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पीर भीखन शाहजी दरगाह: यहां एक ही जगह मौजूद हैं मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा

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Published : Dec 5, 2020, 7:21 PM IST

सूफी संत भीखन शाही ने की दरगाह ऐसी जगह है. जहां मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारा एक ही जगह हैं. दूर दराज से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं.

Peer Bhikhan Shahji Dargah
Peer Bhikhan Shahji Dargah

कुरुक्षेत्र: भारत प्राचीन काल से ही पीर-फकीरों का देश रहा है. इतिहास के पन्नों में ऐसी बहुत सी अनसुनी कहानियां और किस्से हैं, जिनके बारे में आपने शायद ही सुना होगा. किस्सा हरियाणा का इस एपिसोड में हम आपको आज ऐसे किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं जो सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह के जन्म से जुड़ा हुआ है. हम बात कर रहे हैं पंजाब बॉर्डर पर बसे घड़ाम गांव में बने पीर भीखन शाहजी की दरगाह की. इसकी खासियत ये हैं कि इस दरगाह के अंदर मंदिर, मस्जिद और गुरुवारा तीनों बने हैं.

कहा जाता है कि सूफी संत भीखन शाही को सबसे पहले सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह के जन्म का अभास हुआ था. जैसे ही उन्हें अहसास हुआ तो भीखन ने पटना की दिशा में नाज अदा की. जिसके बाद मुस्लिम लोगों ने उनका विरोध किया.

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ये है सूफी संत भीखन शाही की कहानी

जब लोगों ने पूछा कि उन्होंने उलटी दिशा में नमाज क्यों अदा की तो उन्होंने कहा कि इस दिशा में किसी ऐसे फरिश्ते का जन्म हुआ है जो अल्लाह का ही एक रूप है. उनसे मिलने की आस को लेकर वो पटना की ओर निकल पड़े. लंबा सफर तय करते हुए भीखन शाह पटना पहुंचे.

लेकिन पटना पहुंचने के बाद उनके हाथ निराशा लगी. गुरु गोविंद सिंह की माता गुजरी ने उन्हें देखकर दरवाजा बंद कर लिया. एक मुसलमान फकीर को पास आता देख गोविंद राय की मां गुजरी ने दरवाजा बंद कर लिया. भीखन ने दरवाजे पर पहुंच उनसे दरवाजा खोलने की गुजारिश की और कहा कि मैं गोविंद राय को देखने आया हूं. वो एक पाखरु है. कृपया दरवाजा खोले.

भीखन सिंह को देनी पड़ी थी परीक्षा

माता गुजरी ने दरवाजा खोलने से साफ इनकार कर दिया. दरअसल ये वो बुरा समय था जब हिंदू और सिखों के दिलों में मुगलों का खौफ था. सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोबिंद जब मात्र 1 वर्ष की आयु के भी नहीं थे तब मुगलों ने उन पर चोरी से हमला किया. कुछ ऐसे ही गोविंद राय के साथ ना हो इसलिए माता गुजरी ने दरवाजा खोलने से मना कर दिया और भीखन शाह को वापस लौट जाने को कहा.

वहां मौजूद रिश्तेदारों ने भी गुरु गोविंद राय की सुरक्षा की जिम्मेदारी ली और भीखन शाह को वहां से जाने के लिए कहा, लेकिन भीखन शाह वापस ना लौटें और कई दिनों तक उनके घर के बाहर बैठ कर इंतजार करते रहे. घर के अंदर आने जाने वाले रिश्तेदार कभी उनसे बात किया करते थे. इसी बीच उन्हें ये अहसास हुआ कि भीखन शाह अच्छे इंसान हैं. उनसे गोविंद राय को कोई नुकसान नहीं होगा. आखिरकार उन्होंने घर के भीतर जाने की अनुमति दे दी. अंदर जाते ही गुरु गोविंद राय की माता गुजरी की गोद में बच्चे के चेहरे की चमक देख भीखन चकित रह गए.

भीखन शाह गोविंद सिंह के सामने बैठ गए और उनके आगे दो मटके रख दिए, फिर कुछ देर इंतजार किया. अचानक गुरु गोविंद राय ने अपने दोनों हाथ उठाएं और दोनों मटकों के ऊपर रख दिए. ये देखते ही भीखन खुशी से फूले ना समाए और मटके उठाकर वहां से चल दिए. माता गुजरी और उनके रिश्तेदारों को ये बहुत अजीब लगा. उन्होंने जब भीखन से इस बारे में पूछा तो भीखन ने बताया कि इन मटकों में से एक हिंदू और दूसरा मुसलमान कोम का था. मैं ये देखना चाहता था कि अल्लाह का भेजा हुआ ये अवतार मुसलमानों की रक्षा के लिए आया है या फिर हिंदुओं की रक्षा के लिए.

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उन्होंने कहा कि गोविंद राय ने दोनों मटकों पर हाथ रखा. जिससे ये हो गया कि ये किसी धर्म या जाति के नहीं बल्कि इंसानियत की रक्षा के लिए आए हैंं. आगे चलकर गुरु गोविंद राय सिखों के दसवें गुरु बने. हरियाणा पंजाब के बॉर्डर पर बने अपने गांव घड़ाम में भीखन शाह का देहांत हो गया और उन्हें यहां इसी गांव में दफनाया गया और उसके बाद ये मजार बनाई गई. आज यहां गद्दी पर विराजमान एक शख्स जिनका नाम बुल्ले शाह हैं. वो इस दरगाह की देखरेख करते हैं. आस-पास के गांव पंजाब और हरियाणा के लोग भी और बड़ी दूर दूर से इस दरगाह पर दर्शनों के लिए आते हैं.

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