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असिस्टेंट कमिश्नर टैक्सेज एंड एक्साइज मामला, कोर्ट: कार्यालय में अनुशासन बनाए रखने की जरूरत

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Published : Aug 17, 2020, 7:33 AM IST

Updated : Aug 17, 2020, 9:19 AM IST

असिस्टेंट कमिश्नर टैक्सेज एंड एक्साइज के मामले में 6 जनवरी 2019 से 7 मार्च 2019 तक की अवधि का अर्जित अवकाश स्वीकार करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए जाने की गुहार लगा रही थी. न्यायालय ने कहा कि हर एक कर्मचारी को अपने नियोक्ता के प्रति वफादार व अनुशासित होना चाहिए जिसमें प्रार्थी विफल रही.

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हिमाचल हाईकोर्ट

शिमला:सरकारी कर्मचारी कानून के प्रावधानों व विभागीय नियमों और निर्देशों से नियंत्रित होते हैं. अनुशासन हर कर्मचारी के लिए अनिवार्य है और यदि कर्मचारी खुद को अनुशासन में रखने के लिए तैयार नहीं है तो जाहिर है विभाग तो वह न केवल अपने नियोक्ता के क्रोध को आमंत्रित करता है बल्कि कम से कम विभागीय रूप से कार्रवाई के लिए भी उत्तरदायी होता है.

न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ ने यह टिप्पणी असिस्टेंट कमिश्नर टैक्सेज एंड एक्साइज के मामले में की जो 6 जनवरी 2019 से 7 मार्च 2019 तक की अवधि का अर्जित अवकाश स्वीकार करने के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए जाने की गुहार लगा रही थी. न्यायालय ने आगे कहा कि हर एक कर्मचारी को अपने नियोक्ता के प्रति वफादार व अनुशासित होना चाहिए जिसमें प्रार्थी विफल रही.

याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार 2 जनवरी 2019 को प्रार्थी का तबादला बतौर असिस्टेंट कमिश्नर स्टेट टैक्सेज एंड एक्साइज नूरपुर के लिए किया गया था. प्रार्थी ने नूरपुर ज्वाइन करने के बजाए 6 जनवरी 2019 से 7 मार्च 2019 तक अर्जित अवकाश बढ़ाने की राज्य सरकार से प्रार्थना की थी. वह 26 दिसंबर 2018 से 5 जनवरी 2019 तक पहले ही अर्जित अवकाश पर चल रही थी.

राज्य सरकार की ओर से रखे पक्ष के अनुसार प्रार्थी को 26 दिसंबर 2018 से 7 मार्च 2019 तक अर्जित अवकाश स्वीकृत करवाने बाबत सक्षम अधिकारी को रिवाइज्ड रिक्वेस्ट लेटर सबमिट करना चाहिए था जिसे करने में प्रार्थी विफल रही. उसके खिलाफ यह भी शिकायत थी कि जब उसे सिरमौर व कांगड़ा में तैनाती दी गई थी तब भी वह ड्यूटी से गैर हाजिर रही और उसने अपने उच्च अधिकारियों के आदेशों को नहीं माना. जानबूझकर ड्यूटी से गैरहाजिर रहने के लिए उसे विभाग की ओर से कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था. फिर भी वह खुद को बदलने में विफल रही.

न्यायालय ने कहा कि एक कर्मचारी से न केवल अपेक्षा की जाती है बल्कि उसे कानून द्वारा बाध्य किया जाता है कि वह कार्यालय में शिष्टाचार व अनुशासन बनाए रखे. कोर्ट ने पाया कि इस मामले में प्रार्थी के पास कोई वैद्य कारण नहीं था कि वह किस कारणवश ड्यूटी के लिए रिपोर्ट नहीं कर सकी. न्यायालय ने फैसले में 17वीं शताब्दी में कहे चर्चमैन थॉमस फुलर के अमर शब्दों का उल्लेख करते हुए लिखा 'तुम चाहे कितने ऊंचे बनो, कानून तुमसे ऊपर है'.

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Last Updated :Aug 17, 2020, 9:19 AM IST

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