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नीति साफ... रणनीति में बदलाव, अचानक आक्रामक क्यों हो गए नीतीश?

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Published : Aug 4, 2021, 7:57 AM IST

बिहार एनडीए ( NDA ) में कुछ भी ठीक नहीं है. कप्तान बदलने के बाद जेडीयू के तेवर बदल गए हैं. अब तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( CM Nitsh Kumar ) भी कुछ मुद्दों पर विपक्ष के साथ खड़े हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या बदलाव के बाद जेडीयू 'दबाव' वाली सियासत कर रही है या बात कुछ और है. पढ़ें पूरी खबर...

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पटना: कप्तान बदलते ही तेवर बदल गए हैं. पिछले कुछ समय से शांत चल रही जेडीयू ( JDU ) अचानक आक्रामक हो गई है. उपेंद्र कुशवाहा की एंट्री और ललन सिंह की ताजपोशी के बाद से जेडीयू नेता फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रहे हैं. कई मुद्दों पर जेडीयू विपक्ष के सुर में सुर मिला रही है. इधर, बीजेपी की ओर से भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी गई है.

दरअसल, बिहार की राजनीति अचानक गरमा गई है. पहले उपेंद्र कुशवाहा ( Upendra Kushwaha ) की जेडीयू में एंट्री, उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ललन सिंह ( Lalan Singh ) की ताजपोशी और फिर राष्ट्रीय गोलबंदी में लालू प्रसाद यादव की सक्रियता ने बिहार की राजनीति को उलझा दिया है.

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पिछले दिनों नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली पार्टी जेडीयू ने तमाम विवादास्पद मुद्दों पर संसद में बीजेपी का साथ दिया. कश्मीर में धारा 370 हटाने का मामला हो या तीन तलाक या फिर राम मंदिर मसला, तमाम मुद्दों पर बीजेपी को जेडीयू का समर्थन हासिल हुआ लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से जेडीयू नेताओं के तेवर बदलने शुरू हो गए. उपेंद्र कुशवाहा और ललन सिंह की सक्रियता से पार्टी की रणनीति में भी बदलाव साफ दिख रही है.

जातिगत जनगणना को लेकर जेडीयू नेताओं के तेवर तल्ख हैं. इस मुद्दे पर पार्टी विपक्ष के साथ दिख रही है. जेडीयू का मानना है कि बिहार विधानसभा में जातिगत जनगणना को लेकर दो बार प्रस्ताव पारित किए हैं और विकास कार्यों को मूर्त रूप देने के लिए भी जातिगत जनगणना जरूरी है और इसे हर हाल में कराया जाना चाहिए.

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वहीं, जातिगत जनगणना ( Cast Census ) को लेकर बीजेपी की राय अलग है. बीजेपी नेता मानते हैं कि जातिगत जनगणना से देश में सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सकता है. सरदार पटेल ने भी जातिगत जनगणना को खारिज किया था. जनगणना सिर्फ एससी-एसटी की इसलिए होती है कि उनके लिए संसद और विधानसभाओं में सीटें आरक्षित हैं. बीजेपी का मानना है कि जातिगत जनगणना के बजाय अमीर और गरीब की गणना होनी चाहिए.

पेगासस फोन टैपिंग मामले को लेकर भी जेडीयू नेताओं ने तेवर कड़े कर लिए हैं. पार्टी का मानना है कि अगर किसी भी स्थिति में लोगों की प्राइवेसी पर हमला होता है तो यह सही नहीं है. ऐसे में पेगासस मामले की जांच कराई जानी चाहिए. जेडीयू की सहयोगी पार्टी HAM ने भी सुर में सुर मिलाया है. इस मसले पर भी नीतीश कुमार विपक्ष के साथ दिख रहे हैं. जबकि पेगासस को लेकर BJP नेताओं के स्टैंड साफ है. पार्टी का मानना है कि फोन टैपिंग जैसी घटना हुई ही नहीं है तो जांच किस बात की होगी.

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'बीजेपी और जेडीयू के बीच में बेहतर सामंजस्य है और हम लोग बेहतर काम कर रहे हैं. जहां तक प्रधानमंत्री पद का सवाल है तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. वहीं, पेगासस मुद्दे पर केंद्र ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है.' - तार किशोर प्रसाद, उपमुख्यमंत्री बिहार

वहीं, जनसंख्या नियंत्रण को लेकर भी जेडीयू बीजेपी के साथ खड़ी नहीं है. पार्टी का मानना है कि कानून बनाने के बजाय लोगों को जागरूक और शिक्षित कर जनसंख्या नियंत्रण की जानी चाहिए. इधर, बीजेपी का मानना है कि बगैर कानून के जनसंख्या नियंत्रण नहीं हो सकता है. जनसंख्या नियंत्रण के लिए दंडनीय कानून के बजाय प्रेरक कानून केंद्र सरकार बनाना चाह रही है. अगर किसी दल को यह लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण जरूरी नहीं है तो उसे आगे आना चाहिए.

'अगर किसी दल को लगता है कि जनसंख्या नियंत्रण नहीं होना चाहिए तो उन्हें आगे आना चाहिए. जहां तक पेगासस का सवाल है तो फोन टैपिंग जैसी घटना हुई ही नहीं है तो जांच का मतलब क्या है.' - अरविंद सिंह, बीजेपी प्रवक्ता

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इन सब के बीच जेडीयू नेता नीतीश कुमार ( CM Nitish Kumar ) को एक बार फिर प्रधानमंत्री पद के लिए मजबूत दावेदार मान रहे हैं. पार्टी नेताओं का मानना है कि उनकी राष्ट्रीय स्तर की छवि है. उन्होंने विकास के नए आयाम तय किए हैं. प्रधानमंत्री होने के तमाम गुण उनके अंदर हैं. वहीं, बीजेपी ने दो टूक कह दिया है कि आने वाले 2 दशक तक प्रधानमंत्री पद की कोई वैकेंसी नहीं है. प्रधानमंत्री बनने के लिए सीटें चाहिए. 17 सीट लाने वाली पार्टी के नेता कैसे प्रधानमंत्री बन सकता है?

इधर, जेडीयू किसी भी स्थिति में खुद को छोटा भाई मानने के लिए तैयार नहीं है. पार्टी नेता बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहते हैं. जेडीयू नेताओं का मानना है कि हम सहयोगी दलों के षड्यंत्र से कमजोर पड़े हैं. हमारी वास्तविक स्थिति वह नहीं है, जो आज दिख रही है. जेडीयू नेताओं के आरोपों पर बीजेपी ने भी स्पष्ट कर दिया है कि जेडीयू को कम सीटें आईं हैं, इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार नहीं है. चिराग पासवान से अदावत की वजह से जेडीयू कमजोर हुई.

'नीतीश कुमार ने हर मुद्दे पर नजीर पेश किया है. जनसंख्या नियंत्रण कानून से नहीं जागरुकता से किया जा सकता है. हमने महिलाओं को शिक्षित और जागरूक कर जन्म दर में कमी करने में कामयाबी हासिल की है.'- नीरज कुमार, जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता

वहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नजदीकियां बीजेपी विरोधी नेताओं से हाल के दिनों में बढ़ी है. पहले नीतीश कुमार की मुलाकात तेजस्वी यादव से हुई और उसके बाद नीतीश ओमप्रकाश चौटाला से मिले. विरोधी नेताओं से नीतीश कुमार का मिलना बीजेपी को नागवार गुजरा है, हालांकि पार्टी नेताओं का कहना है कि मिलने-जुलने का कोई राजनैतिक मतलब नहीं है.

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ऐसा नहीं है कि बीजेपी जेडीयू और नीतीश कुमार के नीति और नियत को नहीं समझ रहे हैं. यही कारण है कि बीजेपी नेता लगातार यह सवाल पूछ रहे हैं कि जनसंख्या नियंत्रण को लेकर नगर निकाय चुनाव में नीतीश सरकार ने ही कानून बनाए हैं कि जिन्हें 2 बच्चे होंगे वही चुनाव लड़ सकते हैं, तो फिर अभी स्टैंड में बदलाव के पीछे वजह क्या है?

'नगर निकाय में कानून बनाने के बाद नीतीश कुमार अपने ही फैसले से पीछे हट रहे हैं. भले ही ऐसा वह राजनीतिक कारणों से कर रहे हैं. हाल के दिनों में जेडीयू की रणनीति में बदलाव साफ दिख रही है.'- डॉ संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

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