राजस्थान

rajasthan

Keoladeo National Park : विश्व विरासत पर मंडरा रहा जलसंकट, शहरवासियों के हिस्से के पेयजल से तर करना पड़ रहा घना

By

Published : Jun 28, 2022, 11:33 PM IST

Water Crisis in Keoladeo National Park
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में जल संकट

भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान पर इस साल भी जल संकट मंडरा रहा है. कई वर्षों (Water Crisis in Keoladeo National Park) से पांचना बांध का पानी घना को मिलना बंद हो गया है, प्राकृतिक पानी की भी उपलब्धता नहीं हो रही. इसके कारण यहां ब्रीडिंग के लिए आने वाले पक्षियों की संख्या में भी साल-दर-साल कमी आ रही है.

भरतपुर.विश्व प्रसिद्ध केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान लंबे समय से जलसंकट की समस्या झेल रहा है. बीते वर्ष को छोड़ दें तो कई वर्षों से करौली जिले के पांचना बांध का पानी घना को मिलना बंद हो गया. वहीं, अन्य नदियों से मिलने वाला प्राकृतिक पानी भी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. यही वजह है कि घना में पक्षियों को आकर्षित करने और उन्हें यहां रोके रखने के लिए शहरवासियों के हिस्से के चंबल से मिलने वाले पेयजल का उपयोग करना पड़ रहा है.

शहरवासियों को भी इस कारण दो-तीन दिन की पानी कटौती का सामना करना पड़ रहा है. केवलादेव घना (Water Crisis in Keoladeo National Park) को सीजन में करीब 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत रहती है. इसके लिए घना प्रशासन चंबल और गोवर्धन ड्रेन से पानी की जरूरत पूरी करता है. कुछ जरूरत बरसात के पानी से पूरी होती है.

विश्व विरासत केवलादेव घना पर जलसंकट

घना के लिए संजीवनी है पांचना का पानी :पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि कई साल पहले तक घना को पांचना बांध का पानी बरसात के मौसम में नियमित और अच्छी मात्रा में मिलता था. पांचना के पानी के साथ ही पक्षियों के लिए जरूरी फूड (मछली, वनस्पति आदि) भरपूर मात्रा में घना पहुंचता था, जिसे पक्षी खूब पसंद करते. इससे घना में अच्छा हैबिटेट तैयार होता था. कुल मिलाकर घना के लिए पांचना बांध का पानी संजीवनी के समान है.

पिछले वर्ष अच्छी बरसात हुई तो घना को पांचना से करीब 250 एमसीएफटी पानी मिला था. इसी का परिणाम है कि गत वर्ष घना में सैकड़ों की संख्या में पेलिकन समेत अन्य पक्षी में पहुंचे. कई वर्षों बाद फ्लेमिंगो की संख्या में भी इजाफा हुआ. घना को पानी की पूर्ति करने के लिए इस बार गर्मियों में भी शहर के पेयजल सप्लाई को तीन दिन के लिए रोका गया है, ताकि घना में ब्रीडिंग के लिए आए ओपन बिल स्टोर्क, पेंटेड स्टोर्क, ई-ग्रेट आदि पक्षियों को पानी मिल सके और वो ठहराव कर सकें.

पढ़ें : माचिया सफारी पार्क से खुश खबर! 6 साल बाद ऑस्ट्रेलियन पक्षी एमू का बढ़ा कुनबा

इन नदियों से मिलता था पानी :पर्यावरणविद भोलू अबरार ने बताया कि पहले घना को बाणगंगा नदी, पांचना बांध और गम्भीरी नदी और रूपारेल से पानी मिलता था. लेकिन धीरे-धीरे घना को नदियों का प्राकृतिक पानी मिलना बंद हो गया. ऐसे में घना को जिंदा रखने के लिए चंबल और गोवर्धन ड्रेन से पानी का विकल्प निकालना पड़ा. लेकिन गोवर्धन ड्रेन के पानी में जगह जगह कचरा भी मिलता है. बरसात के मौसम में घना को साफ पानी उपलब्ध कराने का प्रयास रहता है, फिर भी प्रदूषण के कारण पानी में नेचुरल फ़ूड और मछलियां भी नहीं आती. इसलिए ये पानी भी जरूरतें पूरी नहीं कर पा रहा.

राजनीति और अतिक्रमण बने रुकावट :

बाणगंगा नदी :वर्षों पहले तक मध्य अरावली से बरसात के मौसम में बाणगंगा नदी का पानी घना तक पहुंचता था. लेकिन जयपुर में जमवारामगढ़ बनने और कम बरसात के चलते बाणगंगा का पानी घना तक पहुंचना बंद हो गया.

गम्भीरी नदी/पांचना बांध : करौली की तरफ से गम्भीरी नदी का पानी और पांचना बांध के ओवरफ्लो का पानी भी घना तक पहुंचता था. लेकिन स्थानीय राजनीति के चलते पांचना बांध की दीवारें ऊंची कर दी गईं. ऐसे में यहां से भी बरसात के मौसम में घना को पानी मिलना बंद हो गया. हालांकि पिछले वर्ष अच्छी बरसात के कारण पांचना बांध के गेट खोलने पड़े थे. इससे कई साल बाद घना को करीब 250 एमसीएफटी पानी मिला. जानकारी मिली है कि अब पांचना के बहाव क्षेत्र में कुछ एनीकट तैयार किए जा रहे हैं, जिनमें अधिक बरसात होने पर पानी को स्टोर किया जा सकेगा. यानी भविष्य में घना को पांचना का पानी मिलने की संभावनाएं न के बराबर हैं.

पढ़ें: Keoladeo National Park: साइबेरियन सारस के बाद राजहंस ने भी मोड़ा मुंह, प्रदूषित पानी बड़ी वजह

रूपारेल नदी : घना में पहले अलवर, हरियाणा और मेवात की तरफ से आने वाली रूपारेल नदी से पानी भी पहुंचता था. लेकिन अलवर में अरावली और अन्य बहाव क्षेत्रों में अतिक्रमण आदि के चलते रूपारेल नदी में पानी कम हो गया. अब रूपारेल का पानी भी घना तक नहीं पहुंच पाता है.

घट रही पक्षियों की संख्या :भोलू अबरार ने बताया कि जब घना को बरसात के मौसम में नदियों से भरपूर पानी मिलता था, उस समय घना में लाखों की संख्या में सैकड़ों प्रजाति के पक्षी आते थे. लेकिन अब नदियों का पानी नहीं मिलता. बड़े-बड़े पेड़ भी कम हो रहे हैं. इससे पक्षियों की संख्या में भी गिरावट आई है.

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान रियासतकाल में शिकारगाह का स्थान हुआ करता था. वर्ष 1956 तक यहां आखेट होता रहा. आखिर में सन 1981 में घना एक उच्च स्तरीय संरक्षण दर्जा प्राप्त राष्ट्रीय पार्क के रूप में स्थापित हुआ. सन 1985 में उद्यान को विश्व विरासत स्थल का दर्जा दिया गया. यहां सर्दियों के मौसम में करीब 350 से अधिक प्रजाति के देशी-विदेशी हजारों पक्षी प्रवास करते हैं, जिन्हें देखने के लिए लाखों पर्यटक यहां पहुंचते हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details