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आदिवासियों की अनूठी परंपरा, मृतकों के लिए मठ पर बनाते हैं पसंदीदा वस्तुओं की आकृति

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Published : Dec 12, 2021, 3:54 PM IST

Updated : Dec 12, 2021, 10:57 PM IST

The figure of the deceased hobby on the monastery
मठ पर मृतक शौक की आकृति

धमतरी का वनांचल इलाके (Forest area of ​​Dhamtari) में रहने वाले आदिवासी गोड समाज (Adivasi God Samaj) में मृत लोगों के लिए मठ पर पसंदीदा वस्तुओं की आकृति (Shapes of Favorite Objects on the Monastery) बनाने की एक अनोखी परंपरा है. यह सदियों से चली आ रही है. यह परंपरा अब भी अदिवासी बरकरार रखे हुए हैं. इन आदिवासियों की परंपरा को दीगर समाज वाले लोग भी धीरे-धीरे अपनाने लगे हैं.

धमतरीः युग बदल गया. जमाना भी बदल गया. नहीं बदली तो अदिवासियों की सदियों पुरानी रीति-रिवाज और पंरापरा. ऐसा ही कुछ धमतरी के वनांचल इलाके में रहने वाले आदिवासी गोड समाज में मृत व्यक्ति के मठ पर उसके पसंदीदा वस्तुओं की आकृति बनाने की एक अनोखी परंपरा सदियों से चली आ रही है. यह परंपरा अब भी अदिवासी बरकरार रखे हुए हैं. इन आदिवासियों की परंपरा को दीगर समाज वाले भी धीरे-धीरे अपनाने लगे हैं.

आदिवासियों की अनूठी परंपरा

जिले का नगरी सिहावा इलाका वनांचल क्षेत्र है. आदिवासी बाहुल्य होने के कारण यहां सदियों पुरानी परंपराएं अब भी कायम हैं. यहां के गोड समाज में माता, पिता अथवा परिवार के शादी शुदा सदस्य की मृत्यु (death of married member) होने पर उसके अंतिम संस्कार के बाद मठ बनाया जाता है. चबूतरानुमा मठ पर मृतकों के पसंद की वस्तुओं का आकृति (The motif of the objects of choice of the dead on the monastery) तैयार की जाती है. आमतौर पर पुरुष मठ में बैलगाड़ी, घोड़ा, हाथी, भाला पकड़े दरवान, जीप, कार, मोटरसाइकिल और स्कूटर की आकृति बनाई जाती है.

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आकृति के रूप में चित्रित करते हैं मृतक का शौक

वहीं, महिला मठ में कलश बनाने की परंपरा (Tradition of making Kalash in Mahila Math) है और अब ये परंपरा दीगर समाज के लोगों में भी होने लगी है. आदिवासी लोग बताते हैं कि उनके यहां मरने वाले को लोग जो नाम से जानते हैं या फिर मशहूर रहते हैं, उसी तरह का मठ उस व्यक्ति का बनाया जाता है. एक व्यक्ति ने बताया कि उनके एक परिजन इलाके में बहादुर नाम से मशहूर था. लोग उन्हें बहादुर के नाम से बुलाते थे. इसलिए उनके मरने के बाद मठ में उनकी गदा पकड़े हुई मूर्ति बनाई गई है.


बहरहाल, आदिवासियों में मठ में कलाकृति बनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है और इस दौर की पीढ़ी भी अपने पूर्वजों द्वारा बनाए परंपरा को संजो कर रखने का भरोसा दिला रही है. वाकई में आदिवासियों की रीति-रिवाज और परंपरा जो सदियों से चली आ रही है, उसमें आज तनिक भी बदलाव नहीं देखने को मिल रही है. जो अपने आप में अनूठा और काबिले तारिफ है.

Last Updated :Dec 12, 2021, 10:57 PM IST
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