बिहार में पुरानी मंडी व्यवस्था किसानों के लिए कितनी फायदेमंद? जानिये विशेषज्ञों की राय

author img

By

Published : Sep 22, 2022, 10:54 AM IST

मंडी व्यवस्था लागू करने पर विशेषज्ञों की राय

बिहार जैसे राज्य की निर्भरता कृषि के ऊपर है. कभी एपीएमसी एक्ट को हटाकर मंडी व्यवस्था को खत्म कर पैक्स की व्यवस्था लागू की गई थी. अब फिर से बिहार कृषि मंत्री किसानों की आय बढ़ाने को को लेकर मंडी व्यवस्था लाने की पहल (Bihar Government Taking Initiative For Farmers) कर कर रहे हैं. इस पर जानते हैं विशेषज्ञों और किसानों की राय..

पटनाः बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है. अगर यहां की कृषि नीतियों से किसानों को ही लाभ न मिले तो ऐसी नीतियों और व्यवस्थाओं का क्या फायदा. बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह (Agriculture Minister Sudhakar Singh) उत्पादन बढ़ाने के साथ ही किसानों को फायदा पहुंचाने वाली कृषि रोडमैप बनाने की बात कर रहे हैं. उन्होंने फिर से बिहार में मंडी व्यवस्था (Mandi system in Bihar) लागू करने की बात कही है. एक समय बिहार में कृषि के क्षेत्र में बेहतरी के लिए कृषि कैबिनेट की परंपरा शुरू की गई और एपीएमसी एक्ट को खत्म किया गया. एपीएमसी के बजाय पैक्स की व्यवस्था लागू की गई. कृषि उत्पादन में तो बढ़ोतरी हुई, लेकिन किसानों की आय में इजाफा नहीं हुआ. ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर पुरानी व्यवस्थाएं अधिक फायदेमंद थी तो फिर बदलाव की जरूरत क्यों पड़ी. विशेषज्ञों से बातचीत कर इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश की जाएगी.

ये भी पढ़ेंः चौथे कृषि रोडमैप से अलग रहेंगे अधिकारी, कृषि मंत्री ने कहा-विशेषज्ञों से हो रही बातचीत

मंडी व्यवस्था लागू करने पर विशेषज्ञों की राय

मंडी व्यवस्था फिर से लागू करने की तैयारी: नीतीश कुमार 2005 में बिहार की सत्ता में काबिज हुए सत्ता में आने के बाद नीतीश कुमार कृषि के क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए एपीएमसी एक्ट को समाप्त कर दिया किसानों के बेहतरी के लिए पैक्स व्यवस्था लागू किया गया. बाजार समिति के बजाय किसान अपने उत्पाद पैक्स को देने लगे. 2006 से पहले बिहार में कुल 95 हजार समितियां थी जिसमें 53 हजार समितियों के पास अपना यार्ड था. किसान अपने उत्पाद बाजार समिति में बेचते थे. किसानों को बाजार समिति में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य मिल जाता था. उसके बदले में किसानों को 1% का कर देना होता था.

विशेषज्ञों की नजर में मंडी व्यवस्था अधिक फायदेमंदः अर्थशास्त्री डॉ. विद्यार्थी विकास का कहना है कि किसानों के आय को बढ़ाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. फिर से मंडी व्यवस्था को लागू करने की दिशा में पहल सकारात्मक कदम है. सरकार के कदम से किसानों ए आय में वृद्धि होगी और बिहार की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी. वहीं अर्थशास्त्री डॉ. अमित बक्सी का मानना है कि बाजार समिति व्यवस्था लागू होने से किसानों के आय में वृद्धि होगी बाजार समिति के जरिए किसानों को उनके उत्पाद की उचित कीमत मिलेगी. बिहार की एक चौथाई आए कृषि से होती है और 70% लोगों की निर्भरता खेती पर है बाजार समिति के जरिए डिमांड और सप्लाई का संबंध कायम होगा. कृषक महामाया प्रसाद का मानना है कि सरकार के कदम से किसानों को लाभ होने की संभावना है. बाजार समिति के जरिए किसान अपने उत्पाद को मनचाही कीमत पर बेच सकते थे. पैक्स के जरिए किसानों को ढेरों परेशानियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन बाजार समिति में किसानों के लिए विकल्प खुल जाएंगे.

"किसानों के आय को बढ़ाना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. फिर से मंडी व्यवस्था को लागू करने की दिशा में पहल सकारात्मक कदम है" -डॉ. विद्यार्थी विकास, अर्थशास्त्री

"बाजार समिति व्यवस्था लागू होने से किसानों के आय में वृद्धि होगी बाजार समिति के जरिए किसानों को उनके उत्पाद की उचित कीमत मिलेगी " -डॉ. अमित बक्सी, अर्थशास्त्री

उत्पादन बढ़ा, लेकिन किसानों को फायदा नहींः मंडी व्यवस्था खत्म करने के बाद बिहार सरकार ने पैक्स की व्यवस्था कायम की. किसान अपने उत्पाद पैक्स को बेचते थे. किसानों को पैक्स से कीमत वसूलने में 6 महीने लग जाते थे. दफ्तरों के चक्कर अलग लगाने पड़ते थे. कृषि की बेहतरी के लिए नीतीश कुमार ने कृषि कैबिनेट की परंपरा शुरू की. 2017 से 2022 के कृषि रोडमैप के लिए 154000 करोड़ का प्रावधान किया गया. अब तक तीन कृषि रोडमैप आ चुके हैं. 2008 से 2015 के बीच कृषि विकास दर 6% के आसपास थी जो 2020 से 2022 के बीच बढ़कर 10% तक पहुंच गई. विडंबना यह रही कि किसानों को योजना का लाभ नहीं मिला. उत्पादन में तो वृद्धि हुई पर किसानों की आय में वृद्धि नहीं हुई. नई व्यवस्था का लाभ मात्र 5% किसानों को ही मिल सका न्यूनतम समर्थन मूल्य के जरिए कुल उत्पादन का 7% गेहूं ही पैक्स के जरिए खरीद की जा सके और चावल 30 से 40 प्रतिशत तक खरीद की जा सकी.


खाद्यान्न उत्पादन में हुई है बढ़ोतरीः खाद्यान्न उत्पादन की बात करने तो 2005 में प्रति हेक्टेयर 1311 कि लोग प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता था, जो 2020 -22 में बढ़कर 2493 किलो प्रति हेक्टेयर हो गया. 2005 में चावल का उत्पादन तथा 1075 किलो प्रति हेक्टेयर था, जो 2022 में बढ़कर 2276 किलो प्रति हेक्टेयर हो गया. 2005 में मकई का उत्पादन 2098 किलो प्रति हेक्टेयर था, जो 2022 में बढ़कर 3427 किलो प्रति हेक्टेयर हो गया. 2005 में गेहूं का उत्पादन 1617 किलो प्रति हेक्टेयर था, जो 2020 में बढ़कर 2855 किलो प्रति हेक्टेयर हो गया.

ये भी पढ़ेंः बोले मंत्री सुधाकर सिंह- केंद्र की गलत नीतियों की वजह से किसानों को यूरिया मिलने में परेशानी

किसानों की आय को बढ़ाने की चुनौतीः बिहार में निजाम बदलने के साथ ही नीतियों के में बदलाव के संकेत मिलने लगे हैं कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने स्पष्ट किया है कि पिछले कुछ सालों में जिस रफ्तार से जनसंख्या में वृद्धि हुई है. उस हिसाब से उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है. कृषि मंत्री ने कहा कि बिहार में हम फिर से मंडी व्यवस्था लागू करने जा रहे हैं बाजार समिति के जरिए ही किसानों की आय में वृद्धि की जा सकती है.

"पिछले कुछ सालों में जिस रफ्तार से जनसंख्या में वृद्धि हुई है. उस हिसाब से उत्पादन में वृद्धि नहीं हुई है. मंडी व्यवस्था लागू करने जा रहे हैं बाजार समिति के जरिए ही किसानों को फायदा होगा" -सुधाकर सिंह, कृषि मंत्री, बिहार सरकार

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.