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..इसलिए याद रहेगा तारापुर और कुशेश्वरस्थान का उपचुनाव, 2 सीटों ने बिहार की सियासत ही उलट दी !

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Published : Oct 30, 2021, 7:57 PM IST

बिहार विधानसभा की दो सीटों के लिए शनिवार को मतदान हुआ. प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम में कैद हो गयी है. 2 नवंबर को पता चलेगा कि मतदाताओं ने किससे वादे पर भरोसा कर अपना मत दिया है. इस उपचुनाव के दौरान के राजनीतिक घटनाक्रमों को लेकर पढ़ें ये विशेष रिपोर्ट.

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पटना: बिहार विधानसभा की 2 सीटों के लिए मतदान (Bihar By Elections) की प्रक्रिया समाप्त हो गई. जनता ने उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला ईवीएम में बंद कर दिया है. अब 2 नवंबर को मतों की गणना होगी. उसके बाद यह तय होगा कि जनता ने अपना जनमत किसके पक्ष में दिया है. हालांकि पूरे मतदान के क्रम में ईटीवी भारत इस बात की पड़ताल करता रहा कि जनता के मन में क्या है और किन मुद्दों को लेकर लोगों ने मतदान किया है. कुशेश्वरस्थान और तारापुर की जनता ने बताया कि भ्रष्टाचार, महंगाई, विकास और रोजगार उनके मन में है. इसी को लेकर कि वह मतदान भी कर रहे हैं.

अहम यह है कि इन मुद्दों को जनता के बीच किस तरीके से रखा गया है और कौन इसे रखने में जनता के मन को जीत पाया है. इसका फैसला 2 नवंबर को तब होगा जब ईवीएम से जनता का जनमत आएगा. हालांकि इस विधानसभा उपचुनाव में सीटों की संख्या भले ही 2 रही हो लेकिन राजनीतिक दल ने इसे जीतने के लिए अपना पूरा दमखम लगा दिया. इस बार विधानसभा के उपचुनाव में बिहार की राजनीति और सियासत के कई मायने भी बदल गए.


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2 सीट के लिए टूटी राजद कांग्रेस की दोस्ती
बिहार विधानसभा के उपचुनाव में भले ही 2 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया हुई हो लेकिन इसमें सियासी समीकरण बहुत जबरदस्त रहे हैं. 2 सीटों के लिए हुए उपचुनाव में राजद और कांग्रेस में सीट बंटवारे को लेकर रस्साकशी इस कदर हुई कि दोनों का गठबंधन ही टूट गया. यह अलग बात है कि दोस्ती बरकरार रखने का दावा लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) कर रहे हैं. दोस्ती टूट जाने के बाद कांग्रेस कह रही है लालू यादव का कहना है कि सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने उनसे बात की है. नीतीश सरकार को उखाड़ फेंकने का दावा किया है.

कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि बिहार में हमारा महागठबंधन टूट चुका है. अब इस टूटते-जुड़ते राजनीतिक हिस्सेदारी की कहानी किस रंग में जाती है, यह भी जनता के फैसले के बाद ही सामने होगा. जनता का फैसला यह बताएगा कि कांग्रेस ने जो उम्मीदें पाली थी, उस पर जनता ने कितना साथ दिया. राजद का जो आस है, वह जनता के विश्वास को कितना जीत पाया है क्योंकि इसी सियासी कहानी ने एक दशक पुराने मजबूत गठजोड़ वाले गठबंधन को तोड़ दिया.

लालू को आना पड़ा
बिहार में 2 सीटों पर हुए उपचुनाव में पार्टियों की अपनी तैयारी इतनी मजबूत दिखी कि कोई किसी से कम रहने को तैयार ही नहीं था. राष्ट्रीय जनता दल को ऐसा लगा इस चुनाव में कि अगर लालू यादव नहीं आते हैं तो जो माहौल बना है उसे असर नहीं मिल पाएगा. यही वजह है कि राष्ट्रीय जनता दल ने इन 2 सीटों पर उपचुनाव में प्रचार के लिए लालू यादव को बुला लिया. साढे 3 साल बाद लालू यादव बिहार आए और महज 1 दिन आराम करने के बाद चुनावी मैदान में कूद गए. राजद ने दोनों सीटें जीतने के लिए अपना पूरा दम लगा दिया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि साढे 3 साल बाद लौटे लालू यादव 2 सीट जीताने में किस तरह का करिश्मा दिखाते हैं. जो राजद के लिए नई राजनीतिक संजीवनी का काम करे.

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विसर्जन और भकचोन्हर की राजनीति
राजनीति का रंग बहुत मजबूत तब होता है जब उसने जातिवाद या किसी ऐसे चीज का तड़का लगा दिया जाए जिसे जनता चटखारे लेकर पढ़ना, देखना, सुनना शुरू कर दें. लालू यादव की बिहार की राजनीति में यह खासियत रही है कि माहौल बनाने में वे माहिर माने जाते हैं. लालू यादव के बिहार आने के बाद नए बयानों का सिलसिला शुरू हुआ. सबसे पहला बयान दिल्ली में लालू यादव ने भक्त चरण दास (Bhakt Charan Das) को लेकर दिया था.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरणदास भकचोन्हर दास है. लालू यादव जब पटना पहुंचे तो यहां भी बयानों में कोई कमी नहीं रही. लालू यादव ने कहा कि मैं लौट आया हूं और मैं अब नीतीश सरकार का विसर्जन कर दूंगा. बात यहीं तक नहीं रुकी. लालू यादव और आगे बढ़े और मतदान से 1 दिन पहले कह दिया कि 2 सीटों पर हो रहा उपचुनाव तो सिर्फ तैयारी है. अब मैं भाजपा को नाथ दूंगा. यह सभी सियासत 2 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में माहौल बनाने के लिए की गई. अब देखना है कि जनता के मन में इस माहौल का कितना असर पड़ा है और इसका उत्तर 2 नवंबर को सभी राजनीतिक दलों को पता चल जाएगा.

गोली मरवाने और सोनिया से बात ने खूब चर्चा बटोरी
लालू यादव के विसर्जन करने वाली बात और लालू यादव के ही सोनिया गांधी से बात होने की राजनीति ने बिहार में खूब चर्चा बटोरी. विसर्जन और उसके बाद नीतीश कुमार ने जो बयान दिया, उसकी भी चर्चा खूब रही. लालू यादव ने कह दिया था कि हम नीतीश कुमार का विसर्जन कर देंगे. इस पर लालू यादव के बयान का जवाब देते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि लालू यादव उन्हें गोली मरवा सकते हैं. इस बयान ने भी इस चुनाव में खूब जगह बटोरी.

साथ ही लालू यादव का यह बयान भी कि उनकी सोनिया गांधी से बात हुई है और महागठबंधन को लेकर किसी भी तरह का कोई मतभेद नहीं है. क्योंकि कांग्रेस का मतलब राहुल और सोनिया है और सोनिया ने कहा कि बिहार में नीतीश को उखाड़ फेंकना है. यह भी राजनीति के सियासी चर्चे में खूब जगह बटोरी कि बिहार के प्रभारी भक्त चरण दास को कांग्रेस की तरफ से यह कहना पड़ा कि लालू यादव की सोनिया गांधी से कोई बात नहीं हुई है. लालू यादव झूठ बोल रहे हैं. कुल मिलाकर बिहार की राजनीति में विधानसभा की 2 सीटों के लिए हुआ उपचुनाव शब्दों की महाभारत लेकर आया जो जनता के बीच इस रूप में रखा गया कि जीत सिर्फ उन्हें ही देनी है. अब देखना है कि जनता अपना जनमत देती किसे है.

लालू राजनीति के रंग में डूबा रहा उपचुनाव
कहने के लिए बिहार विधानसभा का उपचुनाव 2 सीटों पर था लेकिन जिस तरीके की राजनीतिक रस्साकशी चली, बिहार की पूरी राजनीति ही कहती-सुनती दिखी. एक बात साफ है कि लालू यादव के आने के बाद पूरे उपचुनाव का रंग ही लालूमय हो गया क्योंकि लालू के बयान पर ही 2 सीटों पर हुए उपचुनाव की राजनीति रही. राजनीति में भी लालू यादव ही सबसे ऊपर होगा. लालू यादव नहीं आते तो इस उपचुनाव को जो सियासी रंग बिहार में मिला है, वह नहीं होता.

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चिराग-कांग्रेस जोश में, वामदल चुप
बिहार के सियासी संग्राम में दो फाड़ हो चुकी लोजपा का लोजपा रामविलास ग्रुप चुनावी मैदान में था. इसके मुखिया चिराग पासवान (Chirag Paswan) हैं. नीतीश और तेजस्वी को लेकर खूब बयान दिए और अपनी पार्टी की जीत का दावा भी कर दिया. पहली बार इस सियासी समर में कांग्रेस का हर नेता महागठबंधन तोड़ने के लिए राजद पर हमलावर दिखा. अगर विपक्षी दल में सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई-एमएल की बात करें तो इनका कोई नेता बहुत ज्यादा मुखर होकर नहीं बोला. राजद के पक्ष में इनके बयान जरूर आए लेकिन बाकी लोगों का बयान बहुत ज्यादा नहीं आया.

सबसे ज्यादा मुखर राजनीति में कांग्रेस थी. राजद से गठबंधन टूटने के बाद कन्हैया कुमार चुनावी मैदान में थे और उन्होंने जमकर तेजस्वी यादव पर हमला भी बोला. कन्हैया कुमार से यह उम्मीद की जाती थी कि विकास के मुद्दे पर बीजेपी और जदयू को कुछ ज्यादा घेर पएंगे लेकिन कन्हैया की पूरी राजनीति ही चिराग पासवान और तेजस्वी यादव के इर्द-गिर्द रह गई. सबसे बड़ी बात कि कन्हैया का सबसे बड़ा हमला भी तेजस्वी यादव पर ही रहा जब उन्होंने कह दिया कि जो लोग राज्य संभालने का दावा करने आए हैं उनसे उनका बड़ा भाई नहीं सफलता है.

बिहार विधानसभा की 2 सीटों पर सत्ता के हुकूमत की जंग और राजनेताओं के हर उम्मीद की कहानी जनता ने ईवीएम में बंद कर दिया है. अब 2 नवंबर को ईवीएम खुलेगी तो दावे-वादे, उम्मीद, भरोसा सभी चीजों का फैसला जनता के जनमत से हो जाएगा. इसका पता चलेगा कि लोगों के बीच नेताओं ने जाकर के जिस तरीके की बातें कहीं हैं जनता ने उस पर विश्वास कितना किया और आगे की राजनीति के लिए यह काफी अहम भी है.

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