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गया में खिलाड़ियों के भविष्य के साथ खिलवाड़, मैरिज हॉल में बदला इनडोर स्टेडियम

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Published : Sep 7, 2021, 11:39 AM IST

स्टेडियम
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गया में इनडोर स्टेडियम बदहाल स्थिति में है. इस स्टेडियम को नगर-निगम ने स्टोर रूम में तब्दील कर दिया है, तो वहीं इसे शादी-विवाह के लिए बुक किया जाता है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

गया: एक ओर सरकार खिलाड़ियों से मेडल लाने की उम्मीद लगाती है, तो दूसरी ओर उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं हो रही हैं. लेकिन फिर भी खिलाड़ी अपने दम पर अपने अंदर की प्रतिभाओं को निखारने में लगे हुए हैं. कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा बिहार के गया जिले के इनडोर स्टेडियम का. यह स्टेडियम खिलाडियों के लिए प्रयास करने का स्थल नहीं बल्कि स्टोर रूम में तब्दील हो चुका है.

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दरअसल, ओलंपिक (Olympics 2020) में जीतने वाले हर एक खिलाड़ियों को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बधाई संदेश देते हुए देखें गए. लेकिन उनके खुद के राज्य में खेल के लिए आधारभूत संरचनाओं की कमी है. गया जिले में भी पूर्व के बने इनडोर और आउटडोर स्टेडियम अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. खिलाड़ियों से लेकर संघ के अधिकारियों तक सरकार से लगातार गुहार लगा रहे हैं. लेकिन सुशासन की सरकार में 16 सालों में एक ईंट तक नहीं लगाई गई.

देखें रिपोर्ट.

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स्टेडियम की ऐसी स्थिति के बावजूद भी गया जिले से कई खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल में परचम लहराया है. गया शहर के आशा सिंह मोड़ स्थित एक इनडोर स्टेडियम का निर्माण सालों पहले किया गया था. अब यह इनडोर स्टेडियम नगर-निगम का स्टोर रूम बना दिया गया है. यहां नगर-निगम के कर्मचारी अपना सामान रखते हैं.

'इस स्टेडियम में पहले बैडमिंटन के खिलाड़ी बहुत अधिक संख्या में खेलने आते थे. धीरे-धीरे खिलाड़ियों की संख्या कम होने लगीं और खेल का क्रियाकलाप भी बंद हो गया. यहां गया नगर निगम का स्टोर रूम बन गया है. यहां कचरे का डिब्बा और कचरा ढ़ोने वाला ठेला लगता है. शादी विवाह के लिए हॉल बुक की जाती है.'

-भोला मांझी, नगर-निगम कर्मचारी

वहीं, गांधी मैदान स्थित हरिहर सुब्रमण्यम स्टेडियम का हाल भी बदहाल है. यह स्टेडियम खेत की जमीन से भी बेकार हो गया है. यहां सुविधा के नाम पर सिर्फ एक नलकूप है. इसके अलावा यहां कुछ भी नहीं है. इसी स्टेडियम में जिला प्रशासन और सरकार के विभिन्न कार्यक्रम होते हैं. ऐसे में नेशनल की तैयारी कर रहे हैं खिलाड़ियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

'यह स्टेडियम पूर्व जिलाधिकारी के संज्ञान में बनाया गया था. उनके जाने के बाद स्टेडियम की स्थिति खराब होती चली गई. यह स्टेडियम दिन-प्रतिदिन गिरता चला जा रहा है. सभी लोग खिलाडियों से मेडल की चाह रखते है. लेकिन उसके लिए ग्राउंड भी तो चाहिए होगा. ग्राउंड ही नहीं रहेगा, तो मेडल कहां से आएगा.' -राजेश कुमार, क्रिकेट कोच

'यहां सालों पहले आधारभूत संरचना के साथ काफी अच्छे खिलाड़ी थे. अब समय बदलने के साथ खिलाड़ियों की संख्या में कमी आ गई है. साथ ही आधारभूत संरचनाएं भी टूट चुकी हैं. बिहार राज्य के आसपास राज्यों के खेल से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्चर के तुलना में बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर शून्य है. ऐसे में भी लोग बिहार से मेडल की उम्मीद रखते हैं. जबकि यहां सबसे पॉपुलर खेल खेलने के लिए भी एक मैदान तक नहीं है.' -खातिब अहमद, सचिव, जिला फुटबॉल संघ

खातिब अहमद ने बताया कि वे जिला प्रशासन से लेकर बिहार सरकार तक कई बार आवेदन दे चुके हैं. लेकिन आज तक इस समस्या का कोई हल नहीं निकला. लेकिन खिलाडियों ने अपने जिले का नाम रोशन करने के लिए बिना स्टेडियम के ही परचम लहराया है.

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