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उत्तराखंड के वोटरों ने बड़े-बड़े राजनीतिक सूरमाओं को दे दी पटखनी, छोटे राज्य का है रोचक राजनीतिक इतिहास - lok sabha election 2024

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 2, 2024, 7:22 AM IST

Updated : Apr 4, 2024, 11:28 AM IST

Mood of voters of Uttarakhand
उत्तराखंड राजनीति

Mood of voters of Uttarakhand इन दिनों लोकसभा चुनाव 2024 का चुनाव प्रचार जोर पकड़ा हुआ है. उत्तराखंड की पांचों सीटों पर 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होना है. उत्तराखंड के वोटरों का राजनीतिक मिजाज इस बार भी कैंडिडेट्स के लिए रहस्य बना हुआ है. देवभूमि के वोटर रामविलास पासवान, मायावती, सतपाल महाराज, भुवन चंद्र खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी, एनडी तिवारी, टिहरी नरेश महाराजा मानवेंद्र शाह और हरीश रावत तक को चुनाव के समय दिन में तारे दिखा चुके हैं.

उत्तराखंड में वोटरों ने दिग्गजों को दे दी पटखनी

देहरादून: लोकसभा सीटों के मामले में उत्तराखंड हालांकि छोटे राज्यों में शुमार है, लेकिन यहां की राजनीति का दायरा राष्ट्रव्यापी है. मौसम की तरह ही यहां के राजनेताओं का मिजाज और जनता का मत भांपना मुश्किल माना जाता है. शायद यही कारण है कि राजनीति के सूरमाओं को भी उत्तराखंड की धरती में अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा है.

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टिहरी नरेश को भी जनता ने नहीं बख्शा

उत्तराखंड में एक या दो नहीं बल्कि ऐसे दर्जनों दिग्गज हैं, जिनका इतिहास में करारी शिकस्त से सामना हुआ है. ये दिग्गज नेता इस उम्मीद में देवभूमि उत्तराखंड से लोकसभा चुनाव लड़े थे कि लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर में उनकी एंट्री आसानी से हो जाएगी. लेकिन उत्तराखंड के मतदाताओं ने इन दिग्गज नेताओं के स्टेटस की परवाह नहीं करते हुए इन्हें जीत का प्रसाद नहीं दिया. जानिए सूरमाओं की शिकस्त का उत्तराखंड कनेक्शन.

Mood of voters of Uttarakhand
जोशी को हरीश रावत ने दी थी शिकस्त

उत्तराखंड में हार गए बड़े-बड़े दिग्गज: राष्ट्रीय राजनीति में खुद को स्थापित करने वाले राजनेताओं को उत्तराखंड की धरती ने कई बार जोरदार झटका दिया है. इतिहास गवाह है कि राज्य बनने से पहले भी यहां की सीटों पर भाग्य आजमाने वाले बड़े सूरमाओं को मुंह की खानी पड़ी है. राज्य स्थापना के बाद भी मतदाताओं का ये रुख दिग्गजों पर भारी पड़ा है.

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मांडेबांस के हाथों पासवान हुए थे चित

लोकसभा सीटों पर मतदाता ना तो राजनेताओं के कद से प्रभावित हुए हैं और ना ही मतदान करते वक्त उन्होंने उनके पद की चिंता की है. मतदाताओं ने पसंद आने पर एक ही राजनेता को कई बार मौका दिया है, तो नापसंद होने पर बड़े-बड़े धुरंधरों को भी निर्दलीय प्रत्याशियों से हार दिलवा दी. ऐसे नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त है जो राजनीति के पंडित तो माने जाते हैं, लेकिन उत्तराखंड की जनता का मिजाज वो भी नहीं भांप पाए. इन राजनीतिक सूरमाओं को उत्तराखंड की सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था.

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मायावती भी उत्तराखंड में हारी थीं

उत्तराखंड में हार-जीत का इतिहास

  1. हरिद्वार लोकसभा सीट पर 1989 में रामविलास पासवान को मिली थी करारी हार
  2. साल 1990 और 1991 में मायावती भी हरिद्वार सीट पर ही बुरी तरह हारी थीं
  3. साल 1989 में कांग्रेस के तत्कालीन दिग्गज नेता सतपाल महाराज को जनता दल के चंद्र मोहन नेगी ने दी थी शिकस्त
  4. 1984 में मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता की हरीश रावत के सामने हुई थी जमानत जब्त
  5. साल 1989 में ही अल्मोड़ा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी काशी सिंह ऐरी ने भगत सिंह कोश्यारी को बुरी तरह हराया था
  6. 1991 की राम लहर में प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे नारायण दत्त तिवारी को भाजपा के बलराज पासी ने शिकस्त दी थी
  7. साल 1996 और 2009 में पौड़ी लोकसभा सीट पर चार बार सांसद रहे भुवन चंद खंडूड़ी को भी हार का करना पड़ा सामना
  8. टिहरी लोकसभा सीट पर आठ बार के सांसद महाराजा मानवेंद्र शाह को निर्दलीय प्रत्याशी परिपूर्णानंद पैन्यूली ने 1971 में किया पराजित
  9. भाजपा के बची सिंह रावत ने अल्मोड़ा सीट पर ही लगातार तीन बार हरीश रावत को दी थी पटकनी
  10. साल 2019 में भी नैनीताल सीट पर हरीश रावत को अजय भट्ट ने हराया

छोटे राज्य का बड़ा राजनीतिक दायरा: कहा जाता है कि ना तो उत्तराखंड की जनता का मिजाज आसानी से समझा जा सकता है और ना ही यहां के राजनेताओं के मूड को भांपा जा सकता है. शायद यही कारण है कि उत्तराखंड की राजनीति अक्सर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में रहती है. उत्तराखंड में होने वाले दल बदल राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियां बटोरते हैं और अक्सर दिग्गज नेताओं का पार्टी तोड़कर दूसरे दलों में रुख करना भी चर्चाओं में रहता है.

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ऐरी से हारे थे कोश्यारी

वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली कहते हैं कि उत्तराखंड भले ही सीटों के लिहाज से छोटा प्रदेश हो, लेकिन यहां की राजनीति का दायरा बेहद बड़ा है. वह कहते हैं कि यहां की जनता राष्ट्रीय मुद्दे और विभिन्न परिस्थितियों को देखते हुए मतदान करती है और इस दौरान बड़े-बड़े चेहरे भी चुनाव में धराशायी हो जाते हैं.

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पासी ने तोड़ा था एनडी का सपना

क्या कहती है कांग्रेस: वैसे तो देश की राजनीति में तमाम बड़े चेहरे चुनावी महासमर में परस्त होते रहे हैं, लेकिन उत्तराखंड के मतदाताओं का चौंकाने वाले परिणाम देने का पुराना और लंबा इतिहास रहा है. यहां मतदाता कभी जिस नेता को सर आंखों पर बैठते हैं, अगले ही पल उसको हार का स्वाद चखाने में देरी नहीं करते. इसको लेकर कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट कहते हैं कि उत्तराखंड में पढ़े लिखे लोग रहते हैं. इसीलिए वह मतदान के दौरान देशकाल परिस्थितियों का आकलन करने के बाद ही निर्णय लेते हैं. राष्ट्रीय मुद्दों के साथ ही गंभीर मुद्दों को भी प्रदेश की जनता तवज्जो देती है.

Mood of voters of Uttarakhand
बची सिंह के हाथों तीन बार हारे हरदा

इसी बात को आगे बढ़ते हुए शीशपाल बिष्ट कहते हैं कि इस बार जनता महंगाई, बेरोजगारी, अग्निवीर, पलायन और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों पर वोट डालने वाली है और राजनीतिक स्थितियों को देखने के बाद उत्तराखंड में 2009 की तरह ही जनता चुनावी परिणाम देने जा रही है.

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अजय भट्ट ने हरीश रावत को दी थी मात

भाजपा क्या सोचती है: हालांकि इन सब बातों से इतर भारतीय जनता पार्टी की अपनी अलग थ्योरी है. भारतीय जनता पार्टी चुनाव में सिर्फ एक ही बिंदु पर जनता का फोकस होने की बात कहती है. पार्टी के वरिष्ठ नेता सुरेश जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर विश्वास जताया है और उन्हीं के नाम पर जनता वोट करने जा रही है.

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सतपाल महाराज को मिली थी हार

सुरेश जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड में हार और जीत का तो अब कोई सवाल ही नहीं है. अब तो प्रदेश में बात केवल भाजपा प्रत्याशियों की जीत के अंतर को लेकर हो रही है.

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महाराज से हारे थे मेजर जनरल
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Last Updated :Apr 4, 2024, 11:28 AM IST
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