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क्यों और कैसे सफल हुआ ऑपरेशन ऑक्टोपस? जानिए अभियान की इनसाइड स्टोरी

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Nov 5, 2023, 2:41 PM IST

झारखंड के बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त करने के लिए ऑपरेशन ऑक्टोपस की कहानी वीरता और साहस से भरी हुई है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ऑपरेशन ऑक्टोपस को पूरे देश में एक रोल मॉडल की तरह देख रही है. आखिर क्या है इस ऑपरेशन की कहानी, जानिए ईटीवी भारत की इस खास रिपोर्ट से. Know story of Operation Octopus In Jharkhand.

Know story of Operation Octopus to wiped out Naxalites from Buddha Pahad Jharkhand
झारखंड के बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त करने के लिए ऑपरेशन ऑक्टोपस की कहानी

जानिए, बूढ़ा पहाड़ पर चले ऑपरेशन ऑक्टोपस की इनसाइड स्टोरी

पलामूः एक ऑपरेशन जिसने झारखंड की दिशा और दशा बदल दी. दशकों से बूढ़ा पहाड़ पर माओवादियों का कब्जा था लेकिन एक सफल अभियान ने नक्सलियों का सफाया कर दिया. बेहतर रणनीति के साथ काम करते हुए सुरक्षाबलों ने बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त कर दिया. आप भी जानिए इस ऑपरेशन की इनसाइड स्टोरी.

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पूरे देश में माओवादियों के खिलाफ अभियान में ऑक्टोपस सबसे सफल मनाया जाता है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ऑपरेशन ऑक्टोपस को एक रोल मॉडल बता रहा है. इस अभियान में शामिल होने वाले टॉप आईपीएस और सीआरपीएफ अधिकारियों को रिवॉर्ड भी मिला है. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तरफ से गृह मंत्री विशिष्ट अभियान पदक टॉप आईपीएस और सीआरपीएफ के अधिकारियों को दिया गया है.

झारखंड छत्तीसगढ़ सीमा पर मौजूद बूढ़ा पहाड़ के इलाके में अगस्त 2022 में ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू किया गया था. यह अभियान फरवरी 2023 तक लगातार जारी रहा. इस अभियान का ही नतीजा था कि माओवादियों के अपने सबसे सुरक्षित ठिकाना बूढ़ा पहाड़ को छोड़कर भागना पड़ा. बूढ़ा पहाड़ पर कब्जा करने वाली टीम पलामू में शामिल एक एक पुलिस अफसर और सीआरपीएफ के अधिकारी को अलग अलग जिम्मेदारी दी गई थी.

बूढ़ा पहाड़ में पहली बार सुरक्षाबलों को नहीं हुआ था नुकसानः बूढ़ा पहाड़ में माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑक्टोपस के दौरान सुरक्षाबलों को कोई नुकसान नहीं हुआ था. इससे पहले बूढ़ा पहाड़ के इलाके में माओवादियों के खिलाफ अभियान जितने भी ऑपरेशन चलाए गए, उनमें सुरक्षाबलों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. बूढ़ा पहाड़ का इलाका माओवादियों का यूनिफाइड कमांड रहा था. तीन दशक तक माओवादी इसे ट्रेनिंग सेंटर के रुप में बनाए रखा. आंकड़ों पर गौर करें तो 2012-13 के बाद से बूढ़ा पहाड़ में सुरक्षाबलों के खिलाफ 1200 सबसे अधिक छोटे-बड़े अभियान चलाए गए. इन ऑपरेशन्स में दो दर्जन से अधिक जवान शहीद हुए जबकि 40 से अधिक बार विस्फोट की घटना हुई. दर्जनों बार माओवादी और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ हुई.

अभियान को लेकर खुफिया तंत्र को किया गया था मजबूतः बूढ़ा पहाड़ में ऑपरेशन ऑक्टोपस शुरू करने से पहले खुफिया तंत्र को मजबूत किया गया था. सुरक्षाबलों ने बूढ़ा पहाड़ के इलाके में जाने वाले सभी संभावित रास्तों को चिन्हित किया और एक-एक माओवादी की गतिविधि का आकलन किया गया. इस अभियान को लेकर एडीजे अभियान से लेकर एसपी तक को अलग अलग जिम्मेदारी दी गई थी.

इस अभियान को लेकर एडीजी अभियान संजय आनंद लाटकर, आईजी अभियान अमोल वेणुकांत होमकर, पलामू आईजी राजकुमार लकड़ा, लातेहार एसपी अंजनी अंजन और तत्कालीन गढ़वा एसपी अंजनी कुमार झा को अलग अलग जिम्मेदारी दी गई थी. बूढ़ा पहाड़ में लातेहार की तरफ से एसपी अंजनी अंजन और गढ़वा की तरफ से अंजनी कुमार झा अभियान को लीड कर रहे थे. टॉप अधिकारी लगातार इस ऑपरेशन की मॉनिटरिंग कर रहे थे. इसके अलावा कोबरा और सीआरपीएफ के अधिकारियों की अलग-अलग टीम बनाई गयी थी और वह पूरे अभियान में अहम भूमिका में थे. बूढ़ा पहाड़ पर कोबरा और सीआरपीएफ के जवानों ने ही सबसे पहले फतह पाई थी.

पुलिस के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि- डीजीपीः झारखंड के डीजीपी अजय कुमार सिंह का कहना है कि बूढ़ा पहाड़ के इलाका में पुलिस और सुरक्षाबलों की सफलता ऐतिहासिक है. पुरस्कार मिलने से निश्चित रूप से अधिकारी और जवानों का हौसला बढ़ता है. अभियान ऑक्टोपस में शामिल जवान और अधिकारी तारीफ के काबिल हैं. इस अभियान का ही प्रतिफल है कि उस इलाके में आज लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं. पलामू के आईजी राजकुमार लकड़ा ने बताया कि बूढ़ा पहाड़ अभियान पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण रही है. पुलिस की टीम पलामू के लिए यह बड़ी उपलब्धि है. इस अभियान को लेकर कई बातों का ध्यान रखा गया था, जिसका नतीजा यह रहा कि बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त किया गया.

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