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विश्व पर्यावरण दिवस: 'लगातार बढ़ता तापमान घातक, तत्काल 'क्लाइमेट इमरजेंसी' घोषित करे सरकार'

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Published : Jun 4, 2021, 5:43 PM IST

Updated : Jun 5, 2021, 10:43 AM IST

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पर्यावरणविद नितिन सिंघवी

ETV भारत पर्यावरण संरक्षण ( environmental protection) और जलवायु परिवर्तन (climate change ) जैसे गंभीर मुद्दों पर लगातार अपने दर्शकों को जागरूक कर रहा है. विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के मौके पर हमने पृथ्वी के लगातार बढ़ते तापमान और पर्यावरण के बदलते स्वरूप को लेकर पर्यावरणविद नितिन सिंघवी (environmentalist Nitin Singhvi) से बातचीत की है. उन्होंने पृथ्वी में बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दों पर जल्द संभलने की बात कही है. उन्होंने चेताया है कि आने वाला वक्त पृथ्वी के लिए घातक साबित हो सकता है.

रायपुर: 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मनाया जाता है. जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है. हम जानते हैं औद्योगीकरण और कई विकास कार्यों के लिए मानव निरंतर प्रकृति का दोहन करता आया है. बिना भविष्य की चिंता किए लगातार पर्यावरण को पहुंचाए गए नुकसान के नतीजे भयावह हो सकते हैं. ऐसे में जरूरत है संभलने की और पर्यावरण के बारे में विचार करने की. ETV भारत पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दों पर लगातार अपने दर्शकों को जागरूक कर रहा है. विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर हमने पृथ्वी (Earth) के लगातार बढ़ते तापमान और पर्यावरण के बदलते स्वरूप को लेकर पर्यावरणविद नितिन सिंघवी (Nitin Singhavi) से बातचीत की है. उन्होंने पृथ्वी में बढ़ते तापमान और जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दों पर जल्द संभलने की बात कही है. उन्होंने चेताया है कि आने वाला वक्त अधिक घातक भी हो सकता है.

पर्यावरणविद नितिन सिंघवी से बातचीत

सवाल: क्लाइमेट चेंज क्या है ?

जवाब: जलवायु परिवर्तन(Climate change) को समझने के लिए हमें साल 1870 के समय को समझना होगा. साल 1870 में इंडस्ट्राइलाइजेशन (औद्योगीकरण) चालू हुआ.तब हमारे अर्थ(पृथ्वी) का औसत तापमान 14 डिग्री सेल्सियस था, उसके बाद हमारा डेवलपमेंट हुआ. इसके लिए हमने जो पेट्रोल डीजल कोयले के ईंधन का इस्तेमाल किया. बिजली निर्माण के लिए जिस तरह से कोयला जलाया गया. इन सभी से अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन (carbon dioxide emissions) किया गया. इसके अलावा मीथेन गैस सहित अन्य गैस वायुमंडल में समय के साथ बढ़ती गई. इसके बाद साल 1870 से लेकर साल 2020 तक डेढ़ सौ सालों में यह तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. यदि इसे अभी कंट्रोल नहीं किया गया तो आने वाले समय में यह तापमान और तेजी से बढ़ेगा. (Earth Average Temperature Rising )

एक अनुमान के मुताबिक तापमान डेढ़ सौ साल में 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है. लेकिन अब आने वाले 10 सालों में तापमान आधा डिग्री सेल्सियस और बढ़ जाएगा.यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि साल 2100 आने तक यह तापमान 4 से 8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा.

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टेंपरेचर को लेकर अंतरराष्ट्रीय समझौते

सिंघवी ने कहा कि तापमान को स्थिर करने के लिए कवायद शुरू की गई है. इसके लिए कई अंतरराष्ट्रीय समझौते हुए हैं. सबसे अंतिम एग्रीमेंट पेरिस एग्रीमेंट है. जिसके तहत 195 देशों ने डिसाइड किया है कि हम टेंपरेचर को 2 डिग्री सेल्सियस तक रखेंगे, इसके लिए प्रयत्न करेंगे कि इसे डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक रोककर रखें. वर्तमान की बात की जाए तो साल 1870 से लेकर साल 2021 तक 1.2 डिग्री तापमान बढ़कर आज 15.2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुंच गया है.

सिंघवी ने कहा कि अमूमन लोग से जब कहा जाता है कि तापमान 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है तो उनका कहना होता है कि 1 डिग्री सेल्सियस से क्या फर्क पड़ता है. हम तो 45 और 47 डिग्री सेल्सियस पर भी रह लेते हैं. राजस्थान में 52 डिग्री तक तापमान पहुंच जाता है ऐसे में 1 डिग्री तापमान से क्या फर्क पड़ेगा. लेकिन उन लोगों को समझना पड़ेगा कि यह 1 डिग्री तापमान हमारे औसत अर्थ का बढ़ा है. जो हमारे लिए बहुत खतरनाक हो चुका है.

सवाल : 1 डिग्री तापमान बढ़ने से क्या-क्या परिवर्तन हुए हैं. डेढ़ डिग्री और 2 डिग्री पर क्या परिवर्तन होगा.

जवाब : 1 डिग्री तापमान बढ़ने से हमारे ग्लेशियर पिघलने लगे हैं. समुद्र का लेवल हाई होने लग गया है. हमारे क्लाइमेंट एक्टिविटीज में बहुत ज्यादा इंटेंसिटी बढ़ गई है. वातावरण में बहुत बड़ा बदलाव आया है. कई जगह प्राकृतिक आपदाएं देखने को मिली हैं. बाढ़ भूकंप सहित अन्य प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं इसी का उदाहरण हैं. जिसमें काफी संख्या में जनहानि हुई है. साथ ही काफी बड़े स्तर पर आर्थिक हानि भी उठानी पड़ी है. यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में देश में खाने के लिए अनाज की कमी भी हो सकती है. आज हिमालय की बर्फ पिघलने लगी है यदि तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो इससे मानसून भी प्रभावित होगा. जिस वजह से कई जगहों पर बारिश होगी और बाढ़ आ जाएगी. लेकिन कई जगहों पर पानी नाम मात्र गिरेगा. साथ ही गर्मी में भी काफी तेज गर्मी पड़ने लगेगी.

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बढ़ता रहा औसत तापमान को भयावह होगा भविष्य

सिंघवी ने कहा कि यदि यही तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस पहुंचता है तो यही एक्टिविटी और तेजी से बढ़ जाएगी. 2 डिग्री सेल्सियस में यह मान कर चल सकते हैं कि हिमालय की बर्फ के पहाड़ पिघलने लगेंगे. यदि हिमालय की बर्फ पिघलने लगे (snow of Himalayas melt) तो उससे संबंधित नदियों में उफान और बाढ़ आएगी. जिससे बहुत बड़ी तबाही भी मच सकती है. यदि आने वाले समय में यह स्थिति उत्पन्न हुई तो हमारे देश से बहुत से लोग अन्य देशों में जाने लगेंगे. यहां खाद्यान्न की कमी देखने को मिलेगी. यहां लेबर का अभाव रहेगा. जिससे यहां काफी नुकसान उठाना पड़ेगा. इसके अलावा यदि 4 डिग्री तापमान बढ़ता है तो लोगों का घर के बाहर रहना मुश्किल हो जाएगा. 15 मिनट से ज्यादा बाहर रहना संभव नहीं होगा.

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सवाल : तापमान बढ़ने की मुख्य वजह क्या हैं?

जवाब : तापमान बढ़ने की मुख्य वजह है प्राकृतिक ईंधन का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करना. जिसमें पेट्रोल-डीजल कोयला शामिल है. एक अनुमान के मुताबिक जो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित की जाती है. उसमें 62% हिस्सा इन प्राकृतिक ईंधन से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड का होता है. इसके अलावा मिथेन गैस भी हमारे वातावरण को गर्म कर रहा है. सीमेंट भी पृथ्वी को गर्म करने में अहम भूमिका निभा रहा है. इसकी वजह से भी पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. आज सीमेंट की वजह से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है. क्योंकि इसमें भी बहुत ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड होता है. इसके अलावा हमारा अंधाधुंध विकास भी आज तापमान को लगातार बढ़ा रहा है.

सवाल : तापमान वृद्धि का समाधान क्या हो सकता है?

जवाब : इसका समाधान कई चरणों में करना होगा. पहला तो सरकार क्या समाधान कर सकती है, दूसरा इसके लिए हमारा समाज क्या कर सकता है और तीसरा हम इसमें क्या योगदान दे सकते हैं. हम सब इसमें कुछ ना कुछ कर सकते हैं. सबसे ज्यादा सरकार इसके लिए काम कर सकती है. सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड सरकारी डेवलपमेंट या फिर उपक्रमों के द्वारा उत्सर्जित किया जाता है. (temperature rise solution)

75% कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन सरकारी उपक्रमों

सिंघवी ने कहा कि एक अनुमान के मुताबिक लगभग 75% कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन सरकारी उपक्रमों से होता है. इसमें कोई राजनीतिक बात नहीं करना चाहूंगा. लेकिन यह समझ से परे है या तो फिर उन्हें यह खतरा दिखाई नहीं दे रहा है. हो सकता है वह इस खतरे को देखते हुए भी अंजान बने रहना चाहते हैं. उनके द्वारा लगातार जब भी कभी पर्यावरण को लेकर चर्चा की जाती है, पेड़ काटने का विरोध किया जाता है तो वह कोर्ट में जवाब देते हैं कि हमने 10 हजार पेड़ काटे हैं और उसके बदले 1लाख पेड़ लगाए हैं.

सिंघवी ने कहा कि यदि इस पर्यावरण को बचाने के लिए अभी पहल नहीं की गई तो आने वाले समय में यहां के लोग भूखे मरेंगे. उन्हें बचाने के लिए अभी से कदम उठाने पड़ेंगे. इसलिए हमें पूरी पृथ्वी को लेकर काम करना होगा. क्योंकि आने वाले समय में भारत का धुआं दूसरे देशों पर और दूसरे देश का धुआ या प्रदूषण हमारे देश पर भी प्रभाव दिखाएगा. ऐसे में हमें उन दोनों के बारे में सोचते हुए कदम उठाना होगा.

सवाल : सरकार इसे रोकने में क्या कदम उठा सकती है?

जवाब : सरकार से यही मांग है कि सरकार सबसे पहले "क्लाइमेट इमरजेंसी" घोषित करे. 2019 के बाद से विश्व के 38 देशों ने क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित कर रखी है. लेकिन यह अबतक भारत में घोषित नहीं है. विश्व के 11 हजार साइंटिस्ट रिमाइंड कर चुके हैं इसमें भारत के सैकड़ों साइंटिस्ट भी शामिल हैं. क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित की जाए. दूसरी बात इससे हमारे देश में बदलाव आएगा. जिस तरह कोविड-19 में लोगों में बदलाव देखने को मिला यदि उसी तरह क्लाइमेट इमरजेंसी घोषित किया जाता है, फिर उससे संबंधित नए कानून लाए जा सकते हैं.

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कार्बन डाइऑक्साइड को कंट्रोल करना जरूरी

सिंघवी ने कहा कि सरकार को अनवांटेड एक्टिविटी टोटल बैन करनी होगी. पूरे देश में स्मार्ट सिटी के नाम पर अरबों रुपए खर्च किया जा रहा है जबकि होना यह चाहिए कि हमें पहले पर्यावरण को बचाना चाहिए. कार्बन डाइऑक्साइड को कंट्रोल कर लिया जाए और उसके बाद इस शौक को हम 30- 40 साल बाद भी पूरा कर सकते हैं. सिंघवी ने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए सभी को एकजुट होकर काम करना होगा. इसके लिए ईमानदार नेता और ईमानदार अधिकारी भी होने चाहिए, जो कागजों पर नहीं जमीन पर काम कर सकें. अनवांटेड डेवलपमेंट टोटल बंद करना पड़ेगा. विदेशों में डिमांड होने लगी है कि विकास को बंद कीजिए. सरकार ही नहीं अब लोगों को भी समझना होगा कि किस तरह से अर्थ के बढ़ते तापमान को रोकने में सहयोग करें.

सोलर ऊर्जा इस्तेमाल को बढ़ावा दे सरकार

सिंघवी ने कहा कि आज एक यूनिट बिजली निकालने में 820 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है. यदि एक यूनिट कम जलाएंगे तो 820 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड फैलने से बच जाएगा. 1 लीटर पेट्रोल जलाने से ढाई किलो कार्बन डाइऑक्साइड निकलता है. इसे हमें कंट्रोल करना होगा. सरकार को सोलर ऊर्जा और उसके इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा. इससे ही हमारे अर्थ के बढ़ते तापमान पर कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

Last Updated :Jun 5, 2021, 10:43 AM IST
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