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पेसा एक्ट लागू है लेकिन नियम चिन्हांकित नहीं: टीएस सिंहदेव

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Published : Nov 7, 2021, 9:45 AM IST

देश के ऐसे कई अन्य हिस्सों के संरक्षण के उद्देश्य से बना 'पेसा कानून' जिसे अब भी कई राज्यों में ताकत नहीं मिल सकी है. उनमें से एक छत्तीसगढ़ भी है. कानून तो लागू है लेकिन इसके पालन के लिये अब तक नियम नहीं बनाये जा सके हैं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद सरकार से वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव पर इस नियम को बनाने की जिम्मेदारी है.

Health and Panchayat Minister TS Singhdeo
स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव

सरगुजा: घनघोर वनों से आच्छादित, आदिवासी बाहुल्य प्रदेश छत्तीसगढ़ इसकी नैसर्गिक सुंदरता ही इसकी सबसे बड़ी पूंजी और पहचान है. देश के ऐसे कई अन्य हिस्सों के संरक्षण के उद्देश्य से बना 'पेसा कानून' (PESA law ) जिसे अब भी कई राज्यों में ताकत नहीं मिल सकी है. उनमें से एक छत्तीसगढ़ भी है. कानून तो लागू है लेकिन इसके पालन के लिये अब तक नियम नहीं बनाये जा सके हैं. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सत्ता आने के बाद सरकार से वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव पर इस नियम को बनाने की जिम्मेदारी है. उन्होंने लगातार बस्तर और सरगुजा क्षेत्र में आदिवासी और इन क्षेत्रों के लोगों के साथ बैठक की हैं और सरकार भी नियम बनाने की कवायद कर रही है. लेकिन नियमों के बनते अभी वक्त लगेगा. इस पूरे मसले पर ETV BHARAT ने स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टी एस सिंहदेव (Health and Panchayat Minister TS Singhdeo) से बातचीत की. उन्होंने कई अहम सवालों के जवाब दिये.

स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री टी एस सिंहदेव

सवाल: पेसा कानून को लेकर जो भ्रम है, इसके इम्प्लीमेंटेशन के लिये आप जो काम कर रहे हैं वो कहां तक पहुंचा?

जवाब: इसमें भी लोगों को भ्रम है कि पेसा कानून लागू ही नहीं है. पेसा कानून लागू है. देश में लागू है और वर्तमान में इसके कुछ प्रावधान अपनाकर अलग-अलग विभागों में लागू किया गया है, जो छत्तीसगढ़ में नहीं हो पाया है. जो कई राज्यों ने बना लिये, किसी भी कानून को राज्य में लागू करने के लिए जो नियम चाहिये. रूल्स वो नहीं बना है, एक होता है एक्ट वो हमारे पास है दूसरा होता है नियम किस आधार पर काम हमको करना है. वो चिन्हांकित नहीं है तो उसमें कई बिंदु हैं.

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ग्राम सभा का कोष होना चाहिए की नहीं, पेसा कानून के तहत मुख्य रूप से जो शक्तिशाली होगी वो ग्राम सभा होगी. लोगों की आवाज चुने हुये जनप्रतिनिधि भी ग्राम सभा के प्रति उत्तरदायित्व अपना निभाएंगे, तो ये जो बातें हैं ये अभी नियमों के माध्यम से लागू नहीं हैं, कहीं किसी जमीन को लेना है तो ग्राम सभा की अनुमति का प्रावधान आज भी है. पंचायती राज कानून के तहत, पेसा के नियम के तहत नहीं है, जैसे कहीं आपको NOC लेना होता है. खदान खोलना है, तो ट्राइबल एरिया में आप ग्राम सभा से आम जनों की सहमति लेते हैं कि उनकी सहमति है की नहीं. तो पेसा कानून लागू नहीं है. ऐसा नहीं है नियम नहीं बने हैं, अलग अलग राज्यों में या तो नियम बनाकर लागू किये गये हैं या तो अलग अलग विभागों में नियम बनाकर उनको सम्मिलित किया गया है. अब पेसा कानून के नियम बनाने की प्रक्रिया चल रही है. अब जब नियम बनेंगे तो ग्राम पंचायतों को, जनपदों को, जिला पंचायतों को क्या स्थिति रहेगी पेसा कानून के तहत ये सुनिश्चित होगा.

सवाल: कितनी जल्दी हो लग रहा ये नियम बना लिये जाएंगे?

जवाब: ये आसान नहीं है वरना कब का हो गया होता. इसमें कई विभागों को आपत्ति हो सकती है. इसमें मान लीजिए आपने खदान की ही बात आई, तो खदान को देना है तो ग्राम सभा से औपचारिक चर्चा करनी है कि उनकी सहमती लेनी है, ये एक बड़ा ये एक बड़ा मुद्दा बन जायेगा. ये क्यों नहीं अब तक लागू हुआ, आपके यहां खदानें हैं आप उनके लिए ग्राम सभा कराते हैं. क्या उनकी सहमति अनिवार्य है. दो चीजें हो गई कि आपको चर्चा करनी है या प्रस्ताव पारित कराना है तो ये अगर नियम बन जाते हैं तो और बंधन कारी होते हैं. कानून में और भी बहोत सारी बातें हैं.

सवाल: क्या कोल बेरिंग एक्ट (Coal Boring Act) पेसा के प्रावधानों को प्रभावित करता है?

जवाब: कोल बोरिंग एक्ट (Coal Boring Act) को लेकर ऐसी धारणा अभी बनी हुई है की ये बाकी नियमों को और कानूनों को सुपरसीड कर देता है, ये व्याख्यान की बात है, सुप्रीम कोर्ट में ये मामले जाते हैं और कल भी जायेंगे, क्योंकि अगर आपने पेसा कानून के तहत नियम बनाये और नियम में आपने कहा की ग्राम सभा की सहमति लेना है और ग्राम सभा ने कहा कि हम अपने ग्राम सभा क्षेत्र की भूमि को उपलब्ध नहीं कराना चाहते तो क्या कोल बेरिंग एक्ट के तहत फिर भी आप ले सकते हैं क्या, वहां पर काम आप कर सकते हैं क्या? ये द्वंद की बात आती है, कानून में द्वंद की स्थिति बनती है एक ही देश के अलग अलग कानून के आपस में टकराव की स्थिति बनती है और इसलिये फिर सुप्रीम कोर्ट तक बात जाने की नौबत आती है.

मैं इस बात का पक्षधर हूं कि जल, जंगल जमीन की जो चर्चा होती है वो प्रभावशाली होनी चाहिये. ग्राम सभाओं को एक सीमित दायरे में सबकी सीमाएं रहती हैं. चाहे वो जनपद हों जिला पंचायत हों या विधायिका हो सब अपनी सीमाओं में कार्य करते हैं, ग्राम सभाओं की भी अपनी सीमाएं होगी. किस क्षेत्र में वो काम कर सकते हैं. पंचायती राज कानून में इसमें 29 काम ऐसे चिन्हांकित हैं. जो पंचायती राज कानून के तहत हमको करना है, तो ये जो 29 प्रावधान हैं जिनमें विभागों के कार्य तय कर ग्राम सभाओं की जिम्मेदारी तय करना चाहेगें.

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बहरहाल इस बातचीत में सबसे प्रमुख मसला यह निकलकर सामने आया कि एक ही देश के दो कानून एक पेसा एक्ट और दूसरा कोल बेरिंग एक्ट ये दोनों ही कानून आपस में टकराते हैं. जहां एक ओर पेशा कानून ग्राम ग्रामवासियों को उनकी जमीन पर हर हाल में काबिज रहने का अधिकार देता है, तो वहीं दूसरी ओर कोल बेरिंग एक्ट कोल (Coal Boring Act) कंपनियों कर हित में ये पवार देता है की ऐसी स्थिति में बिना ग्राम सभा के अनुमति के भी जमीन आवंटित कर दी जाती है. दो कानूनों के इस द्वंद में मामला सुप्रीम कोर्ट में खिंचता है. लिहाजा केंद्र में वर्तमान में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi Government) को इस ओर भी ध्यान देना चाहिये. कम से कम दो कानूनों के आपसी द्वंद की स्थिति को समाप्त करना चाहिये और पेसा कानून को सुपरसीड करने वाले कोल बेरिंग एक्ट के प्रावधनों को शिथिल करना चाहिए. ताकि जल, जंगल जमीन बचाने का नारा सिर्फ नारा ही ना बनकर रह जाये.

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