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World Tribal Day 2023: मुद्दा सत्ता का हो तो...हर आदिवासी जरूरी होता है ! क्या MP में सियासत की प्रयोगशाला बन गया है आदिवासी

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Published : Aug 8, 2023, 9:47 PM IST

मध्य प्रदेश की सियासत में आदिवासी शायद इस दौर में मोहरा बन कर रह गया है. कहने को तो हर राजनीतिक दल उनका खैरख्वाह है, लेकिन फिर इसी प्रदेश में सीधी पेशाब कांड भी होता है और रीवा में आदिवासी नाबालिग लड़कियों की आबरू भी लूटी जाती है. डैमेज कंट्रोल के नाम पर पांव भी धो दिए जाते हैं, लेकिन क्या वाकई आदिवासी देश के दिल में महफूज हैं.

World Tribal Day 2023
विश्व आदिवासी दिवस 2023

भोपाल।देश में सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी वाला राज्य मध्यप्रदेश है. 50 फीसदी से ज्यादा आबादी वाले आदिवासी गांवों के मामले में एमपी पहले नंबर पर है. आदिवासियों के हक में उनके लिए पेसा एक्ट लागू करने वाला अग्रणी राज्य है. मध्यप्रदेश...जिस राज्य में आदिवासी नायक इतिहास के पन्नों से ढूंढ कर तलाशे जा रहे हैं. स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक के नाम बदले जा रहे हैं. उसी राज्य में सीधी पेशाब कांड हुआ था. उसी राज्य में जंगल भी आदिवासी के लिए महफूज नहीं. रीवा में आदिवासी नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म की घटना ताजी है. इसी राज्य में 47 आदिवासी सीटों और 80 से ऊपर आदिवासी प्रभाव वाली सीटों पर कब्जे के लिए आदिवासी हमारे हैं की होड़ लगी है. सवाल ये है आदिवासी आखिर कब तक सियासत की प्रयोगशाला बना रहेगा.

आदिवासी का संस्कृति

आदिवासी सम्मान और सीधी पेशाब कांड: जिस राज्य में 15 नवम्बर आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता हो. जिस राज्य में आदिवासी के सम्मान में मैदान में खड़ी सरकार ताबड़तोड़ स्टेशन, बस अड्डों के नाम पर आदिवासी रानी और नायकों के नाम पर कर रही हो. आदिवासी का स्वाभिमान और सम्मान बचाने का दम दिखाया जा रहा हो. तब सामने आए सीधी पेशाब कांड के साथ हकीकत बयां हो जाती है. जंगल में रहने वालों से सलूक में जमीन पर कितना अंतर आया है. आदिवासियों के खिलाफ अपराध के मामले ढाई हजार से ज्यादा हैं और ये आंकड़ा एमपी को आदिवासी अत्याचार में टॉप टेन राज्यों में पहुंचाता है.

आदिवासी का अलग ही पहचान

सत्ता आदिवासी बिना अधूरी:एमपी में आदिवासियों की जनसंख्या कुल एमपी की आबादी के 21 फीसदी बैठती है. एमपी में 47 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं और इनके अलावा 84 सीटें वो हैं जहां आदिवासी चुनाव के दौरान जीत हार तय करता है. असल में हर चुनाव में इन सीटों में राजनीतिक दलों को मिली जीत हार से तय हो जाती है कि सरकार किसके हाथ आएगी. जिसके साथ आदिवासी का समर्थन सत्ता उसके हाथ ही आती है. वैसे लंबे समय तक आदिवासी एमपी ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक माना जाता रहा, लेकिन मध्यप्रदेश में आदिवासी ने अपना जनादेश समय समय पर बदला भी है.

एमपी चुनाव में आदिवासी का कितना महत्व

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की बड़ी वजह थी आदिवासी आरक्षण वाली 47 सीटों में से 30 सीटों पर मिली जीत. बीजेपी केवल 16 सीटों ही ले पाई थी जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में नतीजे उलट थे. बीजेपी ने तब 31 सीटें इन इलाकों की जीती थी और कांग्रेस को 15 सीटों में संतोष करना पड़ा था. जाहिर है जिस बार आदिवासी बैल्ट की सीटों पर जिसका पलड़ा भारी रहा सरकार उसी की बनी है.

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आदिवासी हमारे हैं के सियासी दांव:एमपी में चुनाव के काफी पहले बीजेपी आदिवासियों पर लक्ष्य साधते चुनावी तैयारी कर रही है. 15 नवम्बर को जनजातीय गौरव दिवस मनाए जाने के एलान के साथ 1996 से पारित पेसा कानून अब लागू किए जान तक. बीजेपी इस चुनावी ट्रम्प कार्ड को भरमाने का कोई मौका नहीं छोड़ रही. पेसा कानून के जरिए शिवराज सरकार दावा कर रही है कि आदिवासी इलाकों में अब राजस्व के मामले आसानी से सुलझ रहे हैं. आदिवासी का हक वन उपज पर बढ़ा है. बाकी भोपाल में कमलापति स्टेशन से लेकर टंट्या भील के नाम पर बस स्टैंड तक आदिवासी नायकों से स्थलों के नामकरण की झड़ी लगी हुई है.

अब आदिवासी भी आवाज उठाना जानता है :जयस नेता डॉ. हीरालाल अलावा कहते हैं कि "आदिवासी का हमेशा से सत्ता के लिए इस्तेमाल किया गया लेकिन उसकी जो आवश्यकता है उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया. भारत के संविधान में आदिवासी को जो अधिकार दिए गए हैं, उस पर सरकारें काम करें. जिस तरह आदिवासियों की जमीन पर कब्जा किया गया है, उनके खिलाफ कार्रवाई हो. आदिवासी लगातार रोजगार के लिए गुजरात और राजस्थान पलायन कर रहे हैं. ऐसी नीतियां बनें कि ये पलायन रुक सके. शिक्षा स्वास्थ्य का स्तर सुधारने के साथ प्रयास इस बात का हो कि आदिवासियों पर अत्याचार रुके. जहां तक बात आदिवासी जागरूकता की है तो आदिवासी युवा अब जागरूक हो गया है. अब वो अपने अधिकारों को लेकर सजग है वो राजनीतिक दलों के झूठे वादों और नारो में नहीं उलझने वाला."

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