॉपी

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Published : Jul 13, 2020, 1:57 PM IST

खजुराहो में विश्वनाथ मंदिर है, जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर की फर्स्ट कॉपी माना जाता है. हजारों साल पुराने इस मंदिर को खजुराहो के शासक राजा धंग देव ने बनवाया था.

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काशी विश्वनाथ की फर्स्ट कॉपी

छतरपुर। श्रावण माह में शिवालयों में भक्तों का तांता लगा रहता है. भोलेनाथ के भक्तों के बीच महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में बनारस का काशी विश्वनाथ मंदिर अत्यंत लोकप्रिय है. काशी विश्वनाथ की ही तर्ज पर खजुराहो में भी एक मंदिर का निर्माण कराया गया था, जिसे विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है. हजारों साल पुराने इस मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर की फर्स्ट कॉपी माना जाता है. विश्व पर्यटक स्थल खजुराहो को कभी शिवनगरी के नाम से जाना जाता था. विश्वनाथ मंदिर का निर्माण खजुराहो में सन 1002 से 1003 ई. के बीच किया गया था. इसे बनारस के काशी विश्वनाथ मंदिर की फर्स्ट कॉपी माना जाता है. मंदिर का नाम भगवान शिव के पहले नाम 'विश्वनाथ' के नाम पर किया गया है. इस मंदिर की लंबाई 89 और चौड़ाई 45 फीट है. मंदिर में शिवलिंग के साथ-साथ गर्भ गृह में नंदीपारा रोहित शिव की प्रतिमा स्थापित किया गया है.

काशी विश्वनाथ की फर्स्ट कॉपी

खजुराहो में स्थित भगवान शिव के विश्वनाथ मंदिर का निर्माण हजारों साल पहले खजुराहो के शासक राजा धंग देव ने कराया था. ये मंदिर राजा ने हूबहू काशी विश्वनाथ मंदिर की तर्ज पर बनवाया था. जानकारों के मुताबिक बनारस में बने काशी विश्वनाथ मंदिर को कई मुस्लिम आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था. जिसके बाद देवी अहिल्या बाई ने उसका निर्माण दोबारा करवाया था. खजुराहो स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर ज्यों का त्यों है. यही वजह है कि इस मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर की फर्स्ट कॉपी कहा जाता है. इस मंदिर के सामने नंदी के लिए अलग से एक मंडप का निर्माण कराया गया है, जिसे नंदी मंडप के नाम से जाना जाता है.

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जानकारी के मुताबिक इस मंदिर पर आक्रमण हुआ था, जिसके बाद से यहां पूजा नहीं की जाती है. हिंदू सनातन धर्म में मान्यता है कि खंडित मूर्तियों की पूजा नहीं की जाती है. आक्रमण के बाद यहां की मूर्तियां खंडित हो गई थी, जिसकी वजह से यहां पूजा बंद है. भले ही इस मंदिर में अब पूजा नहीं होती है, लेकिन आज भी ये मंदिर लोगों की गहरी आस्था का केंद्र है. मंदिर के दर्शन के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों लोग आते हैं और सभी की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हजारों साल बीत जाने के बाद भी मंदिर की चमक और उसकी बनावट जस की तस बनी हुई है.

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