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30 साल बाद अतीक के 'फरमान' के बिना होंगे चुनाव, कभी एक इशारे से तय होती थी जीत-हार

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 16, 2024, 8:20 AM IST

Updated : Mar 16, 2024, 1:09 PM IST

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ऐसा पहली बार होगा जब संगमनगरी की दो लोकसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का कोई दखल नहीं होगा. पिछले करीब 30 साल से अतीक सियासत में अपने दखल से कई सीटों पर रुख बदलता या प्रभावित करता आया था.

प्रयागराज : ऐसा पहली बार होगा जब संगमनगरी की दो लोकसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ का कोई दखल नहीं होगा. पिछले करीब 30 साल से अतीक सियासत में अपने दखल से कई सीटों पर रुख बदलता या प्रभावित करता आया था. खासकर जिले की मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर. शहर पश्चिमी उसका गढ़ रहा, हालांकि भाजपा ने उसे भी भेद दिया. फिर भी लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, अतीक के फरमान का असर जरूर देखने को मिला. जिस शहर में उसकी तूती बोलती थी, वहीं 15 अप्रैल 2023 को तीन शूटरों ने उसे ढेर कर दिया.

5 बार विधायक और एक बार सांसद रहा

माफिया अतीक अहमद प्रयागराज की शहर पश्चिमी विधान सभा से पांच बार विधायक और फूलपुर लोकसभा से 2004 में सांसद चुना गया था. अपराध जगत के साथ ही राजनीति में भी अतीक अहमद की अंदर तक पकड़ थी. यही वजह थी कि वह माफ़ियागीरी के साथ ही राजनीतिक रूप से भी चुनाव में दखल देकर उसे प्रभावित करता था. हर चुनाव में अतीक के रुख का उससे प्रभावित लोगों को इंतजार रहता था. वोटों पर पड़ने वाले असर को देखते हुए ही सपा सहित अन्य पार्टियों ने उसे हमेशा तवज्जो भी दी. अतीक 1989 में शहर पश्चिमी से निर्दलीय के रूप में पहली बार विधायक बना. 1996 तक वह निर्दलीय ही लड़ा और जीता. इसके बाद सपा का दामन थामा और 1996 में चौथी बार विधायक बना. पांचवी बार अपना दल से 2002 में शहर पश्चिमी से ही चुनाव जीता. इसके बाद सपा के टिकट पर 2004 में फूलपुर लोकसभा सीट से जीत हासिल की.

अशरफ भी शहर पश्चिमी सीट से जीता

अतीक दूसरी सीटों पर भी खासा दखल रखता था. पड़ोसी जिले प्रतापगढ़ की सीट पर भी अतीक का प्रभाव था. इस लोकसभा चुनाव में अतीक और उसके भाई अशरफ का कोई दखल नहीं रहेगा. जबकि इससे पहले वह सभी चुनाव में घूम-घूमकर किसी न किसी प्रत्याशी के नाम का प्रचार करता था. इसी के साथ अतीक मुस्लिम मतदाताओं के बीच संदेश भी भेजता रहा. तब अतीक की तरफ से जारी फरमान का असर देखने को मिलता था.कई बार अतीक अहमद के समर्थन से उम्मीदवार चुनाव जीतने में कामयाब हुए हैं. उसका छोटा भाई ख़ालिद अज़ीम उर्फ अशरफ 2005 में बसपा विधायक राजू पाल की हत्या के बाद हुए उपचुनाव में शहर पश्चिमी विधानसभा सीट से ही विधायक चुना गया था. जो कि 2007 के चुनाव में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल से चुनाव हार गया था.

राजा के गढ़ में भी अतीक का प्रभाव

प्रयागराज की विधानसभा सीटों की बात करें तो सबसे ज्यादा फूलपुर और फाफामऊ में अतीक का प्रभाव है. यहां मुस्लिम आबादी 54 प्रतिशत के करीब है. यही कारण है कि अतीक जब सपा से बाहर होकर चुनाव लड़ा, पार्टी को नुकसान हुआ. इसके अलावा सोरांव, शहर उत्तरी पर भी अतीक का अच्छा खासा प्रभाव रहा है. अतीक का असर राजा भैया के गढ़ प्रतापगढ़ में भी रहा है.

प्रयागराज के वोटरों पर एक नजर

संगमनगरी प्रयागराज में दो लोकसभा सीटें आती हैं. जिसमें इलाहाबाद और फूलपुर सीट शामिल है. जिले में कुल मतदाताओं की संख्या 44 लाख 28 हजार 406 है. जिसमें से 24 लाख 26 हजार 374 पुरुष और 20 लाख 1 हजार 520 महिला हैं. जबकि 512 थर्ड जेंडर मतदाता हैं. जिसमें इलाहाबाद लोकसभा सीट पर कुल 16 लाख 93 हजार 447 मतदाता हैं. जबकि इलाहाबाद लोकसभा सीट पर मतदाताओं की संख्या 19 लाख 75 हजार 219 है. प्रयागराज की हंडिया और प्रतापपुर विधानसभा भदोही लोकसभा सीट के अंतर्गत आती है, जहां के कुल मतदाताओं की संख्या 7 लाख 59 हजार 740 है. इस तरह से प्रयागराज की दोनों लोकसभा सीट के कुल 36 लाख 68 हजार 666 मतदाता दोनों लोकसभा के सांसद का चयन करेंगे.

आतंक के अंत से खत्म हुआ सिलसिला

अतीक अहमद की हत्या के बाद प्रयागराज में उसके गैंग के खिलाफ भी पुलिस लगातार कार्यवाई कर रही है. उससे माफिया अतीक अहमद और उसके गैंग का आतंक हो चुका है. अतीक अहमद के आतंक के अंत के साथ ही उसके प्रभाव वाले इलाकों में मतदाताओं के रुख पर सभी राजनीतिक दलों की नजर है. चुनाव की घड़ी नजदीक आने के साथ ही अतीक के होने, न होने और उसके असर की चर्चा भी तेज होने लगी है.

चांद बाबा की हत्या के बाद जुर्म की दुनिया का बना बड़ा नाम

चकिया में साल 1962 में जन्मे अतीक के पिता तांगा चलाते थे. अतीक के बचपन के दिन गरीबी में ही गुजरे लेकिन जैसे जैसे वह बड़ा हुआ अपराध की ओर खिंचने लगा. फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब उसने जुर्म की दुनिया में अच्छा खासा रुतबा बना लिया. उस पर हत्या समेत कई मामलों में मुकदमे दर्ज हो चुके थे. तब इलाहाबाद में चांद बाबा का बड़ा नाम था. अतीक से चांद बाबा की टशन चलती रही. 1989 में निर्दलीय के रूप में वह शहर पश्चिमी से चुनाव जीता. यहीं से उसके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई लेकिन अपने प्रभाव का इस्तेमाल उसने हमेशा काले धंधे को आगे बढ़ाने में ही किया. दूसरी बार भी वह जीता और इसी के बाद चांद बाबा की हत्या हो गई. अब अतीक प्रयागराज समेत आसपास के इलाकों में एक बड़ा नाम हो गया था.

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Last Updated :Mar 16, 2024, 1:09 PM IST
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