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नक्सलियों के सशर्त बातचीत के प्रस्ताव से फंसा पेंच, सरकार ने दिया था माओवादियों को बातचीत का प्रस्ताव

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 27, 2024, 6:03 PM IST

conditional talks stuck in peace discussion
सरकार ने दिया था माओवादियों को बातचीत का प्रस्ताव

Naxalites proposal for conditional talks प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा ने सरकार बनने के बाद नक्सलियों को बातचीत का प्रस्ताव दिया था. गृहमंत्री ने कहा था कि वो आधी रात को भी माओवादियों से बातचीत के लिए तैयार हैं. नक्सलियों ने सरकार की पहल का स्वागत भी किया. बातचीत के लिए जो शर्त नक्सली संगठनों के नेताओं ने रखी अब वो सरकार के गले नहीं उतर रही है. पेंच फंसने से बातचीत शुरु होने से पहले ही शांति वार्ता में अड़चन आ गई है.

सरकार ने दिया था माओवादियों को बातचीत का प्रस्ताव
सरकार ने दिया था माओवादियों को बातचीत का प्रस्ताव

रायपुर: बस्तर में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा ने नक्सलियों से बातचीत किए जाने की बात कही. सरकार के प्रस्ताव का नक्सलियों ने भी सार्थक जवाब दिया. नक्सलियों के प्रवक्ता ने पत्र जारी कर कहा कि हम बातचीत के लिए तैयार हैं. पत्र में माओवादियों ने बताया कि वो बातचीत तो करेंगे लेकिन सशर्त बातचीत करेंगे. बातचीत से पहले जवानों के कैंप बस्तर से हटाए जाएं. जितने भी नक्सली जेल में बंद है उनको पहले छोड़ा जाए. बातचीत से पहले ऐसे कई शर्त नक्सलियों ने रखे. अब सरकार पसोपेश में पड़ी है कि वो नक्सलियों से बातचीत करे या फिर नहीं.

नक्सलियों की सशर्त बातचीत की पेशकश से फंसा पेंच: प्रदेश के सामाजिक संगठन भी प्रदेश में लाल आतंक को खत्म करने के लिए इस पहल का स्वागत कर रहे हैं. सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग नक्सलियों और सरकार दोनों से शांति वार्ता शुरु करने की अपील भी कर रहे हैं. कांग्रेस नक्सलियों से वार्ता शुरु करने की वकालत तो करती है लेकिन बीजेपी को भी कोसना नहीं भूलती. कांग्रेस का आरोप है कि उनके शासन काल में तीन महीने के भीतर ही नक्सली सरकार को आंखें दिखाने लगे हैं. बीजेपी ने कांग्रेस के इन आरोपों पर कड़ा पलटवार किया है. बीजेपी का कहना है कि नक्सलियों को कांग्रेस की सरकार सूट करती थी. जब कांग्रेस छत्तीसगढ़ में जीतकर आई थी तो नक्सली ये कहते थे कि उनकी सरकार आ गई है. राजनीतिक गलियारों और सियासी मामलों पर पैनी नजर रखने वाले कहते हैं कि नक्सलियों से बातचीत संभव नहीं है.

राज्य सरकार ने माओवादियों से बातचीत का प्रस्ताव रखा है. सरकार के प्रस्ताव के बाद माओवादियों की ओर से भी सार्थक जवाब मिला है. सरकार और नक्सली दोनों बातचीत के लिए तैयार हैं. जितनी जल्दी बातचीत शुरु हो उतना अच्छा होगा. हमें उम्मीद है कि दोनों ओर से बातचीत के लिए अच्छा माहौल बनाया जाएगा. माओवादियों ने दो शर्त रखी है जिसमें दो प्रमुख शर्तें भी शामिल हैं. नक्सलियों की पहली मांग है कि राजनीतिक बंदियों को छोड़ा जाए. नक्सली वारदातों के चलते जो लोग इलाके से बाहर चले गए हैं उनको फिर से बसाया जाए. सरकार और माओवादियों से अपील करते हैं कि दोनों एक दूसरे के खिलाफ कार्रवाई बंद करें. नक्सली भी बस्तर में विकास का काम होने दें. सरकार को भी चाहिए कि वो कुछ दिनों के लिए कैंप बनाने का काम रोक दे. बातचीत के लिए ऐसा माहौल बनाना पड़ेगा. - शुभ्रांशु चौधरी, सदस्य, छत्तीसगढ़ की चिंतित नागरिक समिति

प्रदेश में जब से बीजेपी की सरकार बनी है तब से नक्सली घटनाओं में तेजी आई है. बीते दो महीनों के भीतर ही 26 से ज्यादा नक्सली वारदातें हुई हैं. बस्तर में हमारे कई जवान शहीद हुए हैं. बीजेपी के पास माओवाद से निपटने के लिए कोई रोड मैप नहीं हैं. नक्सली वारदातों से निपटने के लिए सरकार के पास कोई रणनीति भी नहीं है. बीजेपी सरकार को ये साफ करना चाहिए की क्या नक्सलियों से बातचीत के लिए तैयार है. सरकार अगर बातचीत करना चाहती है तो क्या वो नक्सलियों की शर्तों पर बातचीत करेगी. केंद्र और राज्य सरकार दोनों माओवाद के खतरे से निपटने में नाकाम साबित हुई है. केंद्रीय गृहमंत्री को इसपर जवाब देना चाहिए. - धनंजय सिंह ठाकुर, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस

भारतीय संविधान में हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है. संविधान के आधार पर हमारी सरकार ने एक संदेश दिया है. हम नक्सलियों से जरूर बातचीत के लिए तैयार हैं लेकिन किसी गलत मांग को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. कांग्रेस की सरकार के वक्त नक्सली बड़े गर्व से कहते थे कि अब हमारी सरकार है. प्रदेश में अब बीजेपी की सरकार है हम नक्सलियों को लेकर अफनी राय साफ रखते हैं. आतंक और माओवाद सरकार किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. नक्सली गतिविधियों को बंद किया जाएगा जो सरकार को चुनौती देगा उससे कड़ाई से निपटेंगे. सरकार पर दबाव बनाकर कोई मनोवैज्ञानिक लाभ लेना चाहता है तो उसे ये छूट नहीं दी जाएगी. बीजेपी सरकार फ्रंट फुट पर है बैकफुट पर नहीं. बस्तर में आतंक के खिलाफ अभियान और तेजी और मुस्तैदी के साथ जारी रहेगा. कांग्रेस के वक्त में नक्सली कंफर्ट जोन में थे अब उनको ये सहूलियत नहीं मिलने वाली है. - संजय श्रीवास्तव, प्रदेश प्रवक्ता, बीजेपी

सरकार ने जरूर बातचीत की पहल की है. नक्सलियों की ओर से भी उसका जवाब आया है. नक्सली पहले भी सशर्त बातचीत के लिए कहते रहे हैं. नक्सली हर बार जो बातचीत की शर्त रखते हैं वो शर्त इतनी कठिन होती है कि उसके साथ बातचीत नहीं हो सकती है. नक्सली चाहते हैं कि बस्तर में कैंप नहीं बने, नक्सली चाहते हैं कि जो कैंप बने हैं वो बंद कर दिए जाएं. जवानों को कैंप की जगह थाने के भीतर होना चाहिए ये नक्सलियों की मांग है. माओवादी राजनीतिक बंदियों को भी छोड़े जाने की मांग कर रहे हैं. इन तमाम शर्तों को अगर सरकार मान ले तब नक्सली संगठन बातचीत के लिए आएग आएगा. सरकार के स्तर पर ये संभव नहीं है. नक्सली भी जानते हैं कि सरकार उनकी शर्तों को नहीं मानेगी. माओवादी जानबूझकर ऐसी शर्तें रखते हैं जिससे सरकार बातचीत के लिए तैयार नहीं हो. - उचित शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार


नक्सली नहीं चाहते बातचीत हो: कुल मिलाकर बातचीत के जरिए नक्सलवाद का कोई अंत होता भविष्य में तो नजर नहीं आ रहा है. सरकार नक्सलियो की सशर्त बातचीत की पेशकश कभी स्वीकार नहीं करेगी. नक्सली भी यही चाहते हैं कि वार्ता शुरु होने से पहले ही टूटने का ठीकरा उनके माथे पर नहीं फोड़ा जाए. बस्तर में नक्सलवाद को खत्म करने की जो पहल सरकार ने शुरु की थी उसे आगे बढ़ाने के लिए दोनो में से कोई भी पक्ष फिलहाल तो तैयार नहीं लगता है.

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