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श्रावणी मेले के दौरान सुल्तानगंज से बाबा धाम और बासुकीनाथ की 'अलौकिक' कांवर यात्रा

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Published : Jun 30, 2020, 8:44 PM IST

कोरोना संकट की वजह से इस साल सावन मेला नहीं लगेगा. झारखंड सरकार के इस फैसले से शिवभक्त मायूस हैं. सुल्तानगंज से देवघर और फिर दुमका तक की कांवर यात्रा अलौकिक होती है. आखिर किन रास्तों से होकर गुजरती है कांवर यात्रा, ये जानने के लिए देखिए पूरी खबर

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पटना/भागलपुर/देवघर/दुमकाः बाबा धाम की अलौकिक कांवर यात्रा बिहार के भागलपुर जिले से शुरू होती है. इस यात्रा का एक बड़ा हिस्सा करीब सौ किलोमीटर बिहार में पड़ता है और इसके बाद करीब पंद्रह किलोमीटर झारखंड में आता है. परंपरा के अनुसार शिवभक्त भागलपुर के सुल्तानगंज में गंगा नदी में स्नान करते हैं और बाबा अजगैबीनाथ की पूजा कर यात्रा का संकल्प लेते हैं.

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सुल्तानगंज का अजगैबीनाथ मंदिर

बिहार का लंबा सफर
शिवभक्त गंगा जल को दो पात्रों में लेकर एक बहंगी में रख लेते हैं, जिसे कांवर कहा जाता है. कांवर लेकर चलने वाले शिवभक्त कांवरिये कहलाते हैं. कांवरिये सुल्तानगंज से 13 किलोमीटर चलकर असरगंज पहुंचते हैं और यहां से तारापुर की दूरी 8 किलोमीटर और फिर रामपुर की दूरी 7 किलोमीटर है. इन पड़ावों पर कांवरिये थोड़ा विश्राम करते हैं.

चौबीस घंटे मुफ्त खाना और दवाएं
रामपुर से 8 किलोमीटर की यात्रा करने पर कुमरसार और 12 किलोमीटर आगे विश्वकर्मा टोला का पड़ाव आता है. रास्तेभर में कांवरियों की सेवा के लिए सरकार के साथ निजी संस्थाएं भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. शिविरों में चौबीस घंटे मुफ्त खाना और दवाएं दी जाती हैं. थोड़ा और आगे बढ़ने पर जलेबिया मोड़ है. अपने नाम की तरह ही ये मोड़ काफी घुमावदार है.

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देवघर का बाबा धाम मंदिर

सुईया पहाड़ में होते थे नुकीले पत्थर
जलेबिया मोड़ से 8 किलोमीटर आगे सुईया पहाड़ है. किसी जमाने में यहां के पत्थर बहुत नुकीले थे, हालांकि सड़क बनने के बाद रास्ता थोड़ा आसान हो गया है. इसके बाद कांवरियए अबरखा, कटोरिया, लक्ष्मण झूला और इनरावरन होते हुए गोड़ियारी पहुंचते हैं. करीब सौ किलोमीटर यात्रा के बाद बांका में बिहार की सीमा समाप्त हो जाती है और कांवरिये झारखंड पहुंच जाते हैं.

शिव के दर्शन की इच्छा
लंबी पैदल यात्रा के दौरान शिवभक्तों के पैरों में छाले पड़ जाते हैं लेकिन आस्था के आगे हर कष्ट छोटा नजर आता है. बोल बम के जयघोष के बीच उनका उत्साह बढ़ता जाता है और कदम अपने आप आगे बढ़ने लगते हैं. शिव के दर्शन की इच्छा सभी कष्टों को भुला देती है.

दुम्मा से झारखंड में प्रवेश
कांवरिये दुम्मा में विशाल गेट से झारखंड में प्रवेश करते हैं और करीब17 किलोमीटर चलकर बाबा भोलेनाथ की शरण में पहुंच जाते हैं. गोड़ियारी से कलकतिया और दर्शनिया होते हुए बाबा धाम जाने का रास्ता है.

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अजगैबीनाथ से बाबा धाम का रास्ता

शिवगंगा में स्नान
बाबा धाम में शिवगंगा में स्नान करना शुभ माना जाता है लिहाजा शिवभक्त शिवगंगा में स्नान करने के बाद ही शिव के दर्शन करते हैं और जल चढ़ाते हैं. हालांकि इनकी ये यात्रा अभी पूरी नहीं मानी जाती.

बासुकीनाथ में पूरी होती है यात्रा
देवघर के बाद शिवभक्त 45 किलोमीटर दूर दुमका के बासुकीनाथ मंदिर जाते हैं और दूसरे पात्र का जल भगवान शिव को चढ़ाते हैं. मान्यताओं के अनुसार बाबा धाम भगवान शिव का दीवानी दरबार है और बासुकीनाथ मंदिर में भगवान का फौजदारी दरबार लगता है. बासुकीनाथ के दर्शन के बाद कांवरियों की अलौकिक यात्रा पूरी होती है.

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दुमका का बासुकीनाथ मंदिर

अजब-अनूठे कांवरिये
बाबा धाम की यात्रा को ज्यादातर कांवरिये पैदल पूरा करते हैं. इनमें कावंरियों को एक वर्ग डाक बम होता है, जो सीधे सुल्तानगंज से देवघर पहुंचते हैं, ये रास्ते में कहीं रुकते नहीं और न ही विश्राम करते हैं. बिना रुके, बिना थके डाक बम 24 घंटे के अंदर दिन-रात चलकर भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

एक महीने में पहुंचते हैं बाबा के दरबार
डंडी बम की यात्रा सबसे कठिन होती है. डंडी बम सुल्तानगंज से जल भरने के बाद रास्तेभर दंडवत होते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं. इनका हठ योग और पराकाष्ठा देखते बनती है. डंडी बम को बाबा धाम पहुंचने में लगभग एक महीने लग जाते हैं.

देखें रिपोर्ट

डंडी बम की निराली आस्था
डंडी बम की आस्था निराली होती है. इनका कष्ट, इनकी इच्छा और दवा सिर्फ भगवान शिव के दर्शन का अभिलाषी होता है. कुछ शिवभक्त सुल्तानगंज की जगह शिवगंगा से दंडवत देते हुए बाबा धाम पहुंचते हैं, इन्हें भी डंडी बम कहा जाता है.

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