सरगुजा : जिउतिया, जीवीतिया या जीवित पुत्रिका कई नामों से पहचाने जाने वाला यह व्रत उत्तर भारत के सभी राज्यों सहित छत्तीसगढ़ के भी कुछ क्षेत्रों में भक्ति भाव से मनाया गया. 3 दिन की पूजन विधि के साथ महिलाओं ने 24 घंटे का निर्जला उपवास किया.
सप्तमी तिथि में देर रात शुद्ध भोजन बनाकर पहले चील और सियार के नाम से छत पर रखा गया. फिर व्रती महिलाओं ने उसी भोजन को खा कर व्रत प्रारंभ किया. अष्टमी को व्रत करते हुए यह व्रत नवमी तिथि को सूर्योदय के बाद समाप्त हुआ. आज सुबह महिलाओं ने पारण किया.
यह व्रत पुत्र के दीर्घायु एवं कुशलता के लिए अश्विन कृष्ण पक्ष अष्टमी को रखा जाता है. कल यानी 22 को, सप्तमी तिथि को व्रत रखा गया. जिउतिया व्रत में कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता, यह निर्जला व्रत होता है. इस व्रत में मां दुर्गा और जीमूतवाहन की पूजा होती है. इसमें मिट्टी और गोबर से चील-सियारन की प्रतिमा भी बनाई जाती है.