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इजराइल-हमास युद्ध के बीच एक और संगठन की एंट्री, अमेरिकी सैनिकों पर साधा सीधा निशाना

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 29, 2024, 7:54 PM IST

इजराइल और हमास युद्ध के बीच पहली बार किसी चरमपंथी संगठन ने अमेरिकी सैनिकों को सीधे तौर पर निशाना बनाया है. तीन अमेरिकी सैनिकों की मौत हो गई है. यह हमला आईआरआई नाम के एक संगठन ने किया है. यह संगठन इराक बेस्ड है. हालांकि, इसे ईरान का समर्थन हासिल है. अब सवाल पूछे जा रहे हैं कि क्या ईरान जानबूझकर किसी प्रॉक्सी के जरिए अमेरिका पर हमला कर रहा है. इस सवाल के उठते ही ईरान ने अपना स्टैंड साफ कर दिया है. उसने साफ तौर पर इस हमले में शामिल होने से इनकार कर दिया है. इस विषय पर पेश है वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइंया का एक विश्लेषण.

Israel hamas war
इजराइल हमास युद्ध

नई दिल्ली : पिछले साल अक्टूबर महीने में जब से इजराइल और हमास के बीच युद्ध की शुरुआत हुई है, पहली बार एक ड्रोन हमले में तीन अमेरिकी सैनिकों की मौत हुई है. यह हमला सीरिया और उत्तर पूर्व जॉर्डन की सीमा पर किया गया. रिपोर्ट के अनुसार इस हमले में दो दर्जन से अधिक अन्य सैनिक भी घायल हुए हैं. अमेरिकी अधिकारियों ने इस हमले की पुष्टि की है.

अमेरिकी सेंट्रल कमांड द्वारा जारी प्रेस रिलीज में बताया गया है कि हमला अमेरिकी सैन्य बेस पर किया गया था और इसमें अनमैंड एरियल सिस्टम का प्रयोग किया गया था. शुरुआती तौर पर इस हमले के लिए इरान समर्थित इस्लामिक रेजिस्टेंस ऑफ इराक (इराक बेस्ड संगठन आईआरआई) को जिम्मेदार ठहराया गया है. हालांकि, इस संगठन ने अपनी भूमिका से इनकार किया है.

इस हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बदला लेने की बात कही है. उन्होंने कहा, 'हम इसका जवाब देंगे.' उन्होंने आगे कहा कि हम अपने चुने गए समय पर जिम्मेदार लोगों को अपने तरीके से जवाब देंगे.

कौन है आईआरआई - आईआरआई एक शिया इस्लामिक आतंकी समूह है. इसका बेस इराक में है. यह इरान समर्थित संगठन माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इरान द्वारा समर्थित कई संगठनों का यह प्रतिनिधित्व करता है. इसके तहत कताइब हिजबुल्लाह, हरकत हिजबुल्लाह अल-नुजाबा, असैब अहल अल-हक और कताइब सैय्यद अल-शुहादा जैसे संगठन शामिल हैं.

कताइब हिजबुल्लाह (बटालियन ऑफ द पार्टी ऑफ गॉड) एक कट्टरपंथी इराकी शिया अर्धसैनिक समूह है, जो कभी पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेज (पीएमएफ) का हिस्सा हुआ करता था. पीएमएफ एक इराकी राज्य-प्रायोजित अंब्रेला संगठन है, जिसके अंदर लगभग 67 अलग-अलग सशस्त्र गुट शामिल हैं. इन्होंने आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ लड़ाई लड़ी है.

2003-11 के बीच इराक युद्ध के दौरान इस संगठन ने अमेरिकी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला था. इसके बाद 2013 और 2017 के बीच इसने आतंकी संगठन आईएस का मुकाबला किया. इस संगठन का नेतृत्व अबु महदी अल मुहंदी के पास था. 2020 में अमेरिकी ड्रोन हमले में उसकी मृत्यु हो गई. उसके बाद इसका नेतृत्व अब्दुल अजीज अल मुहम्मादवी (अबु फडक) के पास चला गया. तब से यह संगठन इराक में इरान समर्थित सरकार बनाने को लेकर प्रयासरत रहा है. वह इराक से अमेरिकी सेनाओं की विदाई चाहता है. इस पूरे क्षेत्र में वह ईरान के क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय हितों का प्रसार चाहता है.

इसी तरह से हरकत हिजबुल्लाह अल-नुजबा ( मूवमेंट ऑफ द पार्टी ऑफ गॉड्स नोब्लस) एक कट्टरपंथी इराकी शिया अर्धसैनिक समूह है जो विशेष रूप से सीरिया और इराक में सक्रिय है. इसकी स्थापाना 2013 में अकरम अल काबी द्वारा की गई थी. उनका मकसद सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद का समर्थन करना था. इसे ईरान के इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कॉर्प्स का समर्थन रहा है. वहीं से इसे पैसे, हथियार और ट्रेनिंग मिलती है. यह इराक के पीएमएफ का 2020 तक हिस्सा हुआ करता था. 2020 में इसने आईआरआई को ज्वाइन कर लिया. द नुजाबा मूवमेंट ईरान की विचारधारा को स्वीकार करता है और यह उनके सुप्रीम लीडर अली खुमैनी के नेतृत्व को भी पूरी से स्वीकार करता है.

असैब अहल अल-हक (धर्मी लीग), जिसे खज़ाली नेटवर्क के नाम से भी जाना जाता है, एक कट्टरपंथी इराकी शिया राजनीतिक दल और अर्द्धसैनिक संगठन है. यह इराकी विद्रोह और सीरियाई गृहयुद्ध में शामिल है. इराक युद्ध के दौरान इसे ईराक का सबसे बड़ा स्पेशल ग्रुप माना जाता था. ईरान समर्थित शिया अर्द्धसैनिक बलों के लिए अमेरिकी नाम- स्पेशल ग्रुप- है. यह 2016-20 तक पीएमएफ का भागीदार था. आईएस के खिलाफ लड़ता रहा. इसकी भी फंडिंग ईरान द्वारा की जाती है. इसे हिजबुल्लाह का भी समर्थन है. हिज्बुल्लाह भी ईरान द्वारा ही समर्थित संगठन है. यह लेबनान में अधिक प्रभावकारी है. 2018 में इसे इराकी सुरक्षा दस्ते का हिस्सा बना दिया गया और तब से इसे इराकी सरकार द्वारा सैलरी दी जाती है. बृहत्तर तौर पर यह पीएमएफ का ही घटक है.

कताइब सैय्यद अल-शुहाद (शहीदों के मास्टर की बटालियन) भी 2013 में गठित एक कट्टरपंथी इराकी शिया मिलिशिया है. इसका घोषित मिशन "दुनिया भर में शिया तीर्थस्थलों की रक्षा करना", "इराकी एकता" को संरक्षित करना और "इराकी एकता" को बनाए रखना है. यह सांप्रदायिक संघर्ष को भी खत्म करना चाहता है. इस संगठन का वित्तपोषण हिजबुल्लाह और ईरान द्वारा किया जाता है. यह पीएमएफ के प्रमुख घटक के रूप में 2014 से ही साथ रहा है.

अब सवाल ये है कि ये सभी संगठन इजराइल-फिलिस्तीन युद्ध में क्यों शामिल हो रहे हैं. इसका सीधा जवाब है - विचारधारा. और वह विचारधारा है शिया विचारधारा. यही वजह है कि लेबनान का हिजबुल्लाह, यमन का हौथी, इराक का आईआरआई सभी फिलिस्तीनियों के प्रति हमदर्दी रखते हैं. उनका मानना है कि फिलिस्तीनियों का दमन किया जा रहा है. इसके बावजूद कि बहुत सारे फिलिस्तीनी सुन्नी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन जब भी इजराइल की बात आती है, तो वे इस विरोध को भूल जाते हैं. पश्चिम एशिया में जब भी इजराइल की बात आती है, तो ये सभी ताकतें एक हो जाती हैं. यहां पर जो भी इजराइल का विरोध करेगा, ये सभी उनके पीछे हो जाते हैं.

पिछले साल सात अक्टूबर को हमास ने अचानक ही इजराइल पर हमला कर दिया था. 1200 से अधिक लोग मारे गए. 240 से अधिक लोगों का अपहरण कर लिया गया. उसके बाद इजराइल ने जवाबी कार्रवाई की. और अब तक इस युद्ध में 26000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं.

जब से इस युद्ध की शुरुआत हुई है, तभी से हिजबुल्लाह लेबनान सीमा से इजराइल पर हमलावर रहा है. रेड सी से गुजरने वाले जहाजों पर हौथी का हमला तेज हो गया है. उनका कहना है कि इन जहाजों के जरिए इजराइल को मदद भेजी जा रही है. हालांकि, ईरान के साथ रणनीतिक रूप से बातचीत के बाद हिजबुल्लाह ने अपना हमला रोक दिया है. लेकिन आईआरआई ने हमला नहीं रोका है. वह अमेरिकी और इजराइली ठिकानों को निशाना बना रहा है. उसने कई जगहों पर हमले किए हैं. इसी कड़ी में इसने अमेरिकी सैनिकों पर भी हमले किए हैं.

18 अक्टूबर 2023 से आईआरआई इराक और सीरिया में स्थित अमेरिकी ठिकानों को अपने निशान पर ले रहा है. इसने सबसे पहले अल असद एयरबेस पर ड्रोन से हमले की शुरुआत की थी. हालांकि, इस हमले को रोक लिया गया था. इसके बाद 24 अक्टूबर को इसने पूर्वी सीरिया के अमेरिकी बेस पर ड्रोन से हमले किए. इनमें अल उमर ऑयल फील्ड भी शामिल रहा है.

18 जनवरी 2024 को आईआरआई ने अमेरिकी एमक्यू9 रीपर ट्रोन को मार गिराने का दावा किया. उस समय यह कुवैत के मुकदादिया से उड़ान भर रहा था. इसने अल अनबर गवर्नरेट में ऐन अल-असद एयर बेस पर मिसाइल हमले का दावा किया, जिसके परिणामस्वरूप अमेरिकी और इराकी घायल हो गए.

इस हमले की ही अगली कड़ी रविवार को किया गया हमला था. तीन हमले सीरिया में स्थित अमेरिकी कब्जे वाले ठिकानों पर किए गए थे, जिनमें अल-शदादी, अल-रुकबान और अल-तनफ पर फोकस किया गया था. चौथे हमले में इराकी कुर्दिस्तान क्षेत्र में एरबिल हवाई अड्डे के पास एक अड्डे को निशाना बनाया गया, जबकि पांचवां ऑपरेशन फिलिस्तीन के कब्जे वाले ज़ेवेलुन नौसैनिक फैसिलिटी पर किया गया था.

सवाल ये है कि क्या इस हमले के जरिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है या नहीं. इराक और जॉर्डन में भारतीय दूत रह चुके आर दयाकार ने ईटीवी भारत से कहा- इस क्षेत्र में कई ऐसी ताकतें हैं, जिन्हें किसी न किसी देश का सीधा समर्थन मिलता है, इसके बावजूद वे उनके आदेश का अक्षरशतः पालन नहीं करते हैं. वैसे, भी ईरान ने तो साफ तौर पर किसी भी हमले में शामिल होने से साफ इनकरा कर दिया है. यहां तक कि ईरान ने सात अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए हमले की भी जानकारी नहीं होने की बात स्वीकार कर ली है. इसलिए असल चिंता ईरान से नहीं, बल्कि इराक बेस्ड इस तरह के संगठनों से आने वाली है, जो अमेरिकी ठिकानों को निशाना बना रहे हैं.

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