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Tribals Are Not Hindus: आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, कवासी लखमा के बयान के बाद छत्तीसगढ़ में सियासी उबाल

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Published : Feb 6, 2023, 9:11 PM IST

"आदिवासी हिंदू नहीं हैं" मंत्री कवासी लखमा के इस बयान ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में बवाल मचा दिया है. इस मामले को लेकर लगातार एक के बाद एक बयान सामने आ रहा है. अब इस मामले पर आदिवासी समाज ने भी मंत्री कवासी लखमा का समर्थन किया है. आदिवासी समाज ने अपने आप को हिंदू मानने से इनकार कर दिया है. जब इस मामले को लेकर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम से बात की गई तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया.

Kawasi Lakhma controversial statement
कवासी लखमा का विवादित बयान

कवासी लखमा का विवादित बयान

रायपुर: सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष बीएस रावटे ने कहा है कि "आदिवासी हिंदू नहीं हैं. कवासी लखमा के इस बयान से मैं पूरी तरह सहमत हैं. हम लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि एक अलग से कैटेगरी बनाई जाए. जिसमें अन्य लोगों को शामिल किया जाए. इसके लिए लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है. 1951 के पहले धर्म में अन्य का भी ऑप्शन होता था. जिसे कांग्रेस सरकार ने अलग कर दिया है. यह हमारी मजबूरी है क्योंकि धर्म में के कारन में हिंदू मुस्लिम सिख इसाई के अलावा अन्य का कोई ऑप्शन नहीं होता है. जिस वजह से हम मजबूरी में हिंदू लिखते हैं. नहीं तो हमारे रीति रिवाज खान-पान वेशभूषा वेशभूषा पूजा-पाठ सब अलग-अलग है और यही वजह है कि हम आदिवासी हिंदू नहीं हैं."

कांग्रेस सनातन धर्म के खिलाफ वातावरण बना रही है: इस मामले पर प्रदेश भाजपा महामंत्री केदार कश्यप ने कहा कि "कांग्रेस पार्टी के नेता लगातार हिंदू सनातन धर्म के खिलाफ वातावरण बना रहे हैं. यह साजिश उनके शीर्ष नेतृत्व द्वारा कराई जा रही है. इसके मूल में आदिवासी संस्कृति को खत्म कर धर्मांतरण कराकर आदिवासियों को ईसाई बनाने की सुनियोजित साजिश है. सोनिया गांधी ईसाई है और सनातन संस्कृति के खिलाफ कांग्रेस नेताओं से अपनी बात कहलवा रही हैं."

कांग्रेस सरकार के संरक्षण में धर्मांतरण हो रहा है: प्रदेश भाजपा महामंत्री केदार कश्यप ने आगे कहा कि "कवासी लखमा आदिवासियों को हिंदुओं के विरोध में बताते हैं. उन्हें ईसाइयों के विरोध में क्यों नहीं बताते? धर्मांतरण कराने वालों के खिलाफ क्यों नहीं बोलते. कांग्रेस नेतृत्व के दबाव में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के संरक्षण में धर्मांतरण हो रहा है. आदिवासी समाज को अपनी ही धरती पर अपनी संस्कृति से बेदखल करने का कुचक्र चल रहा है. धर्मांतरण का विरोध करने वाले आदिवासी का दमन किया जा रहा है. तब कवासी आदिवासी संस्कृति के पक्ष में खड़े क्यों नहीं होते."

"आदिवासी हिंदू हैं": मामले को लेकर वरिष्ठ पत्रकार रामअवतार तिवारी कहना है कि "आदिवासी हिंदू हैं. उनकी पूजा पद्धति एक है. उनके से जन्म से लेकर मृत्यु तक के जितने भी रिकॉर्ड है. उसमें हिंदू लिखते हैं. यह अलग बात है वह लोग अलग कालम की मांग कर रहे हैं. जिसमें हिंदू की जगह आदिवासी लिखा जाए. जिस बूढ़ादेव को आदिवासी अपना इष्ट देवता मानते हैं. हिंदू भी शिव शंकर को अपना इष्ट देवता मानते हैं. लगभग रीति परंपरा संस्कृति हिंदू और आदिवासियों की एक है. इस बात को ज्यादा विवाद के घेरे में नहीं लाया जाना चाहिए कि हिंदू है या आदिवासी हैं."

आदिवासियों के लिए कालम के लिए मांग उठ रही: रामअवतार तिवारी ने आगे कहा कि "एक तरफ जो भाजपा के नेता हैं वह अपने आप को आदिवासी हिंदू बता रहे हैं. दूसरी ओर कांग्रेस के नेता हैं जो कहते हैं कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. यह बताया जा रहा है उन पर यह आरोप है कि ईसाई मिशनरियों के करीब हैं. दूसरी एक बात यह है कि वह कालम के लिए मांग उठ रही है. वह लंबे समय से उठाई. इसके पहले यह माना जाता है कि आदिवासी अलग धर्म लिखते थे. फिर बाद में उनको जोड़ दिया गया. यह आरोप है और इस पर दबाव बनाने की कोशिश अलग-अलग तरीके से हो रही है. लेकिन हमने अभी तक देखा है कि हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई चार ही माने जाते हैं."

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यहां से शुरु हुआ बवाल: छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने आदिवासियों को हिंदू मनाने से साफ इंकार कर दिया था. उनका कहना था कि "आदिवासियों के रीति रिवाज और हिंदुओं के रीति रिवाज अलग-अलग होते है. हम लोग आदिकाल से रहने वाले लोग हैं. हम लोग जंगल में रहते हैं. पूजा-पाठ करते हैं. हिंदू अलग करता है, हम अलग करते हैं. आदिवासी अगर शादी करता है तो गांव के पुजारी से पानी डलवाते हैं. हम किसी पंडित से पूजा नहीं कराते हैं. इसलिए हम लोग हिंदू से अलग हैं. हम जंगल में रहने वाले आदिवासी हैं. बिरसा मुंडा हो, वीर नारायण सिंह हों चाहे हमारे गुंडाधुर हों इस लड़ाई में भी ये लोग अलग रखे हैं."

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