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अयांश की दुर्लभ बीमारी का विश्लेषण.. जानें क्या है क्राउडफंडिंग और इससे जुड़ा 'काला सच'

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Published : Oct 2, 2021, 10:44 PM IST

Updated : Oct 3, 2021, 5:00 PM IST

पटना
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स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी-वन (Spinal Muscular Atrophy-1) की बीमारी के इलाज के लिए 16 करोड़ रूपए के इंजेक्शन जोलगेन्स्मा (Zolgensma) का इस्तेमाल किया जाता है. महंगे इलाज, इलाज के लिए क्राउड फंडिंग समेत कई तरह के विवादों को लेकर SMA-1 बीमारी पर देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट...

पटना: स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी-वन (Spinal Muscular Atrophy-1) की बीमारी इन दिनों काफी सुर्खियों में है और सुर्खियों में होने के पीछे की वजह है इस बीमारी का महंगा इलाज. यह एक रेयर ऑफ रेयरेस्ट डिसीस है. इस बीमारी के इलाज में जिस इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है उसका नाम जोलगेन्स्मा (Zolgensma) है. जिसकी एक डोज की कीमत 16 करोड़ रूपए है.

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हालांकि, इस बीमारी के इलाज में इंजेक्शन के सिर्फ एक डोज का ही उपयोग होता है, लेकिन एक डोज की कीमत ही इतनी अधिक है कि एक सामान्य संपन्न लोगों के लिए यह कीमत जुटा पाना मुश्किल है. ऐसे में इन बीमारियों के ट्रीटमेंट के लिए लोग क्राउडफंडिंग का सहारा लेते हैं, क्योंकि एक अकेले व्यक्ति के लिए यह कीमत जुटा पाना नामुमकिन सा होता है. कुछ दिनों पहले इस बीमारी का एक मामला केबीसी में मशहूर कोरियोग्राफर फराह खान ने शो के होस्ट अमिताभ बच्चन के सामने उठाया है, जिसके बाद से यह बीमारी और इसके इलाज की कीमत काफी सुर्खियों में है.

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स्पाइनल मस्कुलर बीमारी क्या है?
डॉक्टर बताते हैं कि यह एक जेनेटिक डिसऑर्डर बीमारी है और इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की मांसपेशियां कमजोर होना शुरू हो जाती है. धीरे-धीरे हरकत करना बंद कर देते हैं और आगे चलकर स्थिति ऐसी आ जाती है कि बच्चा बिना किसी सपोर्ट के सांस तक नहीं ले पाता है. बीमारी की शुरुआती स्टेज में बच्चे के गर्दन का कंट्रोल खत्म हो जाता है और फिर धीरे-धीरे हाथ पैर ढीले पड़ने लगते हैं.

इस बीमारी का ट्रीटमेंट जीन थेरेपी से होता है और ट्रीटमेंट के तहत एक स्वस्थ जेनेटिक मॉलिक्यूल को रीड की हड्डी में इंजेक्ट किया जाता है. जहां से हेल्दी जीन आगे बढ़ते हुए कमजोर पड़ चुके मांसपेशियों में फिर से नई जान डालता है. समय रहते अगर SMA-1 से पीड़ित बच्चे को इंजेक्शन का डोज नहीं दिया जाता है, तो बच्चे की जान चली जाती है.

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2 साल की आयु से पहले इंजेक्शन जरूरी
पटना के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. दिवाकर तेजस्वी का कहना है कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे की अधिकतम आयु 2 से ढाई साल होती है और बच्चे की जान बचाने के लिए जरूरी है कि 2 साल की आयु पूरी होने से पहले बच्चे को जोलगेन्स्मा इंजेक्शन का डोज दे दिया जाए. जितना पहले बच्चे को यह इंजेक्शन दिया जाएगा, उतना ही ज्यादा बच्चे के स्वास्थ्य के लिए यह फायदेमंद होगा.

देखें रिपोर्ट

''अगर शरीर के सभी अंगों की मांसपेशियां कमजोर पड़ गई तो फिर इस इंजेक्शन का कोई महत्व नहीं रह जाता है. अभी तक यह देखने को मिला है कि इस बीमारी में बच्चे को इस इंजेक्शन का एक डोज ही कारगर है, मगर विशेष परिस्थिति में बच्चे को दूसरे डोज की भी जरूरत पड़ सकती है. हालांकि, अभी तक ऐसे कोई मामले नहीं आए हैं, जहां बच्चे को इंजेक्शन का दूसरा डोज देने की जरूरत पड़ी हो. जीन थेरेपी का यह इलाज अभी काफी नया है.''- डॉ. दिवाकर तेजस्वी, वरिष्ठ चिकित्सक, पटना

उन्होंने बताया कि 2018 में FDA ने इसे स्वीकृत किया है. ऐसे में इन केसेस को लेकर अभी और स्टडी की जरूरत है कि आगे चलकर क्या बच्चे को फिर से इस इंजेक्शन के डोज की आवश्यकता पड़ती है या नहीं. लेकिन इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी और इन बीमारियों के विशेषज्ञ चिकित्सक का मानना है कि एक डोज ही काफी है. जोलगेन्स्मा इंजेक्शन जीन मॉडिफाई तकनीक से तैयार किया हुआ एक मॉलिक्यूल है जो SMA-1 से पीड़ित बच्चों के कमजोर पड़ती मांसपेशियों को रिवर्स कर मजबूत करता है.

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कहा जाता है कि जितनी महंगी ये दवाई है उतने में तो एक अस्पताल बनाया जा सकता है. लेकिन, कई डॉक्टरों का कहना है कि किसी शहर में 16 करोड़ में एक गुणवत्तापूर्ण अस्पताल नहीं बनाया जा सकता है.

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जोलगेन्स्मा इंजेक्शन इतना महंगा क्यों है?
डॉ. दिवाकर तेजस्वी का कहना है कि इस इंजेक्शन की कीमत बहुत ही अधिक है, लेकिन इस कीमत को इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी नोवर्टिस जस्टिफाई करती है. कंपनी के पास इस इंजेक्शन को बनाने का पेटेंट प्राप्त है और कंपनी का कहना है कि जीन बेस्ड टेक्निक डेवलप करने में काफी वर्षों का समय लगा है और काफी लागत आई है. स्विटजरलैंड की कंपनी नोवार्टिस जोलगेन्स्मा यह इंजेक्शन तैयार करती है. नोवार्टिस कंपनी दुनियाभर के 50 लोगों को यह दवाई मुफ्त में देती है, लेकिन वह रेंडमली सिलेक्टेड मरीजों को ही मिलती है.

'जीन मॉडिफाई टेक्निक' से तैयार इंजेक्शन
यह इंजेक्शन एफडीए अप्रूव्ड है. जीन मॉडिफाई टेक्निक से तैयार किया हुआ यह इंजेक्शन है और दावा किया जाता है कि इंजेक्शन का एक डोज ही कारगर है. उन्होंने कहा कि कई सारी कंपनियां इस जीन मॉडिफाइड टेक्निक पर काम कर रही है और ऐसा संभव है कि निकट भविष्य में इस इंजेक्शन की कीमत में गिरावट आए.

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चिकित्सकों ने दिया क्राउड फंडिंग का सुझाव
बता दें कि बीते दिनों पटना के आलोक सिंह और नेहा सिंह के 10 माह की बेटे आयांश (Ayansh) को SMA-1 की दुर्लभ बीमारी डिटेक्ट हुई. निमहांस (NIMHANS) बेंगलुरु में इस बीमारी का जांच के दौरान पता चला. इस बीमारी के ट्रीटमेंट के लिए जब डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे को 16 करोड़ का जोलगेन्स्मा इंजेक्शन के एक डोज की जरूरत होगी. जिसके बाद आलोक सिंह और नेहा सिंह के पैरों तले जमीन खिसक गई. निमहांस के चिकित्सकों की कमेटी ने क्राउड फंडिंग का सुझाव दिया और क्राउड फंडिंग करने के लिए अनुमति का एक लेटर उपलब्ध कराया. जिसके बाद पटना में क्राउड फंडिंग की मुहिम शुरू हुई, लेकिन धीरे-धीरे यह क्राउड फंडिंग ठंडा पड़ गया है.

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चंद यूट्यूबर्स की वजह से धीमी पड़ी मुहिम
आयांश की मां नेहा सिंह ने ईटीवी भारत को बताया कि आयांश से जुड़ी खबरें जिम्मेदार मीडिया घरानों ने सही तरीके से चलाई गई, लेकिन चंद यूट्यूबर्स ने आयांश को बचाने की मुहिम को कमजोर कर दिया. नेहा सिंह ने कहा कि जब शुरू में मीडिया में आयांश की बीमारी का सबको पता चला फिर उनके पास कई सारे यूट्यूब के पत्रकार पहुंचने लगे. उनमें से कुछ को लालच हो गया कि वह इस क्राउड फंडिंग से जुड़ते हैं, तो इसका फायदा उन्हें भी होगा.

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लेकिन, जब ऐसा होता नजर नहीं आया तो फिर ऐसे यूट्यूब के पत्रकार दुष्प्रचार करने लगे और सोशल मीडिया के माध्यम से यह भ्रम फैलाने लगे की आयांश को कोई बीमारी नहीं है और उनके माता-पिता फर्जी लोग हैं, झूठ बोल रहे हैं. आयांश को जिस दुर्लभ बीमारी से पीड़ित होने की बात की जा रही है, वह सर्टिफिकेट झूठा है. नेहा सिंह ने कहा कि इस प्रकार की भ्रामक खबरों से क्राउडफंडिंग में कमी आई और क्राउडफंडिंग काफी गिर गया है.

''लोग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज की रिपोर्ट को मानने से इनकार करने लगे. ऐसे में उन्होंने अपने बच्चे को ले जाकर दिल्ली एम्स में दिखाया. दिल्ली एम्स में भी डॉक्टर्स ने आयांश को स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी टाइप-वन की पुष्टि की. एम्स में 6 डॉक्टर की टीम ने इस बीमारी की पुष्टि की और बकायदा लेटर पैड पर स्टांप के साथ यह लिख कर दिया कि इस बीमारी में जो इंजेक्शन जोलगेन्स्मा का उपयोग होना है, उसकी कीमत भारतीय मुद्रा में लगभग 16 करोड़ है. एम्स के डॉक्टर ने इस बात की पुष्टि की है कि आयांश का वास्तविक वजन 7.5 KG है और इसे 41.3 एमएल जोलगेन्स्मा की आवश्यकता पड़ेगी.''- नेहा सिंह, आयांश की मां

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बिगड़ती जा रही है आयांश की हालत
नेहा सिंह ने कहा कि बच्चे की स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब होती जा रही है और अब भोजन को खुद से घोट पाने की क्षमता भी खत्म हो गई है. ऐसे में बच्चे को फूड ट्यूब लगा कर रखा गया है और खाने में लिक्विड भोजन ट्यूब के माध्यम से ही दिया जाता है. उन्होंने बताया कि बच्चे को अब सांस लेने में तकलीफ भी बढ़ने लगी है और सांस अटकने लगती है. इस वजह से रात में सोते समय उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा जाता है. बच्चे के लिए घर में नेबुलाइजर, बाई पैप मशीन और ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करके रखी गई है.

उन्होंने कहा कि एम्स की रिपोर्ट आने के बाद यूट्यूब के फर्जी पत्रकारों को यह एहसास हो गया कि वह जो आयांश के बारे में दुष्प्रचार कर रहे हैं कि उसे यह बीमारी नहीं है वह गलत है और आयांश सचमुच SMA-1 की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है, तब से वह शांत बैठ गए हैं. लेकिन, एक बार जब उन्होंने दुष्प्रचार कर दिया है, इसका असर यह हो गया है कि क्राउड फंडिंग नहीं हो रही है.

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नेहा सिंह ने बताया कि यह सभी पत्रकार उनके घर आकर सारी रिपोर्ट देख चुके थे और अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से आयांश की मदद में फंड इकट्ठा करने की अपील कर रहे थे. लेकिन, जब उन्हें उनका लालच सफल होता नजर नहीं आया तब दुष्प्रचार करने लगे. ऐसे में उनके बच्चे की जान पर संकट बन आया है, क्योंकि समय रहते बच्चे को इंजेक्शन का डोज नहीं मिला तो बच्चा बच नहीं पाएगा.

क्राउड फंडिंग में जालसाज भी सक्रिय
हालांकि, इस आपदा में अवसर तलाशने वाले लोगों की भी कमी नहीं है. जालसाजी का आलम कुछ ऐसा है कि जहां लोग इस उम्मीद में पैसों का दान दे रहे हैं कि बच्चे की जान बच जाएगी, वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग नया UPI नंबर जारी कर फ्रॉड भी कर रहे हैं. जब से अयांश के मामले में क्राउड फंडिंग हो रही है ऐसे में देश भर से उनके फोन-पे, गूगल-पे और पेटीएम नंबर पर मदद आ रही है, लेकिन इसी बीच जालसाजों ने भी फेसबुक के जरिए आयांश के नाम पर फंडिंग शुरू कर दी है.

वहीं, इसके साथ ही कुछ लोगों में क्राउड फंडिंग के पैसों में हिस्सेदारी को लेकर भी विवाद हो जाता है. कई मामलों में ये भी देखने को मिला है कि क्राउड फंडिंग में निश्चित राशि से ज्यादा राशि इकट्ठा हो जाने पर इसके हिस्से को लेकर हिस्सेदारों में भी विवाद की स्थिति हो जाती है.

उन्होंने कहा कि बच्चे को जल्द से जल्द जोलगेन्स्मा इंजेक्शन की आवश्यकता है, क्योंकि इसकी स्थिति दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही है. उन्होंने कहा कि वह अपने बच्चे को लेकर सीएम के जनता दरबार से लेकर दिल्ली पीएमओ ऑफिस तक गई, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई. दिल्ली में जाकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के कार्यालय में स्वास्थ्य मंत्री से मिलने का भी प्रयास किया, लेकिन वहां अधिकारियों ने बताया कि ऐसी दुर्लभ बीमारी के लिए सरकार की तरफ से फंड का कोई प्रावधान नहीं है.

लोगों से ही आखिरी उम्मीद: आयांश की मां
नेहा सिंह ने बताया कि केबीसी में जब हरियाणा के आयांश मदान का मामला अमिताभ बच्चन ने उठाया उस समय तक उसके पास क्राउड फंडिंग मात्र 3 करोड़ की थी और 2 सप्ताह में यह बढ़कर 11 करोड़ हो चुकी है, लेकिन उस समय उनके बेटे आयांश सिंह के लिए क्राउड फंडिंग लगभग 7 करोड़ की थी, जो अब 7.19 करोड़ तक ही सीमित है. अब उन्हें सिर्फ बिहार वासियों और देशवासियों से ही आखिरी उम्मीद बची है कि वह इस बच्चे को बचाने का प्रयास करेंगे.

आयांश की मां नेहा सिंह ने कहा कि अगर बच्चे को सही समय पर इंजेक्शन नहीं मिल पाता है और बच्चे की जान जाती है तो इसके लिए जिम्मेदार वह यूट्यूब चैनल वाले होंगे, जिन्होंने आयांश की बीमारी का दुष्प्रचार किया है और अपने निजी स्वार्थ, अपने यूट्यूब चैनल की पॉपुलरिटी को बढ़ाने और सब्सक्राइबर बढ़ाने के लिए इस प्रकार का घिनौना प्रयास किया है. जो लोग यह कह रहे हैं कि क्राउड फंडिंग के माध्यम से पैसे का फ्रॉड किया जा रहा है, वह सभी बातें गलत और झूठी हैं. बीमारी के नाम पर जितना भी क्राउडफंडिंग इकट्ठा हुआ है, वह सब अभी खाते में है. कोई भी आकर इसे देख सकता है. एक पैसा इसका यूज नहीं किया गया है.

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जेल में बंद हैं आयांश के पिता
बता दें कि आयांश के पिता आलोक सिंह साल 2011 के एक मामले में जेल में बंद हैं और झारखंड के कोर्ट में उन्होंने सरेंडर किया है. आलोक सिंह के ऊपर तब का मामला है, जब उनकी शादी नहीं हुई थी. आलोक सिंह पर नौकरी देने के नाम पर पैसे की उगाही करने का आरोप लगा है.

दुर्लभ बीमारियां यानी ऐसी स्वास्थ्य स्थिति या रोग जो बहुत कम ही लोगों में पाया जाता है. अलग-अलग देश में दुर्लभ बीमारियों के मतलब अलग-अलग होते हैं. 80 फीसदी तक दुर्लभ बीमारियां आनुवांशिक होती हैं. दुर्लभ बीमारियों पर राष्ट्रीय नीति-2021 के अनुसार आनुवंशिक रोग (Genetic Diseases), दुर्लभ कैंसर (Rare Cancer), उष्णकटिबंधीय संक्रामक रोग (Infectious Tropical Diseases) और अपक्षयी रोग (Degenerative Diseases) शामिल हैं.

देश में 450 दुर्लभ बीमारियों की लिस्टिंग की गई है, जिनमें से सिकल-सेल एनीमिया, ऑटो-इम्यून रोग, हीमोफीलिया, थैलेसीमिया, गौचर रोग और सिस्टेम फाइब्रोसिस सबसे आम बीमारियां हैं. वैश्विक स्तर पर दुनिया में 7000 से ज्यादा ऐसी बीमारियां हैं, जिन्हें दुर्लभ श्रेणी में रखा गया है. इनमें हटिन्गटन्स डिजीज, सिस्टिक फाइब्रोसिस और मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी (Muscular Atrophy) वगैरह कुछ प्रमुख नाम हैं.

Last Updated :Oct 3, 2021, 5:00 PM IST
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