ETV Bharat / sukhibhava

विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस : आनुवांशिक विकार है डाउन सिंड्रोम

author img

By

Published : Mar 21, 2021, 12:44 PM IST

Updated : Mar 21, 2021, 12:53 PM IST

World down syndrome day
विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस

दुनिया भर में लोगों में डाउन सिंड्रोम को लेकर जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 21 मार्च को 'विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस' मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की आधिकारिक वेब साइट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार यूएन महासभा ने दिसंबर 2011 में लोगों को डाउन सिंड्रोम के बारे जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 21 मार्च को 'विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस' मनाए जाने का प्रस्ताव पारित किया था। सबसे पहले इस क्रोमोजोम विकार को लेकर ब्रिटिश डॉक्टर जॉन लैंग्डन डाउनस ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया था, इसलिए उन्हीं के नाम पर इस विकार का नाम रखा गया।

हम अपने आसपास कई बार ऐसे लोग देखते हैं, जिनके ना सिर्फ चेहरे बल्कि शरीर की बनावट तो दूसरों से अलग होती ही है, साथ ही ज्यादातर मामलों में उनमें मानसिक अक्षमताएं भी पाई जाती है। इस शारीरिक असमानता तथा मानसिक अक्षमता का कारण डाउन सिंड्रोम हो सकता है। भारत में 1000 बच्चों में से 1 बच्चा डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा के आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर साल लगभग 3000 से 5000 बच्चे इस क्रोमोजोम विकार के साथ पैदा होते हैं। लेकिन डाउन सिंड्रोम को लेकर अभी भी देश और दुनिया में लोगों में जानकारी का अभाव है। 21 मार्च को 'विश्व डाउन सिंड्रोम दिवस' के अवसर पर ETV भारत सुखीभवा ने इस विकार के बारे में अपने पाठकों को जागरूक करने के उद्देश्य से वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. वीणा कृष्णन से बात की।

क्या है डाउन सिंड्रोम?

डॉ. कृष्णन बताती हैं की यह एक आनुवांशिक विकार है। सामान्यतः एक बच्चा 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होता है, जिनमें से 23 क्रोमोसोम का एक सेट वह अपनी मां से तथा 23 क्रोमोसोम का एक सेट अपने पिता से ग्रहण करता है। जो संख्या में कुल 46 होते हैं। लेकिन यदि बच्चे को उसके माता या पिता से एक अतिरिक्त क्रोमोसोम मिल जाता है, तो वह डाउन सिंड्रोम का शिकार बन जाता है। डाउन सिंड्रोम से पीड़ित शिशु में एक अतिरिक्त 21वां क्रोमोसोम आ जाने से उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है।

सामान्य बच्चों की अपेक्षा, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास की गति धीमी रहती है। इस विकार से पीड़ित लोगों के चेहरे की बनावट दूसरों से अलग होती है, साथ ही उनमें बौद्धिक विकलांगता भी पाई जाती है।

डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और लक्षण

रोग नियंत्रण तथा निवारण केंद्र (सीडीसी) के अनुसार डाउन सिंड्रोम के चिन्ह और इस बीमारी की गंभीरता हर पीड़ित बच्चे में अलग-अलग हो सकती है। डाउन सिंड्रोम के चलते पीड़ितों में नजर आने वाली कुछ शारीरिक भिन्नताएं तथा विकार के चिन्ह इस प्रकार है;

  • चपटा चेहरा, खासकर नाक की चपटी नोक
  • ऊपर की ओर झुकी हुई आंखें
  • छोटी गर्दन और छोटे कान
  • मुंह से बाहर निकलती रहने वाली जीभ
  • मांसपेशियों में कमजोरी, ढीले जोड़ और अत्यधिक लचीलापन
  • चौड़े, छोटे हाथ, हथेली में एक लकीर
  • अपेक्षाकृत छोटी अंगुलियां, छोटे हाथ और पांव
  • छोटा कद
  • आंख की पुतली में छोटे सफेद धब्बे

डॉ. कृष्णन बताती हैं की इसके अतिरिक्त डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों तथा वयस्कों में विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याएं भी पाई जाती है। जैसे ल्यूकेमिया, कमजोर नजर, सुनने की क्षमता में कमी, हृदय रोग, याददाश्त में कमी, स्लीप एपनिया आदि। इसके अलावा उन्हें विभिन्न प्रकार के संक्रमणों का भी खतरा रहता है।

डाउन सिंड्रोम के प्रकार

सीडीसी के अनुसार डाउन सिंड्रोम के तीन मुख्य प्रकार माने गए हैं;

  1. ट्राइसोमी 21 : डाउंस सिंड्रोम का यह सबसे आम प्रकार है। इस विकार से पीड़ित लगभग 95 प्रतिशत बच्चों तथा वयस्कों में डाउन सिंड्रोम का मुख्य कारण ट्राइसोमी 21 ही होता है। ट्राइसोमी 21 में शरीर की हर कोशिका में दो की बजाय तीन गुणसूत्र होते है।
  2. ट्रांसलोकेशन डाउन सिंड्रोम : इस अवस्था में गुणसूत्र 21 के कुछ अतिरिक्त तत्व अन्य गुणसूत्रों से जुड़ जाते हैं। डाउन सिंड्रोम वाले करीब चार प्रतिशत शिशुओं में इस विकार का कारण ट्रांसलोकेशन डाउन सिंड्रोम होता है।
  3. मोजेक डाउन सिंड्रोम : इस अवस्था में शरीर की केवल कुछ कोशिकाओं में ही अतिरिक्त गुणसूत्र 21 होता है। इस प्रकार में ट्राइसोमी 21 तथा ट्रांसलोकेशन डाउन सिंड्रोम, दोनों के लक्षणों का मेल होता है। डाउन सिंड्रोम वाले करीब दो प्रतिशत पीड़ितों में विकार का कारण मोजेक डाउन सिंड्रोम होता है।

कब बढ़ती है डाउन सिंड्रोम होने की आशंका

डॉ. कृष्णन बताती हैं की यदि कोई महिला 35 या उसके अधिक उम्र के बाद गर्भवती होती हैं, तो ऐसी अवस्था में जन्म लेने वाले बच्चों में डाउन सिंड्रोम होने की आशंका ज्यादा रहती है। इसके अतिरिक्त परिवार में डाउन सिंड्रोम का इतिहास रहा हो, विशेषकर माता-पिता के भाई- बहन में किसी को डाउन सिंड्रोम हो या फिर अगर पहले बच्चे को डाउन सिंड्रोम है, तो दूसरे बच्चे में भी इसका खतरा बढ़ जाता है।

इसीलिए चिकित्सक एमनियोसेंटेसिस टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। यह एक डायग्नोस्टिक टेस्ट होता है, जिसका इस्तेमाल आनुवांशिक स्वास्थ्य स्थितियों की पुष्टि करने के लिए किया जाता है। बच्चे में डाउन सिंड्रोम होने की पुष्टि के लिए यह टेस्ट करवाया जाता है।

पढ़े: सीमित ही सही लेकिन क्षमताओं का जश्न है विश्व डाउन सिंड्रोम माह

क्या डाउन सिंड्रोम का इलाज संभव है?

डॉ. कृष्णन बताती हैं की डाउन सिंड्रोम का पूरी तरह कोई इलाज संभव नहीं है और यह ताउम्र तक चलने वाली समस्या है। हालांकि समय से इलाज प्रारंभ करने पर इसके लक्षणों को नियंत्रण में किया जा सकता है। साथ ही यदि बच्चों में इसका इलाज जल्दी प्रारंभ कर दिया जाये, तो नियमित स्वास्थ्य जांच की मदद से उनके शारीरिक समस्याओं को नियंत्रण में रख कर उनके स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। साथ ही विभिन्न थेरेपी की मदद से उनकी बौद्धिक क्षमताओं, जरूरी आदतों तथा मोटर कौशल को बेहतर किया जा सकता है।

डॉ. कृष्णन बताती हैं की डाउन सिंड्रोम से पीड़ित देखने में भले ही अलग लगे, लेकिन यह साबित हो चुका है की थोड़े से प्रयासों से वह भी सामान्य जीवन जी सकते हैं।

Last Updated :Mar 21, 2021, 12:53 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.