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MP High Court: मौत की सजा के मामले में हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी- 'न्यायाधीशों को खून का प्यासा नहीं होना चाहिए'

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Published : Jun 26, 2023, 7:49 AM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि न्यायाधीशों को खून का प्यासा नहीं होना चाहिए.अपराध की प्रकृति के कारण किसी को दोषी नहीं माना जाना चाहिये. जब तक आरोप पूरी तरह साबित नहीं हो जाए. किसी को फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता. मामला बुरहानपुर जिला न्यायालय से संबंधित है.

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MP High Court: मौत की सजा के मामले में हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

जबलपुर। हाईकोर्ट जस्टिस सुजय पॉल तथा जस्टिस एके पालीवाल ने जिला न्यायालय द्वारा विभिन्न धाराओं के तहत दी गई मृत्युदंड सहित अन्य सजा को खारिज करने के आदेश जारी किए हैं. बुरहानपुर जिला न्यायालय ने मृत्युदंड की पुष्टि के लिए प्रकरण को हाईकोर्ट भेजा था. इसके अलावा मृत्युदंड की सजा के खिलाफ विजय उर्फ पिन्टया उम्र 35 साल ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी.

मासूम से रेप व हत्या का केस : अभियोजन के अनुसार बुरहानपुर जिले के ग्राम मोहदा में 15 अगस्त 2018 को घर के सामने खेल रही बच्ची का अपहरण हो गया था. अपहरण करने के बाद आरोपी उसे खेत में बने बाड़े में ले गया और उसके साथ दुराचार किया. इस दौरान उसने बच्ची की गला दबाकर हत्या कर दी. बच्ची का शव तीन दिन बाद 18 अगस्त को चिदिंया नाले के किनारे निर्वस्त्र अवस्था में मिला था. बच्ची की फ्रॉक कुछ दूरी पर मिली थी. पुलिस ने पतासाजी के दौरान पाया कि आरोपी ने दो शादी की थी और दोनों पत्नी उसे छोड़कर चली गयी थी.

जिला न्यायालय ने दी फांसी की सजा : इसके अलावा आरोपी गांव की नाबालिग के साथ छेड़छाड़ करता था और भैंस के साथ भी आप्राकृतिक मैथुन किया था. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत किया था. न्यायालय ने सुनवाई के बाद आरोपी को 8 मार्च 2019 को दो धाराओं के तहत मृत्युदंड की सजा से दण्डित किया था. न्यायालय ने अन्य धाराओं के तहत उसे कारावास व अर्थदण्ड की सजा से दण्डित किया था. युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पीएम तथा डीएनए रिपोर्ट के आधार पर अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि पीड़िता के साथ कोई यौन उत्पीड़न हुआ.

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पर्याप्त सबूत क्यों नहीं जुटाए : इसके अलावा आरोपी के कपाल व गालों में निशान पाये गये थे. बच्ची को दफनाने के पहले उसके नाखून के नमूने नहीं लिये गये. एसडीएफ की अनुमत्ति लेकर बाद में शव को निकलवाने के बाद नाखून के नमूले लिये गये. डीएनए रिपोर्ट के अनुसार बच्ची के नाखून में कोई पुरुष प्रोफाइल नहीं मिली. अभियोजन की लापरवाही के कारण सबूत नष्ट हो गये. इसके अलावा फ्रॉक की फोटो तक नहीं ली गयी. गवाहों ने फ्रॉक के रंग व प्रिंट के संबंध में अलग-अलग साक्ष्य दिए. युगलपीठ ने अभियोजन के इस तर्क को दरकिनार कर दिया कि जनता के दवाब व आक्रोश के कारण जांच में तकनीकी त्रुटियां हुई हैं.

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