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रूस से कच्चे तेल का आयात बंद होता तो आसमान छू रही होतीं वैश्विक कीमतें : एक्सपर्ट - Russian oil

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 13, 2024, 5:58 PM IST

Without the Russian oil option : रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बावजूद भारत ने कच्चे तेल की आपूर्ति बरकरार रखी है. भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर रहा है. जानिए इस मुद्दे पर एक्सपर्ट का क्या कहना है. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता चंद्रकला चौधरी की रिपोर्ट.

Russian oil
कच्चे तेल का आयात (IANS FILE PHOTO)

नई दिल्ली: रूस पर प्रतिबंध के बावजूद भारत मॉस्को से तेल खरीद रहा है, जिस पर रूस-यूक्रेन विवाद छिड़ने के बाद से बहस चल रही है. भारत के रूसी तेल के आयात ने ऊर्जा के स्रोतों में विविधता लाकर आपूर्ति संकट को रोकने में मदद की है. कई आपूर्तिकर्ताओं पर भरोसा करके, भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर रहा है. इसके अतिरिक्त, एक प्रमुख वैश्विक उत्पादक रूस से तेल आयात करने से भारत को बातचीत में लाभ मिलता है और बाजार में प्रतिस्पर्धी मूल्य निर्धारण बनाए रखने में मदद मिलती है.

ईटीवी भारत इस बात की पड़ताल कर रहा है कि भारत का रूसी तेल आयात वैश्विक बाजार को लुब्रिकेट करने में कैसे मदद कर सकता है. एक एक्सपर्ट जेएनयू में मध्य एशियाई विषय पर अध्ययन कर रही और सेंटर फॉर रशियन की अध्यक्ष अर्चना उपाध्याय कहती हैं 'रूसी तेल विकल्प के बिना, मध्य पूर्वी कच्चे तेल की वैश्विक कीमतें आसमान पर पहुंच जातीं. इससे ​​कोविड के झटके से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही विकासशील अर्थव्यवस्थाएं नष्ट हो जातीं.'

इस बीच भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी ने दावा किया है कि अमेरिका ने भारत को रूसी तेल खरीदने की इजाजत दे दी है. पिछले सप्ताह वाशिंगटन में काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि 'हमने यह सुनिश्चित करने के लिए खरीदारी की अनुमति दी कि वैश्विक स्तर पर कीमतें न बढ़ें.' उन्होंने कहा कि 'इस व्यवस्था के कारण, वैश्विक तेल की कीमतें नहीं बढ़ीं और भारत ने उस पर काम किया.' पिछले महीने की शुरुआत में दौरे पर आए अमेरिकी ट्रेजरी अधिकारी ने भी कहा था कि अमेरिका ने भारत से रूसी तेल आयात में कटौती करने के लिए नहीं कहा था.

अमेरिका ने ये कहा था : अमेरिकी ट्रेजरी के सहायक सचिव एरिक वान नॉस्ट्रैंड ने कहा था, 'तेल आपूर्ति को विनियमित करना हमारे लिए महत्वपूर्ण है. लेकिन हम जो करना चाहते हैं वह पुतिन के लाभ को सीमित करना है.' एरिक गार्सेटी के बयान पर टिप्पणी करते हुए, अर्चना उपाध्याय ने कहा, 'क्या भारत ने रूसी तेल न खरीदने के अमेरिकी आदेश को स्वीकार किया होगा? मेरे विचार में नहीं. भारत प्रतिबंध व्यवस्था का हिस्सा नहीं है. यह रूस के साथ जुड़ने के लिए स्वतंत्र है जो उसने किया है और ऐसा करना जारी रखेंगे.'

उन्होंने कहा कि 'अमेरिका के पास अपने राष्ट्रीय हितों के संबंध में भारत की पसंद को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है...इस मामले में यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा है. भारतीय विदेश मंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत का राष्ट्रीय हित भारत की पसंद को निर्धारित करेगा और रूस के साथ भारत के संबंध बदल गए हैं. यह इसका सबसे स्थिर रिश्ता रहा है - एक ऐसा रिश्ता जिसने भारत के हितों की अच्छी तरह से सेवा की है.'

एक्सपर्ट ने कहा कि 'तेल की रियायती कीमतों ने भारत को घरेलू स्तर पर मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में सक्षम बनाया है. यह उस देश में महत्वपूर्ण साबित हुआ जो चुनाव मोड में था. भारतीय एफएम ने यह भी कहा कि भारत अमेरिका से भी तेल खरीदने को तैयार होगा अगर वह रूसी तेल से सस्ती दरों की गारंटी दे सके.'

रिफाइंड का भी आयात : उन्होंने बताया कि चीन को नियंत्रित करने की योजना में भारत अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण है. ये हकीकत ही भारत के लिए बहुत जगह बनाती है. अर्चना उपाध्याय ने कहा कि रूसी रिफाइंड तेल ने भी भारतीय मार्ग से यूरोपीय बाजारों में प्रवेश किया है. दूसरे शब्दों में प्रतिबंधों को लागू करना कठिन है. खरीदार हमेशा जो चाहते हैं उसे पाने का रास्ता ढूंढ लेते हैं.

हाल ही में अमेरिकी अधिकारियों ने कहा है कि जी7, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया नहीं चाहते कि मॉस्को के लाभ मार्जिन को कम करने के लिए रूसी तेल 60 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बेचा जाए. यह गठबंधन पश्चिमी बीमा के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगाता है जब टैंकर 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक कीमत वाला रूसी तेल ले जाते हैं.

गौरतलब है कि राजनीतिक मामलों के लिए सेवानिवृत्त अमेरिकी अवर विदेश मंत्री विक्टोरिया नूलैंड ने भारत की यात्रा के बाद अमेरिकी सीनेट की विदेश संबंध समिति को बताया था कि भारत का रूस के साथ 60 साल का उलझाव है जिसे समाप्त करने की जरूरत है.

दूसरी ओर, भारत ने चार रूसी कंपनियों को टैंकरों को समुद्री बीमा कवर प्रदान करने की अनुमति दी है. ऐतिहासिक रूप से भारत और रूस ने बाहरी दबावों के बावजूद कुछ हद तक रणनीतिक सहयोग बनाए रखा है. भारत-रूस संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं, जिनमें रक्षा सहयोग, आर्थिक साझेदारी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान शामिल हैं. इन संबंधों ने भू-राजनीतिक बदलावों को सहन किया है और निरंतर विकसित हो रहे हैं.

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