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बढ़ते तापमान से खराब हो रही गेहूं की फसल, कृषि वैज्ञानिकों ने बताया बंपर उत्पादन का तरीका

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Feb 24, 2024, 10:18 PM IST

How to produce bumper crop of wheat
बढ़ते तापमान से खराब हो रही गेहूं की फसल

Bumper Crop Of Wheat छत्तीसगढ़ में बढ़ते तापमान ने गेहूं की फसल पर असर डाला है.तापमान बढ़ने पर गेहूं की फसल प्रभावित हो रही है.कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को इस समस्या से निपटने का तरीका बताया है.

गेहूं की खेती कैसे करें

बिलासपुर : पृथ्वी में लगातार ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसम में बदलाव हो रहा है. पूरे विश्व समेत भारत में भी मौसम बदलने लगा है. ऐसे में छत्तीसगढ़ के तापमान में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई है. प्रदेश में तापमान में अंतर होने के कारण मौसम के साथ फसल भी प्रभावित हुई है. बढ़ते तापमान की वजह से गेहूं के दानों का आकार छोटा होने लगा है. गेहूं का उत्पादन भी घटा है. बढ़ता तापमान कृषि वैज्ञानिकों और किसानों के लिए चिंता की बड़ी वजह बन चुकी है.

किन किसानों को होगा फायदा ? : कृषि वैज्ञानिकों की माने तो गेहूं की बोनी का समय जल्दी करने से पैदावार और गेहूं के दानों में सुधार लाया जा सकता है. इसके अलावा किसान अच्छे बीज का उपयोग करे तो उन्हें अधिक लाभ मिलेगा.जिन किसानों ने दिसंबर मध्य में बोनी की है उनकी फसल में तापमान का असर दिख रहा है.लेकिन जिन किसानों ने नवंबर के शुरुआती हफ्ते में ही बोनी कर ली है,उन्हें अच्छी क्वॉलिटी की फसल मिलेगी.

क्यों फसल की क्वॉलिटी हो रही खराब ? : छ्त्तीसगढ़ में गेहूं की फसल धान की फसल काटने के बाद ली जाती है. लेकिन किसान अधिक लाभ के लिए धान की फसल को लंबे समय तक खेतों में रखते हैं. इस वजह से कटाई देरी से होती है. लिहाजा गेहूं की बोनी दिसंबर में होती है.यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के खेतों में उगे गेहूं की उत्पादन क्वॉलिटी खराब हो रही है. गेहूं की बालियां पहले के मुकाबले अब छोटे होने लगे हैं.पैदावार के बाद बालियों में दाने सिकुड़कर छोटे हो जाते हैं.जिससे फसल प्रभावित हो रही है.

तापमान में बढ़ोतरी भी बड़ा कारण : कृषि वैज्ञानिक डॉ. दिनेश पांडेय के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से लगातार तापमान में आंशिक बढ़ोतरी हुई है. तापमान बढ़ने से गेहूं की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है. तापमान बढ़ने के कारण गेहूं की बालियों में ग्रोथ रुक जाती है.गेहूं की फसल को वृद्धि के लिए कम तापमान और अधिक ठंड की जरूरत है.तापमान बढ़ने पर फसल की वानस्पतिक वृद्धि रूक जाती है.

''तापमान 20 डिग्री से बढ़ रहा है और 30-35 डिग्री तक जा रहा है. ऐसी स्थिति में वानस्पतिक वृद्धि नहीं हो पाता.जिसके कारण गेहूं की बालियां छोटी रह जाती हैं. दाने सिकुड़ जाते हैं. ऐसी परिस्थिति में जो किसान सिंचाई 20 दिन के अंतराल में करते हैं, उस अवधि को कम करना चाहिए. तापमान बढ़ने पर खेतों में निरंतर नमी बनाए रखना चाहिए. फसल को स्प्रिंक्लर से पानी देना चाहिए.ताकि तापमान नियंत्रित रहे और फसल की ग्रोथ अच्छे से हो.'' डॉ. दिनेश पांडेय, कृषि वैज्ञानिक, केवीके

कैसे करें बढ़ते तापमान को कंट्रोल ?: कृषि वैज्ञानिक डॉ. दिनेश पांडेय के मुताबिक सिंचाई साधन से संपन्न किसानों को सबसे ज्यादा ध्यान रखना चाहिए.किसी भी सूरत में खेतों में मिट्टी की नमी कम नहीं होनी चाहिए.बढ़ते तापमान के नियंत्रण के लिए स्प्रिंकलर करें .कोशिश करें कि गेहूं की बोनी सही समय नवंबर में हो जाए. जिससे अपेक्षित उत्पादन मिले

कितना होना चाहिए तापमान ? : कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की फसल के लिए न्यूनतम तापमान 12 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए. लेकिन इस समय में न्यूनतम तापमान 19.4 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 33 डिग्री सेल्सियस पर है. बढ़ता तापमान उत्पादन में आंशिक कमी लाती है. दानों का मानक आकार भी प्रभावित होता है.


अच्छे बीजों का चयन भी जरूरी : इंदिरा गांधी कृषि विज्ञान एवं शोध संस्थान के वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. अजय प्रकाश अग्रवाल ने भी इस बारे में राय दी है. डॉ अग्रवाल के मुताबिक किसानों को बीज का चयन सोच समझ कर करना चाहिए. क्योंकि बीज उत्पादन में काफी असर डालती है. अच्छा बीज उपयोग करने से उत्पादन में बढ़ोतरी होती है. छत्तीसगढ़ में बीजों का चयन सही नहीं होने की वजह से गेहूं की फसल में कमी होने लगती है. जहां उत्पादन 14 से 16 क्विंटल लिया जा सकता है, वहां 8 क्विंटल ही उत्पादन प्रति एकड़ होता है.

इस समय कृषि विज्ञान केंद्र ने शोध के माध्यम से एक नई किस्म बनाई है. जो प्रति एकड़ 14 से 16 क्विंटल उत्पादन देता है. इस बीज की खासियत ये है कि इस पर बढ़ते तापमान का ज्यादा असर नहीं पड़ता है. बीज की बढ़े हुए तापमान को भी सहन कर लेता है. इस बीज को किसान बाजार में कनिष्का 1029 और छत्तीसगढ़ 4 (1015) के नाम से ले सकते हैं. यदि किसान नवंबर माह में किसी कारण से बोवाई नहीं कर सकता तो उसे दिसंबर पहले हफ्ते में बुवाई कर लेनी चाहिए.

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