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Patna Opposition Meeting: पुराने अंदाज में लौटे लालू प्रसाद.. सवाल- तो क्या फिर निभाएंगे किंग मेकर की भूमिका!

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Published : Jun 23, 2023, 11:02 PM IST

देश की राजनीति एक बार फिर से लालू प्रसाद यादव के इर्द-गिर्द घूमने लगी है. विपक्षी एकता की मुहिम भले ही जेपी की धरती से शुरू हुई लेकिन सूत्रधार लालू यादव बने. लालू यादव ने धमाकेदार तरीके से सक्रिय राजनीति में वापसी की और अपने पुराने अंदाज में दिखे. विपक्षी एकता की मुहिम को लालू यादव ने एक तरीके से दिशा देने का काम किया. आज की वह महफिल भी लूट गए...पढ़ें, पूरी खबर

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मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

पटना: राजधानी पटना में शुक्रवार को विपक्ष दलों की बैठक हुई. इस पर पूरे देश की नजरें थी. उससे भी ज्यादा नजरें राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर टिकी हुई थी. अरसे बाद लालू किसी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल हो रहे थे. शाम होते होते एक बार फिर से यह स्पष्ट हो गया कि लालू प्रसाद बिहार में सत्ता में रहे या ना रहें, लेकिन बिहार की राजनीति की सबसे मजबूत धुरी में से एक हैं.

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पैर छूकर लिया आशीर्वादः लालू प्रसाद के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस मीटिंग में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों के जितने भी प्रमुख नेता बिहार आए उनमें से ज्यादातर ने लालू प्रसाद यादव से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हो या फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन. इन सब ने मीटिंग में जाने से पहले लालू प्रसाद यादव से पहले मुलाकात की. ममता बनर्जी ने तो लालू प्रसाद यादव के पैर छूकर उनसे आशीर्वाद भी ली.

पहली बार किंग मेकर बनेः 1996 में लालू प्रसाद यादव के लिए पहली बार किंग मेकर शब्द का प्रयोग किया गया था. 1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिली थी. तब बीजेपी 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वहीं कांग्रेस को 141 सीटें मिली थी और वह दूसरे नंबर पर थी. जबकि जनता दल को 46 सीटें मिली थी. सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया था. 16 मई 1996 को अटल बिहारी बाजपेयी ने पीएम पद की शपथ ली थी, लेकिन लोकसभा में बहुमत हासिल नहीं कर पाए. 13 दिन में सरकार गिर गई.

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और देवेगौड़ा पीएम बनेः इसके बाद बाजी कांग्रेस के हाथ में थी, जिसके पास तब 141 सीटें थी. लेकिन कांग्रेस ने सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया. इसके बाद जनता दल, समाजवादी पार्टी और डीएमके जैसी करीब 13 पार्टियों का गठबंधन सरकार बनाने के लिए सोचा, जिसे कांग्रेस ने समर्थन दिया. जानकार बताते हैं कि पीएम पद को लेकर तब तमिलनाडु भवन में बैठक हुई थी. वहां पर किसी ने एचडी देवेगौड़ा का नाम लिया. रामकृष्ण हेगड़े विरोध में थे लेकिन मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव सहित बाकी नेताओं ने उनके नाम पर सहमति जताई. कांग्रेस ने भी समर्थन दिया.

गुजराल को PM बनाने में थी भूमिकाः तब लालू ने कहा था कि मैं किंग तो नहीं बना लेकिन किंगमेकर बन गया हूं. लालू उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे और दिल्ली में डेरा डाले हुए थे. तब के मंत्रिमंडल में उन्होंने कई साथियों को शामिल कराया. यह एक नया प्रयोग था. लालू के काफी सांसद बिहार से चुनकर आए थे और सरकार को बनवाने में उनकी अहम भूमिका थी. लालू प्रसाद यादव की भूमिका इंद्र कुमार गुजराल के प्रधानमंत्री बनाने में भी मानी जाती है. इन्द्र कुमार गुजराल ने देश के 12वें प्रधानमंत्री के रूप में अपने पद की शपथ अप्रैल 1997 मिली थी और मई 1998 में उनकी सरकार गिरा दी गई.

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नीतीश कुमार को आगे कर रहे हैंः प्रदेश की राजनीति में लालू प्रसाद का सन 2016 में आया वह बयान भी काफी चर्चित रहा था जब उन्होंने कहा था कि नीतीश बिहार देखेंगे और मैं लालटेन लेकर देश भ्रमण पर निकलूंगा. इस बयान से ठीक उल्टा लालू ने जहां खुद को बिहार में सीमित कर लिया वहीं नीतीश कुमार बिहार से निकलकर देश की राजनीति में सक्रिय हो रहे हैं. राजद सूत्रों के अनुसार देश की राजनीति में लालू खुद एक बार फिर किंग मेकर की भूमिका में रखेंगे. इंद्र कुमार गुजराल, एचडी देवेगौड़ा, चंद्रशेखर और बीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले लालू प्रसाद जानते हैं कि देश में बीजेपी का प्रभाव कम करना अकेले उनके बूते का नहीं है, इसीलिए वे नीतीश कुमार को आगे कर रहे हैं.

कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ाः लालू प्रसाद की देश की राजनीति में कितना बड़ा कद है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक तरफ जहां वह तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की पिता करुणानिधि के साथ काम कर चुके हैं, वहीं दूसरी तरफ वह एनसीपी प्रमुख शरद पवार के साथ भी राजनीति की सीढ़ियों को बखूबी ऊपर चढ़े थे. लालू प्रसाद का वाम दलों से भी काफी करीबी संबंध रहा है. कांग्रेस के लिए भी लालू प्रसाद तब खड़े हो गए थे, जब विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस की ही भीतर आवाज आनी शुरू हो गई थी. यूपीए-2 की सरकार से वंचित होने के बाद भी लालू प्रसाद ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा था.

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"पटना में जो विपक्षी पार्टियों की मीटिंग हुई, उसमें लालू प्रसाद के दम को देखने का बखूबी मौका मिला. अब चूंकि अगली मीटिंग 10 या 12 जुलाई को शिमला में प्रस्तावित है, वहां पर भी लालू प्रसाद की अहम भूमिका देखने को मिल सकती है. लालू प्रसाद का स्वास्थ्य पहले से बेहतर है"- करुणासागर, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राजद

नीतीश के साथ खड़े हैं लालूः राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता और तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी करुणासागर कहते हैं कि लालू प्रसाद के लिए किंग मेकर शब्द का उपयोग किया जाता है, लेकिन मैं इसे एक गार्जियन एंगिल के तौर पर देखता हूं. नीतीश कुमार ने बीजेपी को हराने के लिए जो मुहिम चलाई उसमें पहले दिन से ही लालू प्रसाद की सहमति है. नीतीश कुमार की राह बेहतर हो, इसके लिए लालू प्रसाद नीतीश कुमार के साथ खड़े रहे. जो मुहिम चल रही है उसमें लालू प्रसाद का गाइडेन्स आगे भी रहेगा. लालू प्रसाद किंग मेकर रहेंगे.

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"शुक्रवार को विपक्षी दलों की बैठक में नीतीश कुमार को भले ही जरूर वाहवाही मिली, लेकिन देखा जाए तो नीतीश कुमार के बैकबोन के रूप में लालू प्रसाद यादव थे. लालू प्रसाद पहले भी राजा बनाते रहे हैं और सत्ता तक नेताओं को पहुंचाते रहे हैं. कवायद पुरानी है और कहा भी जा रहा है कि लालू प्रसाद यादव के इंटरेस्ट के बाद ही विपक्षी दलों के नेता पटना पहुंचे थे"- मनोज पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

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