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बिहार में प्राइवेट कृषि बिल लाना चाहते हैं सुधाकर सिंह, जानिए इससे किसानों को मिलेगा क्या लाभ

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Published : Dec 13, 2022, 1:56 PM IST

Private Agriculture Bill बिहार जैसे राज्य की निर्भरता कृषि के ऊपर है. कभी एपीएमसी एक्ट को हटाकर मंडी व्यवस्था को खत्म कर पैक्स की व्यवस्था लागू की गई थी. अब फिर से बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह किसानों की आय बढ़ाने को को लेकर मंडी व्यवस्था लाने की बात (Sudhakar Singh agriculture bill in Bihar Assembly) कर कर रहे हैं. आइये जानते है इस बिल से किसानों को क्या फायदा होगा?.

बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह
बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह

पटनाः बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह (Former Agriculture Minister Sudhakar Singh) ने सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के खिलाफ कुछ दिन पहले मोर्चा खोल दिया था. इसको लेकर वो काफी सुर्खियों में भी रहे थे. एक बार फिर उन्होंने कृषि बिल का मुद्दा उठाया है और बिहार में मंडी व्यवस्था (Mandi system in Bihar) लागू करने की बात कही है. उन्होंने कहा कि इस बिल के आने के बाद किसानों को लाभ पहुंचेगा. वो किसानों की बेहतरी के लिये विधानसभा के शीतकालीन सत्र (Bihar Winter Session) में प्राइवेट कृषि बिल (Private Agriculture Bill In Bihar Assembly) ला रहे हैं.

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बिहार में प्राइवेट कृषि बिल लाना चाहते हैं सुधाकर सिंह: पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने मंडी व्यवस्था लागू करने, किसानों को एमएसपी के अनुसार अनाज का मूल्य देने और अनाज खरीद में पैक्स का एकाधिकार खत्म कर मल्टी कंपनियों को मौका देने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि 2 दिसंबर को मैंने मंडी कानून के संदर्भ में प्रस्ताव बिहार विधानसभा (Winter Session Of Bihar Assembly) में प्रस्तुत किया है. लेकिन अब तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. सोमवार (12 दिसंबर 2022) को मैंने अध्यक्ष महोदय को दोबारा पत्र लिखा है और तत्काल इस पर बहस कराने की मांग की है.

किसानों की आय को बढ़ाने की चुनौतीः पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा है कि पिछले कुछ सालों में जिस रफ्तार से जनसंख्या में वृद्धि हुई है. उस हिसाब से उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है. ऐसे में बाजार समिति के जरिए ही किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है. सुधाकर सिंह ने कहा कि इस निजी बिल में जो हमने प्रस्ताव रखा है. उसके मुख्य बिंदु इस प्रकार है.

  • बिहार के हर 10 किलोमीटर पर किसानों के लिए मंडी हो, जहां उनके अनाज एवं अन्य कृषि उत्पादों का सरकारी एजेंसियों के द्वारा अधिग्रहण हो सके.
  • पंचायत स्तरीय लघु कृषि मंडी और खाद्यान्न विपणन एवं अधिग्रहण केंद्र की स्थापना हो.
  • सरकारी कृषि मंडियों के संचालन की जिम्मेवारी बाजार समिति की होगी.
  • कृषि मंडी में किसानों से अनाज कम से कम न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाए.
  • किसानों से अनाज बिक्री के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाए.

विधायक को प्राइवेट लाने का अधिकार: बता दें कि प्राइवेट बिल को सदन में लाने का अधिकार किसी भी विधायक को संविधान में प्राप्त है. विधान सभा में इसे स्वीकार करने या नहीं करने का अधिकार विधासभा अध्यक्ष को प्राप्त होता है. ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष इस पर वोटिंग भी करवा सकते हैं. लेकिन, अगर वे इसे खारिज करते हैं तो उन्हें इसका तर्कपूर्ण कारण बताना होगा.

क्या कहते है एक्सपर्ट? : अर्थशास्त्री डॉ. विद्यार्थी विकास का कहना है कि किसानों के आय को बढ़ाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. फिर से मंडी व्यवस्था को लागू करने की दिशा में पहल सकारात्मक कदम है. सरकार के कदम से किसानों की आय में वृद्धि होगी और बिहार की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.

''बाजार समिति व्यवस्था लागू होने से किसानों के आय में वृद्धि होगी बाजार समिति के जरिए किसानों को उनके उत्पाद की उचित कीमत मिलेगी. बिहार की एक चौथाई आए कृषि से होती है और 70 फीसदी लोगों की निर्भरता खेती पर है बाजार समिति के जरिए डिमांड और सप्लाई का संबंध कायम होगा.'' - डॉ. विद्यार्थी विकास, अर्थशास्त्री

क्या कहते है कृषक : कृषक महामाया प्रसाद का मानना है कि सरकार के कदम से किसानों को लाभ होने की संभावना है. बाजार समिति के जरिए किसान अपने उत्पाद को मनचाही कीमत पर बेच सकते थे. पैक्स के जरिए किसानों को ढेरों परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन बाजार समिति में किसानों के लिए विकल्प खुल जाएंगे.

मंडी व्यवस्था फिर से लागू करने की तैयारी: बता दें कि साल 2005 में नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ता की कुर्सी संभालते ही कृषि के क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए एपीएमसी एक्ट को समाप्त कर दिया था और किसानों के बेहतरी के लिए पैक्स व्यवस्था लागू कर दी थी. जिसके बाद बाजार समिति के बजाय किसान अपने उत्पाद पैक्स को देने लगे. 2006 से पहले बिहार में कुल 95 हजार समितियां थी, जिसमें 53 हजार समितियों के पास अपना यार्ड था. किसान अपने उत्पाद बाजार समिति में बेचते थे. किसानों को बाजार समिति में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल जाता था. उसके बदले में किसानों को एक फीसदी का कर देना होता था.

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