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Vinayaka Chaturthi Vrat : जानिए कैसे रखें विनायक चतुर्थी व्रत, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि व महत्व

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Published : Jun 2, 2022, 9:25 PM IST

चतुर्थी तिथि और बुधवार भगवान गणेश को समर्पित है. चतुर्थी तिथि प्रत्येक मास में दो बार आती है, जिसमें गणपति की पूजा की जाती है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी कहा जाता है, और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) कहते हैं. भारतीय संस्कृति में सबसे पहले उनको ही पूजा जाता है. जून माह में विनायक चतुर्थी व्रत (Vinayaka Chaturthi Vrat) 3 जून 2022 शुक्रवार को है.

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विनायक चतुर्थी व्रत 3 जून 2022

ईटीवी भारत डेस्क : हर महीने शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी के दिन विनायक चतुर्थी व्रत (Vinayaka Chaturthi Vrat) किया जाता है. यह चतुर्थी भगवान श्री गणेश को समर्पित है. इस दिन श्री गणेश की पूजा दोपहर-मध्याह्न में की जाती है. बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करना लाभदायी होता है. इस दिन गणेश जी की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन-दौलत, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान और बुद्धि की भी प्राप्ति होती है. संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत हर महीने में कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है. हर महीने में शुक्ल पक्ष चतुर्थी को विनायक गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है. इसमें चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है. यदि 2 दिन का चंद्रोदय व्यापिनी हो तो प्रथम दिन का व्रत करना चाहिए. ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी के दिन विनायकी चतुर्थी दोनों मनाई जाती है. इस बार विनायक गणेश चतुर्थी 3 जून 2022 शुक्रवार को है. अक्षत, फूल से विधिवत पूजन कर, चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए. भली प्रकार उनका पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए स्वयं तेल वर्जित एक बार भोजन करना चाहिए.

जून माह (ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी) की विनायक चतुर्थी 3 जून 2022 शुक्रवार को है. ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी को सुबह उठकर स्नान, ध्यान कर दाहिने हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और फूल लेकर संकल्प करना चाहिए. इस मंत्र को बोलें- मम् वर्तमान आगमिक सकल संकट निरसन पूर्ण सकल अद्विय सिद्धये विनायक चतुर्थी व्रतं अहं करिष्ये. मंत्र के साथ व्रत का संकल्प लेकर दिन भर उसे मौन रहना चाहिए. इसके बाद शाम को एक बार फिर से स्नान ध्यान कर चौकी या बेदी पर गणेश जी की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद गणेश जी के 16 नामों के द्वारा षोडशोपचार कर उनका पूजन करना चाहिए. कपूर या घी की बत्ती जला कर उनकी आरती करनी चाहिए. इसके बाद मंत्र पुष्पांजलि करनी चाहिए.

यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथामानि आसन् तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याः संति देवा:

इस मंत्र के बाद सुपारी अक्षत जो भी सामग्री हो उसे भगवान को चढ़ा कर वहां उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करना चाहिए. इसके बाद चंद्रोदय होने पर चंद्रमा का भी गंध, अक्षत, फूल से विधिवत पूजन कर, चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए. ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्री विनीत शर्मा ने बताया कि भगवान गणेश को दूर्वा की माला दूर्वा आदि चढ़ाया जाता है. भगवान गणेश को मोदक का लड्डू भी अत्यंत प्रिय है. यह भगवान गणेश (Lord Ganesh) को चढ़ाना चाहिए. 10,11,21 की संख्या में गणेश जी को लड्डू का भोग लगाया जाना चाहिए. 5 लड्डू पुरोहितों को देना चाहिए और शेष श्रद्धा पूर्वक बंधु-बांधव के साथ परिवारजनों को आस्थापूर्वक बांट देना चाहिए. भगवान गणेश को धूप, दीप अबीर, चंदन, फल, फूल, बंधन, कुमकुम, शुद्ध जल, गंगाजल, दूध, दही, पंचामृत, उप वस्त्र, वस्त्र, ऋतु फल, का अभिषेक करना चाहिए. आज के दिन गणेश चालीसा, गणेश अथर्वशीर्ष, गणेश सहस्त्रनाम, गणेश की आरती, गणेश वंदना श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए. रात्रि के समय चंद्र दर्शन के बाद ही चंद्र देवता को अर्ध्य देकर उपवास का समापन किया जाता है. चंद्र अर्ध के बाद ही फल फूल दूध आदि से उपवास तोड़ना चाहिए. आज के शुभ दिन गजराज यानी हाथी का दर्शन शुभ माना गया है. यदि हाथी नजर आए तो उसे गन्ना, केला, हरी घास अर्पित करने का विधान है. भगवान श्री गणेश जी को केला और गन्ना विशेष रूप से प्रिय हैं.

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चंद्रमा का पूजन! इस विषय में ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि पार्वती जी ने गणेश जी को प्रकट किया था. उस समय चंद्र, इंद्र सभी देवताओं ने आकर गणेश जी दर्शन किया,लेकिन शनिदेव इससे दूर ही रहे. इसका कारण यह है कि उनकी दृष्टि जिनके ऊपर पड़ती है,उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता है,वह काला हो जाता है. लेकिन पार्वती जी के उलाहना और ताना मारने से शनि ने बालक को देखने का निर्णय लिया. शनिदेव ने जैसे ही अपनी दृष्टि गणेश जी पर डाली गणेश जी का मस्तक उड़कर अमृतमय चंद्र मंडल में चला गया. माना जाता है कि चंद्रमा में उनका मुख आज भी पड़ा हुआ है, इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन और पूजन किया जाता है.

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दूसरी कथा के अनुसार पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से गणेश जी को उत्पन्न किया. एक दिन पार्वती जी नहाने चली गईं तो शिवजी आए. गणेश जी ने शिवजी को अंदर जाने नहीं दिया. तब शिव जी ने त्रिशूल से गणेश जी की गर्दन काट दी. त्रिशूल से गर्दन कटने के बाद गणेश जी का मस्तक चंद्रलोक में चला गया. इधर पार्वती जी की प्रसन्नता के लिए शिवजी ने हाथी के बच्चे का मुख गणेश जी को लगा दिया. ऐसा मानना है कि गणेश जी का मस्तक चंद्रमा में है. इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन किया जाता है. यह व्रत 4 या 13 वर्ष का है. इसके बाद विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए.

मोदक लेकर गणेश जी के 21 नाम से पूजा: विनायक चतुर्थी व्रत (Vinayaka Chaturthi Vrat) के उद्यापन में 21 मोदक लेकर 21 बार गणेश जी के नामों का उच्चारण करना चाहिए. इसके बाद अपनी क्षमता के अनुसार दान कर सकते हैं. 21 मोदक में से 10 मोदक अपने लिए, 10 मोदक ब्राह्मणों के लिए और एक मोदक गणेश जी के लिए छोड़ देना चाहिए. भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा महत्व गणेश जी का है. इसलिए सबसे पहले उनको ही पूजा जाता है. वो हर किसी की रिक्तता की पूर्ति करते हैं. जब कोई रास्ता न दिखे,विघ्न दिखे,तो गणेश जी का पूजन करना चाहिए. इससे इंसान को यश, बुद्धि, धन और वैभव मिलता है. समस्त प्रकार की मंगल कामनाएं गणेश जी की पूजा से पूर्ण होती हैं. रविवार को चतुर्थी तिथि होने की वजह से इस बार पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है.

विनायक चतुर्थी शुभ मुहूर्त : हिन्दू पंचांग के अनुसार 03 जून, शुक्रवार को ज्येष्ठ शुक्ल चतुर्थी तिथि रात 12:17 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि अगले दिन को देर रात 02:41 मिनट पर समाप्त होगी. हिन्दू पंचांग के अनुसार विनायक चतुर्थी के दिन वृद्धि, ध्रुव, सर्वार्थ सिद्धि व रवि योग का निर्माण हो रहा है. शास्त्रों में इन योगों को बेहद शुभ माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग सुबह 05:57 से शाम 07:03 बजे तक रहेगा.

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