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आरएसएस चीफ का मदकू द्वीप दौरा: छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण प्रमुख मुद्दा, संघ को साध चुनावी वैतरणी पार करेगी बीजेपी!

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Published : Nov 18, 2021, 9:16 PM IST

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव भले साल 2023 में होने हैं, लेकिन राजनीतिक पार्टियां प्रदेश में अभी से अपनी पूरी ताकत झोंक चुकी हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में धर्मांतरण (Conversion) एक प्रमुख मुद्दा होगा, जिस पर सभी पार्टियां अभी से फोकस कर रही हैं. मदकू द्वीप में आयोजित शिविर में शामिल होने के लिए 19 नवंबर को संघ प्रमुख मोहन भागवत भी आ रहे हैं. विपक्ष आरएसएस चीफ के इस छत्तीसगढ़ प्रवास को चुनावी तैयारी से जोड़कर देख रहा है. जबकि कांग्रेस का मानना है कि प्रदेश में धर्मांतरण कोई मुद्दा ही नहीं है.

RSS chief in Madaku island on November 19, politics heats up
आरएसएस चीफ 19 नवंबर को मदकू द्वीप में, सियासत गरमाई

रायपुर : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत (Rashtriya Swayamsevak Sangh chief Dr. Mohan Bhagwat) 19 नवंबर को छत्तीसगढ़ प्रवास पर रहेंगे. इस दौरान वे मदकू द्वीप में आयोजित शिविर में शामिल होंगे. इस आयोजन के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ बिलासपुर और रायपुर शाखा के स्वयंसेवकों द्वारा बीते एक माह से (दोनों केंद्रों पर) घोष का सतत अभ्यास जारी है. इसमें से चिह्नित घोष वादकों का घोष प्रदर्शन कार्यक्रम मुंगेली के मदकू द्वीप में होगा. यह कार्यक्रम 19 नवंबर की दोपहर 3 बजे से शुरू होगा. राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि कार्यक्रम स्थल के चयन से यह साफ है कि इस शिविर में धर्मांतरण (Conversion) को लेकर विस्तार से चर्चा होगी. मदकू द्वीप रायपुर और बिलासपुर मार्ग से लगा हुआ स्थल है.

इस इलाके में दिखता है मिशनरीज का प्रभाव

इस क्षेत्र में मिशनरीज का प्रभाव भी काफी दिखाई देता है. बैतलपुर में मिशनरी का बड़ा अस्पताल और चर्च है. ग्रामीण इलाकों में भी मिशन की गतिविधियां चलती रहती हैं. ऐसे में मदकू द्वीप में कार्यक्रम का आयोजन कर संघ ने साफ संदेश दे दिया है कि इस बैठक के दौरान चर्चा के प्रमुख विषयों में धर्मांतरण भी शामिल रहेगा. इस शिविर में द्वीप के आसपास के गांव से ग्रामीणों को भी निमंत्रण दिया गया है. यह पहला अवसर होगा, जब संघ प्रमुख के शिविर का आयोजन संघ के प्रदेश कार्यालय जागृति मंडल में या फिर अनुशांगिक संगठनों के कार्यालय में न होकर बाहर किसी स्थल में कराया जा रहा है. मिशन के प्रभाव वाले क्षेत्र में कार्यक्रम का आयोजन कर अपना उद्देश्य संघ ने साफ कर दिया है.

धर्मांतरण मुद्दे पर भाजपा ने भी प्रदेश सरकार पर की थी दबाव डालने की कोशिश

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) ने भी धर्मांतरण को लेकर राज्य सरकार पर दबाव डालने की कोशिश की थी. हालांकि सरकार से जुड़े लोग इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि प्रदेश में धर्मांतरण कोई मुद्दा भी है. जानकारों का मानना है कि इस आयोजन के पीछे संघ का उद्देश्य इस क्षेत्र में धार्मिक गतिविधियों को बढ़ाना है, ताकि धर्मांतरण पर रोक लग सके. पिछले चुनाव में आरएसएस (RSS) की नाराजगी का खामियाजा भुगतने के बाद बीजेपी भी समझ चुकी है कि चुनावी वैतरणी पार करनी है तो संघ को साथ में लेकर ही चलना पड़ेगा. ऐसे में जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में प्रदेश में धर्मांतरण को लेकर कोई बड़ी मुहिम भी देखने को मिल सकती है.

कार्यक्रम मेरे ही विधानसभा क्षेत्र में हो रहा, यह खुशी की बात : कौशिक

स्थानीय विधायक और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक (Leader of Opposition Dharamlal Kaushik) ने इस विषय पर कहा कि संघ का कार्यक्रम उनके ही विधानसभा क्षेत्र में हो रहा है, यह खुशी की बात है. उन्होंने स्पष्ट किया कि यहां होने वाली गतिविधियों की रूपरेखा संघ ही तैयार करता है. कौशिक ने बताया कि मदकू द्वीप को हमारी सरकार द्वारा जिस तरह से एक पर्यटन स्थल बनाने के लिए प्रयास किये गए थे, कांग्रेस सरकार आने के बाद उन पर विराम लग गया है. उन्होंने द्वीप की प्राकृतिक सुंदरता की भी तारीफ की.

जबरन और प्रलोभन दे धर्मांतरण कराने वालों पर हो कार्रवाई : राज्यपाल

राज्यपाल अनुसूइया उइके ने धर्मांतरण को लेकर कहा कि प्रदेश में धर्मांतरण के खिलाफ कानून बनाना है. अगर किसी के साथ जबरन और प्रलोभन देकर उसका धर्मांतरण कराया जाता है. अगर ऐसी शिकायतें आती हैं, तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. समय-समय पर मुझे लोगों की शिकायतें मिली हैं, तो मैंने शासन-प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराया है. ऐसे तत्व जिनकी प्रूफ के साथ शिकायत मिलती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई करें'.

छत्तीसढ़ में धर्मांतरण कोई मुद्दा ही नहीं है : रविन्द्र चौबे

राज्यपाल द्वारा हाल ही में धर्मांतरण को लेकर लिखे गए पत्र के विषय में सरकार के प्रवक्ता और प्रदेश के कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे (Agriculture Minister Ravindra Choubey) का कहना है कि छत्तीसढ़ में धर्मांतरण कोई मुद्दा ही नहीं है. अगर धर्मातरण को बीजेपी मुद्दा बनाती और मानती है तो धर्मांतरण के विरोध में सबसे बड़े नेता थे स्व. दिलीप सिंह जूदेव. भाजपा ने लगातार उनकी उपेक्षा क्यों की थी? धर्मांतरण उनका प्रमुख विषय है, तो दिलीप सिंह जूदेव को प्रदेश का नेतृत्व को सौंपना था. तब उन्होंने यह काम नहीं किया. अब सिर्फ राजनीति करने लिए धर्मांतरण का सहारा लिया जा रहा है.

बीजेपी शासनकाल में सबसे ज्यादा हुए धर्मांतरण-कवासी लखमा

विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर बस्तर में आयोजित विभिन्न कार्यक्रम में प्रदेश के आबकारी मंत्री कवासी लखमा ने धर्मांतरण पर एक बड़ा बयान दिया था. कवासी लखमा ने कहा था कि बस्तर में सबसे अधिक धर्मांतरण भाजपा शासनकाल में हुआ है. भाजपा शासनकाल में ही बस्तर के गांव-गांव में सबसे ज्यादा चर्च बने. जबकि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद पिछले 2 सालों में सुकमा जिले में एक भी नया चर्च नहीं बना है. बल्कि राज्य सरकार गांव-गांव में बने देवगुड़ियों के जीर्णोद्धार के लिए लाखों रुपये देने के साथ ही घोटुल और नये देवगुड़ियों के लिए 10 लाख रुपये की सहायता दे रही है.

धर्मांतरण करने वालों पर बघेल सरकार नहीं कर रही कार्रवाई : बृजमोहन अग्रवाल

धर्मांतरण पर रायपुर दक्षिण विधायक बृजमोहन अग्रवाल (Brijmohan Aggarwal) ने बताया कि सरकार धर्मांतरण (conversion) को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है. आखिर जो धर्मांतरण करवाने वाले लोग हैं, उनपर सरकार कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं करती. सीआरपीसी और आईपीसी की धारा (Sections of CRPC and IPC) क्यों नहीं लगाती. ये सब नहीं होने के कारण ऐसी परिस्थितियां पैदा होती हैं. सीआरपीसी आईपीसी जैसी कानूनी कार्रवाई जब तक अवैध धर्मांतरण कराने वाले लोगों के खिलाफ नहीं होगी. इसको रोक पाना बहुत मुश्किल है.

बीजेपी और आरएसएस के दो प्रिय विषय धर्मांतरण और सांप्रदायिकताः सीएम बघेल

उधर, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर आरएसएस और बीजेपी (RSS and BJP) पर बड़ा बयान दिया था. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के पास कोई काम नहीं है. छत्तीसगढ़ में किसान, आदिवासी और मजदूरों के साथ अन्याय हो रहा है. लोगों के हितों की रक्षा हो रही है. छत्तीसगढ़ में युवाओं, महिलाओं के हित में भी निर्णय लिये जा रहे हैं. इसलिए अब उनके पास कोई मुद्दा नहीं है. भाजपा और आरएसएस के दो लोकप्रिय विषय हैं, एक धर्मांतरण और दूसरा संप्रदायिकता. यह दोनों को हवा देने की कोशिश कर रहे हैं.

बच्चों का धर्मांतरण कराने वाले गलत, घर से ही देने होंगे संस्कार : मोहन भागवत

वहीं हल्द्वानी में 'परिवार प्रबोधन' कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा था कि बच्चों का धर्मांतरण कराने वाले गलत हैं. हमारे बच्चे हम ही तैयार नहीं करते हैं. हमको इसका संस्कार अपने घर में देना होगा. कैसे धर्मांतरण हो जाता है? छोटे से स्वार्थ, शादी के लिए हिंदू लड़कियां और लड़के दूसरे धर्मों को कैसे अपनाते हैं? जो लोग ऐसा करते हैं, वो गलत करते हैं. क्या हम अपने बच्चों का ठीक पालन-पोषण नहीं करते? हमें अपने बच्चों को घर में ये शिक्षा देनी होंगी. हमें उनके अंदर धर्म के प्रति आदर का भाव उत्पन्न करना होगा. अपने धर्म और पूजा पाठ के प्रति बच्चों को आदर और गर्व करना सिखाना पड़ेगा. उन्होंने आगे कहा कि हमें अपनी भाषा, वेशभूषा, भवन, भोजन, भ्रमण और भजन को अपनी परंपरा के मुताबिक करना चाहिए. तब ही भारत विश्व गुरु बन सकता है.

धर्म परिवर्तन का जाल फैलना विस्फोटक स्थिति, केंद्र लाए कड़ा कानून : विहिप नेता

वहीं विश्व हिंदु परिषद के नेता विजय शंकर तिवारी ने इस मुद्दे पर कहा कि मुगलों के हमारे देश में आने के बाद से ही जबरन धर्मांतरण की यह व्यवस्था चल रही है. आज हमारे देश में कुछ ही मुसलमान हैं, जो वास्तव में अरब देशों से आए हैं, बाकी सभी हिंदू हैं. जिन्हें उस समय जबरन इस्लाम में परिवर्तित किया गया था. यह आजादी से पहले और आजादी के बाद भी जारी रहा. आज फर्क सिर्फ इतना है कि इन घटनाओं और सांठ-गांठ को उजागर किया जा रहा है. विहिप अवैध धर्मांतरण के खिलाफ एक कड़े केंद्रीय कानून की मांग करती रही है. उन्होंने कहा कि धर्मांतरण हमेशा से था, लेकिन इस तरह की सांठ-गांठ और लोग राज्य और केंद्र में सरकार बदलने के बाद ही उजागर हो रहे हैं. ऐसे में धर्म परिवर्तन का जाल फैलना देश में विस्फोटक स्थिति जैसा है. इसके लिए केंद्र सरकार को कड़े कानून लाने चाहिए.

किस राज्य में कब लागू हुआ कानून, कितनी है सजा

  • ओडिशा (1967) - कानून के उल्लंघन पर 1 साल सजा 5000 रुपये जुर्माना / एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, 10 हजार जुर्माना.
  • मध्य प्रदेश (1968) - कानून के उल्लंघन पर 1 साल की सजा 5000 रुपये जुर्माना / एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, 10 हजार जुर्माना.
  • अरुणाचल प्रदेश (1978) - कानून के उल्लंघन पर 2 साल की सजा 10000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 2 साल सजा, 10 हजार जुर्माना.
  • छत्तीसगढ़ (2006) - कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा 20000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा, 20 हजार जुर्माना.
  • गुजरात (2003) - कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा 50000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा, 1 लाख रुपये जुर्माना.
  • हिमाचल प्रदेश (2019) - कानून के उल्लंघन पर 1 से 5 साल तक की सजा/ एससी-एसटी मामले में 2 से 7 साल तक की सजा.
  • झारखंड (2017) - कानून के उल्लंघन पर 3 साल की सजा 50000 रुपये जुर्माना/ एससी-एसटी मामले में 4 साल सजा, 1 लाख रुपये जुर्माना.
  • उत्तराखंड (2018) - कानून के उल्लंघन पर 1 से 5 साल तक की सजा/ एससी-एसटी मामले में 2 से 7 साल तक की सजा.
  • यूपी (2020) - कानून के उल्लंघन पर 1 से 5 साल तक की सजा, 15 हजार या उससे ज्यादा का जुर्माना/एससी-एसटी मामले में 2 से 10 साल तक की सजा, 25 हजार या उससे ज्यादा का जुर्माना.

संसद में 3 बार हुई धर्मांतरण कानून पास कराने की नाकाम कोशिश

  • संसद में पहली बार साल 1954 में भारतीय धर्मान्तरण विनियमन एवं पंजीकरण विधेयक 1954 में पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो सका.
  • इसके बाद, 1960 और 1979 में भी इसके प्रयास हुए थे, लेकिन पास नहीं हो सका था.
  • साल 2015 में तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने राष्ट्रव्यापी स्तर पर धर्मांतरण निरोधक कानून बनाने पर जोर दिया था.
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