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भारत-बांग्लादेश सीमा पर चाय उगाने का मार्ग प्रशस्त, चाय उद्योग होगा को फायदा

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Published : Aug 4, 2019, 4:28 PM IST

पश्चिम त्रिपुरा जिले में एक छोटे से चाय उत्पादक अनिमेश देब ने कहा, "बीएसएफ अधिकारी हर रोज एक निश्चित समय पर सीमा द्वार खोलते हैं, जिसमें हमें पौधों के पोषण की अनुमति मिलती है. चाय की खेती की मवेशियों से रखवाली की जरूरत नहीं होती है."

भारत-बांग्लादेश सीमा पर चाय उगाने का मार्ग प्रशस्त, चाय उद्योग होगा को फायदा

रंगमूरा: त्रिपुरा में एक चाय उत्पादक ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर खाली पड़ी जमीन पर चाय उगाने का मार्ग प्रशस्त किया है. इस उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि इस पहल से राज्य के चाय क्षेत्र को फायदा हो सकता है.

पश्चिम त्रिपुरा जिले में एक छोटे से चाय उत्पादक अनिमेश देब ने कहा, "बीएसएफ अधिकारी हर रोज एक निश्चित समय पर सीमा द्वार खोलते हैं, जिसमें हमें पौधों के पोषण की अनुमति मिलती है. चाय की खेती की मवेशियों से रखवाली की जरूरत नहीं होती है."

देब की पहल बीएसएफ और उस समय के बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) के बीच 1975 सीमा समझौते के अनुपालन में है. इस समझौते के तहत वास्तविक सीमा या शून्य रेखा के बीच 137.16 मीटर तक चार फुट से अधिक ऊंचाई पर संरचनाओं के निर्माण और दोनों तरफ बाड़ लगाने पर रोक है.

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देब ने कहा, "वर्ष 2014 में घुसपैठ, तस्करी और सीमा पर अन्य अपराधों की जांच के लिए बाड़ बनाये जाने के बाद बाड़ के निकट भूमि का बड़ा भाग खाली हो गया. क्योंकि सब्जियां उगाना एक विकल्प नहीं था और चाय उगाने के लिए भूमि और मौसम अनुकूल लग रहा था, इसलिए मैंने यह पहल की."

चाय उत्पादक ने कहा कि वह बाड़ और शून्य रेखा के बीच छह हेक्टेयर में चाय उगाने से सालाना पांच लाख रुपये की कमाई करेंगे.

उसकी सफलता से उत्साहित, त्रिपुरा चाय विकास निगम (टीटीडीसी) के अध्यक्ष संतोष साहा ने सीमा पर इस पहल का विस्तार करने का प्रस्ताव दिया है.

साहा ने कहा, "मैंने मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को प्रस्ताव भेजा था कि वह बाड़ के पास ऐसे और चाय बागानों को विकसित करें और वह इस परियोजना को समर्थन देने पर सहमत हुए है."

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भारत-बांग्लादेश सीमा पर चाय उगाने का मार्ग प्रशस्त

रंगमूरा: त्रिपुरा में एक चाय उत्पादक ने भारत-बांग्लादेश सीमा पर खाली पड़ी जमीन पर चाय उगाने का मार्ग प्रशस्त किया है. इस उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि इस पहल से राज्य के चाय क्षेत्र को फायदा हो सकता है.

पश्चिम त्रिपुरा जिले में एक छोटे से चाय उत्पादक अनिमेश देब ने कहा, "बीएसएफ अधिकारी हर रोज एक निश्चित समय पर सीमा द्वार खोलते हैं, जिसमें हमें पौधों के पोषण की अनुमति मिलती है. चाय की खेती की मवेशियों से रखवाली की जरूरत नहीं होती है." 

देब की पहल बीएसएफ और उस समय के बांग्लादेश राइफल्स (बीडीआर) के बीच 1975 सीमा समझौते के अनुपालन में है. इस समझौते के तहत वास्तविक सीमा या शून्य रेखा के बीच 137.16 मीटर तक चार फुट से अधिक ऊंचाई पर संरचनाओं के निर्माण और दोनों तरफ बाड़ लगाने पर रोक है.

देब ने कहा, "वर्ष 2014 में घुसपैठ, तस्करी और सीमा पर अन्य अपराधों की जांच के लिए बाड़ बनाये जाने के बाद बाड़ के निकट भूमि का बड़ा भाग खाली हो गया. क्योंकि सब्जियां उगाना एक विकल्प नहीं था और चाय उगाने के लिए भूमि और मौसम अनुकूल लग रहा था, इसलिए मैंने यह पहल की." 

चाय उत्पादक ने कहा कि वह बाड़ और शून्य रेखा के बीच छह हेक्टेयर में चाय उगाने से सालाना पांच लाख रुपये की कमाई करेंगे.

उसकी सफलता से उत्साहित, त्रिपुरा चाय विकास निगम (टीटीडीसी) के अध्यक्ष संतोष साहा ने सीमा पर इस पहल का विस्तार करने का प्रस्ताव दिया है.

साहा ने कहा, "मैंने मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब को प्रस्ताव भेजा था कि वह बाड़ के पास ऐसे और चाय बागानों को विकसित करें और वह इस परियोजना को समर्थन देने पर सहमत हुए है." 

 


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