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लड्‌डू गोपाल के श्रृंगार के व्यवसाय से भिलाई की कलश महिला समूह बनीं आत्मनिर्भर

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Published : Aug 18, 2022, 8:46 PM IST

Updated : Aug 19, 2022, 11:02 AM IST

Bhilais mahila samuh became self sufficient
भिलाई की महिला समूह बनीं आत्मनिर्भर

भिलाई की कलश स्व सहायता समूह की महिलाओं ने लड्‌डू गोपाल के श्रृंगार का सामान तैयार करने को ही अपना व्यवसाय बना लिया है. उनके बनाए हुए भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्‌डू गोपाल के श्रृंगार का सामान शहर के अलावा अन्य जिलों के दुकानों में हाथों हाथ बिक रही है.

भिलाई: श्रीमदभागवतगीता का ज्ञान कैसे किसी व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन ला सकता है. इसका उदाहरण हमें भिलाई की रहने वाली महिलाओं में देखने को मिला. महिलाओं ने श्रीमदभागवतगीता ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दौरान जो कुछ सीखा उसे आत्मसात किया. आज वे सभी महिलायें घर बैठे हजारों रुपए कमा रही है. उनके बनाए हुए लड्‌डू गोपाल (Ladoo Gopal) के श्रृंगार शहर के अलावा अन्य जिलों के दुकानों में हाथों हाथ बिक रही है.

भिलाई की महिला समूह बनीं आत्मनिर्भर

श्रीमदभागवत के इस उपदेश को किया चरितार्थ: दो साल पहले श्रीमदभागवतगीता ज्ञान यज्ञ कथा प्रवचन के दौरान आचार्य ने गीता का उपदेश सुनाया था. जिसमें उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण उपदेश को विस्तारित किया था. उन्होंने कहा था कि "मनुष्य जो चाहे वह प्राप्त कर सकता है, बस जरूरत होती है तो इच्छित वस्तु को प्राप्त करने के लिए लगन के साथ कार्य करने की. लगन से किए गए हर कार्य में सफलता मिलती है और वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है. श्रीमदभागवत के इस उपदेश को कलश स्व सहायता समूह की महिलाओं ने न केवल आत्मसात किया, बल्कि इसे चरितार्थ कर दिखाया है.

लड्‌डू गोपाल के श्रृंगार को व्यावसाय का साधन बनाया: उन्हें ज्ञान यज्ञ सप्ताह में जो कुछ सीखने को मिला, उसे उन्होंने अपने स्वावलंबन से जोड़ा और लड्‌डू गोपाल (Ladoo Gopal)के श्रृंगार को व्यावसाय का साधन बनाया. आज ये महिलाएं न केवल भिलाई, बल्कि अन्य शहरों में लड्‌डू गोपाल (Ladoo Gopal)के श्रृंगार सप्लाई कर रही हैं. इनके द्वारा तैयार श्रृंगार हाथों हाथ बिक भी रही हैं. संतोषी पारा भिलाई की रहने वाली कलश स्व सहायता समूह की अध्यक्ष नमिता वर्मा ने बताया कि "श्रीमदभागवतगीता ज्ञानयज्ञ सप्ताह कराते थे, तब उनकी समूह की महिलाएं बाल गोपाल के लिए वस्त्र, आभूषण, बांसूरी, पगड़ी, मुकुट, माला, उनके पालने और झूले को सजाने के लिए समान तैयार करती थीं. उसी ज्ञान से हम सभी को अपना व्यावसाय शुरू करने का विचार आया. इसके लिए समूह की सभी महिलाएं भी तैयार हो गईं."

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ऐसे की शुरुआत: कलश स्व सहायता समूह की सदस्य पिंकी बंजारे ने बताया कि "शुरुआत में हमने श्रृंगार तैयार कर शहर के कुछ दुकानों में बेचना शुरू किया. लेकिन उससे फायदा नहीं हुआ. इसलिए हमने फिनिशिंग पर ध्यान दिया और ज्यादा मात्रा में श्रृंगार तैयार कर थोक में बेचने का निर्णय लिया. हमारा यह प्रयास सफल हुआ. इसके बाद हमने माता की चुनरी और मालाएं भी बनाना शुरू किया. इस तरह से बाल गोपाल और माता के श्रृंगार तैयार कर महिलाएं घर बैठे अच्छी कमाई कर रही हैं."

सीजन में हर दिन करीब 800 वस्त्र तैयार किए: नमिता ने बताया कि "उनकी समूह में 15 महिलाएं है. हर सदस्य अपने घर में कम से कम 30 से 35 वस्त्र तैयार कर लेती हैं. आर्डर अधिक होने की वजह से इस सीजन में हमने 700 से 800 श्रृंगार के समान तैयार किए हैं. बाल गोपाल का एक वस्त्र कम से कम 20 रुपए की दर से थोक में बेचा है." उन्होंने बताया कि "वस्त्र बनाने के लिए कहीं से कोई प्रशिक्षण नहीं लिया है. आजीविका मिशन के अंतर्गत नगर पालिक निगम प्रशासन ने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए काफी प्रोत्साहित किया है."

Last Updated :Aug 19, 2022, 11:02 AM IST
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