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KULLU DUSSEHRA: बुरी आत्माओं से देवनगरी कुल्लू को बचाने के लिए निकली भगवान नरसिंह की जलेब

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Published : Oct 16, 2021, 7:03 PM IST

अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के दूसरे दिन देवी-देवताओं की पुरातन संस्कृति को जिंदा रखने के लिए नरसिंह भगवान की जलेब निकाली है. इस दौरान दर्जनों देवी देवता जलेब के साथ शहर की परिक्रमा के लिए निकले. इस दौरान कुल्लू के राजा और भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार महेश्वर सिंह पालकी पर सवार होकर जलेब के साथ-साथ चल रहे थे. यह जलेब 5 दिनों तक चलेगी.

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फोटो.

कुल्लू: देव महाकुंभ अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व में दूसरे दिन राजा की जलेब निकली और भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार महेश्वर सिंह पालकी पर सवार हुए. देवी-देवताओं की पुरातन संस्कृति को जिंदा रखने के लिए नरसिंह भगवान की जलेब का आगाज हुआ. विश्व के सबसे बड़े देव महा समागम अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में आज भी सैकड़ों वर्षों पुरानी परंपरा जिंदा है और लोग इसका निर्वाह कर रहे हैं.

भगवान नरसिंह को कुल्लू घाटी का रक्षक माना जाता है. आकर्षण का केंद्र रहने वाली नरसिंह भगवान की जलेब में भव्य नजारा देखने को मिला. इस दौरान कुल्लू शहर वाद्ययंत्रों की ध्वनि से गूंज उठा. इस जलेब को राजा की जलेब भी कहा जाता है, क्योंकि इस जलेब में कुल्लू का राजा परंपरा के अनुसार पालकी में सज-धज कर यात्रा करता है. कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह इस विशेष प्रकार की पालकी में बैठकर परिक्रमा पर निकल पड़े हैं और यह जलेब पांच दिनों तक चलेगी.

वीडियो.

जलेब में दशहरा पर्व में भाग लेने आए सैकड़ों देवी-देवता बारी-बारी से भाग लेते हैं. इस जलेब में जहां आगे-आगे नरसिंह भगवान की घोड़ी सज धज कर चलती है. वहीं राजा की पालकी के साथ दोनों तरफ देवता के रथ चलते हैं. यह जलेब राजा की चनणी से शुरू होती है तथा पुरे ढालपुर की परिक्रमा करके चनणी के पास ही समाप्त होती है. आजकल कुल्लू के राजा महेश्वर सिंह इस पालकी में बैठकर परिक्रमा कर रहे हैं.

दरअसल, यह जलेब भगवान नरसिंह की मानी जाती है और राजा नरसिंह का प्रतिनिधि होने के नाते नरसिंह के रूप में इस पालकी में विराजमान होता है. यह जलेब पुराने समय मेंं कानून व्यवस्था बनाए रखने और बुरी आत्माओं की कुदृष्टि से बचने के लिए चलती थी. यह परंपरा आज भी जीवित है. स्मरण रहे कि कुल्लू की देव संस्कृति अपनी अलग परंपरा के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है.

राजा की जलेब की परंपरा सदियों से चली आ रही है. जब से दशहरा पर्व शुरू हुआ तभी से यह परंपरा चली है. दशहरा पर्व में पुरातन समय में कुल्लू के राजाओं की जो भूमिका थी वह आज भी उनके वंशज उसी तरह से पुरातन रीति रिवाजों व परंपरागत ढंग से निभा रहे हैं. राजा की चनणी से लेकर पूरे शहर में निकली इस जलेब में दर्जनों देवी-देवता ढोल-नगाड़ों की थाप पर परिक्रमा पर निकले और लोग नाचते-गाते रहे.

बहरहाल, कुल्लू के राजा नरसिंह भगवान के प्रतिनिधि के रूप में पालकी में बैठकर कुल्लू शहर की सैर करते हैं. यह परंपरा भी उसी दौरान 1651 ईसवी में शुरू हुई थी. जब यहां पर भगवान रघुनाथ जी के आगमन के बाद दशहरा पर्व शुरू हुआ था. भगवान नरसिंह की जलेब चलना दशहरा पर्व में शुभ माना जाता है. उस दौरान भगवान नरसिंह की जलेब की परिक्रमा इसलिए होती थी, ताकि सुरक्षा का पूरा जायजा लिया जा सके. माना जाता है कि भगवान नरसिंह इस दौरान पूरे कुल्लू शहर की किलाबंदी कर देते हैं और अपनी शक्तियों से किसी भी बुरी आत्मा को देवनगरी में प्रवेश करने नहीं देते.

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