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शराबबंदी पर सियासी संग्राम जारी, सरकार 'रिस्क' लेने को नहीं है तैयार, किनारे किए सामाजिक सरोकार

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Published : Jan 22, 2022, 10:15 PM IST

liquor banned politics in mp
मध्य प्रदेश में शराबबंदी पर सियासत तेज

मध्यप्रदेश में शराबबंदी को लेकर सियासी संग्राम (politics occurring on liquor) छिड़ा हुआ है. इस सब के बीच सरकार ने नई आबकारी नीति लाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं. सरकार ने यह साफ कर दिया है कि (important factor to generate revenue) राजस्व से कोई समझौता नहीं होगा.

भोपाल। मध्यप्रदेश में शराबबंदी को लेकर सियासी संग्राम (politics occurring on liquor) छिड़ा हुआ है. कुछ नेता पार्टी लाइन हैं. कुछ इसके समर्थन में हैं तो कुछ विरोध में विपक्ष भी सरकार को ऐसा कर दिखाने की चुनौती दे रहे हैं. इस सब के बीच सरकार ने नई आबकारी नीति लाकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं. नई आबकारी नीति लाकर सरकार ने यह भी साफ कर दिया है कि (important factor to generate revenue)राजस्व से कोई समझौता नहीं होगा. ऐसे में अब सवाल उठता है कि सीएम शिवराज सिंह के उस वादे का क्या हुआ जो उन्होंने 2017 में किया था कि वे प्रदेश में क्रमवार शराबबंदी करेंगे, लेकिन 2022 तक आते-आते क्या 'सरकार' इसे भूल चुके हैं.

शराबबंदी भूल सस्ती शराब बेचेगी सरकार
2022 में सरकार ने नई आबकारी नीति का ऐलान किया है. जिसमें प्रदेश में शराब पर टैक्स घटा दिया गया है. इसकी कीमत 20 फीसदी तक सस्ती कर दी गई है. साथ शराब बिक्री के लिए ठेकेदारों के बीच कंप्टीशन बढ़ाने के इरादे से अलग-अलग समूहों को इसके ठेके देने की प्रक्रिया अपनाई जाएगी. बड़े मॉल, एयरपोर्ट यहां तक की घर में भी बार बनाने की सुविधा देने का ऐलान कर चुकी है. शराबबंदी की बात भूले सीएम साहब ने शराब को सस्ती करने का प्रस्ताव अपनी कैबिनेट से भी पास कर दिया है.

शराबबंदी से सरकार को ऐतराज क्यों?
-मध्य प्रदेश सरकार पर इस वक्त 2 लाख 85 हज़ार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है. विपक्ष इसे लगातार मुद्दा बनाता रहा है.

-सरकार के खर्चे और कर्ज को देखते हुए शिवराज सरकार शराबबंदी का रिस्क नहीं ले सकती है.

-पिछले साल शराब से सरकार को करीब 12,000 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था.

- पिछले 5 साल के आकंड़े देखें तो सरकार को शराब से होने वाली आमदनी साल-दर साल बढ़ती जा रही है.

सालशराब से आया राजस्व
2016-17 7521 करोड़
2017-18 8338 करोड़
2018-19 9526 करोड़
2019-20 10778 करोड़
2020-2111997 करोड़

कोरोना काल में भी शराब पर वैट के जरिए खूब हुई कमाई
मध्यप्रदेश सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान साल 2019-20 की तुलना में साल 2020-21 में शराब बिक्री से 26.14 फीसदी रेवेन्यू इकट्ठा किया है.

- साल 2020-21 के दौरान शराब पर वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) के तौर पर राजस्व का संग्रह पिछले साल (2019-20) की तुलना में 26.14 फीसद बढ़ा है. यह बढ़कर 1183.58 करोड़ रुपये रहा जबकि 2019-20 में यह 938.28 करोड़ और 2018-19 में 632.27 करोड़ रुपए था.

- वित्त मंत्री ने सदन को इस बात की भी जानकारी दी थी कि प्रदेश में दुकानों पर शराब की बिक्री पर 10 प्रतिशत वैट, रेस्तरां और बार में शराब की बिक्री पर 18 प्रतिशत वैट है.

- मध्यप्रदेश में देसी शराब दुकान 2541, विदेशी 1070, बार लाइसेंस (होटल,रेस्टोरेंट क्लब) 358, बोटलिंग इकाइयां 34 हैं.

सरकार लाई हैरिटेज वाइन पॉलिसी

हाल ही में आदिवासी वोट बैंक को साधने की तरकीब के तौर पर सरकार ने नई हेरिटेज आबकारी नीति (Heritage Wine Policy Madhya Pradesh) का भी ऐलान किया है. इसके तहत महुए से बनी शराब भी सरकारी लाइसेंस वाली दुकानों से बेची जा सकेगी. सरकार के इस निर्णय के पीछे तर्क था कि इससे शराब का अवैध उत्पादन और बिक्री रुकेगी. खास बात यह भी है इससे सरकार को हर साल करीब 300 करोड़ रुपये का राजस्व भी मिलेगा.

पड़ोसी राज्यों से महंगी शराब, लेकिन राजस्व कम
मध्य प्रदेश में शराब की कीमत पडोसी राज्यों से ज्यादा है, लेकिन शराब से होने वाली कमाई के मामले में प्रदेश अपने पड़ोसी प्रदेशों से पीछे हैं. इसकी बड़ी वजह है पड़ोसी राज्यों से सस्ती शराब लाकर मध्य प्रदेश में अवैध तरीके से बिकना है. उत्तरप्रदेश और राजस्थान में शराब की कीमत मध्यप्रदेश के मुकाबले कम है. बावजूद इसके पड़ोसी राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों में शराब की अवैध बिक्री की जा रही है. इससे सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व का नुकसान हो रहा है. इस नुकसान को रोकने के लिए सरकार शराब की कीमत कम करके प्रदेश में अवैध शराब की ब्रिकी को रोकना चाहती है. अवैध शराब की बिक्री रुकने से सरकार को राजस्व का भी लाभ होगा.

कमाई के चक्कर में सामाजिक दायित्व भूली सरकार
हर तरीके से शराब से मिलने वाले राजस्व को बढ़ाने में जुटी सरकार अपने सामाजिक दायित्व को भूलती जा रही है. पिछले 5 सालों से शराब से सरकार की आय तो बढ़ी लेकिन नशा मुक्ति केंद्रों पर किया जाने वाला सरकारी खर्च कम होता चला गया. बजट में इसके लिए मजह 73 लाख रुपए के बजट का ही प्रावधान किया गया है. जबकि 2018 में नशा मुक्ति के लिए सालाना बजट ₹10 करोड़ था. प्रदेश में नशा मुक्ति के लिए सरकार से अनुदान प्राप्त 17 नशा मुक्ति केंद्र चल रहे हैं, लेकिन इन नशा मुक्ति केंद्रों में पिछले 5 सालों में कितने लोगों की शराब छुड़ाई गई या कितने लोगों ने छोड़ी इसका कोई भी रिकॉर्ड सामाजिक न्याय विभाग के पास नहीं है.

ऐसे घटता गया नशा मुक्ति का बजट
-2016-17 में राज्य सरकार को शराब से साढे 7 हजार करोड़ की आय हुई, जबकि नशा मुक्ति अभियान के लिए सालाना बजट ₹4 करोड़ था.

- 2017-18 में 8338 करोड़ की कमाई हुई. नशा मुक्ति के लिए बजट में बढ़ोतरी की गई और बजट ₹10 करोड़ कर दिया गया.

- 2018-19 में शराब से 9526 करोड़ मिले और इस साल नशा मुक्ति का बजट 11 करोड़ हो गया.

- 2019-20 में 10778 करोड़ रुपए शराब से आमदनी हुई लेकिन कोविड का हवाला देते हुए नशा मुक्ति केंद्रों को दिए जाने वाले बजट में कटौती करते हुए इस 2.72 करोड रुपए कर दिया गया.

- 2020-21 में शराब से 11,997 करोड़ मिले और नशा मुक्ति का बजट मात्र 73 लाख रुपए रखा गया.

बात एक दम साफ है. शराब सरकार की कमाई का बड़ा जरिया है ऐसे में शराब बंदी कर सरकार प्रदेश को और ज्यादा कर्ज के बोझ तले दबाना नहीं चाहती है. कीमत घटाकर, सरकार राजस्व बढ़ाने का दांव चल रही है क्योंकि मध्यप्रदेश में जहां शराब की बिक्री से सरकार को 12 हजार करोड़ के लगभग राजस्व मिलता है वहीं उत्तरप्रदेश में यह 27 हजार 700 करोड़, महाराष्ट्र में 15 हजार करोड़ से ज्यादा है. सिर्फ छत्तीसगढ़ का ही राजस्व मध्य प्रदेश से काफी कम है, जबकि राजस्थान को भी लगभग बराबर ही राजस्व मिलता है, लेकिन आगे आने वाले दिनों में शराब पर सियासी संग्राम किस तरफ जाता है यह देखने लायक होगा. बीजेपी की वरिष्ठ नेता उमा भारती सरकार को शराब बंदी करने को लेकर एक और अल्टीमेटम दे चुकी हैं. वे राज्य में 14 फरवरी से शराब बंदी को लेकर सामाजिक अभियान चलाएंगी.

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