नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के सदस्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे कथित यौन उत्पीड़न की घटनाओं से पैदा हुए बच्चे के सौंपे जाने के मामले के दौरान संवेदनशीलता दिखाएं और स्थानीय भाषा अपनाएं, न कि कार्यवाही को व्यवसायिक तरीके से काम करें. कोर्ट की ये टिप्पणियां पॉक्सो के एक मामले से निपटने के दौरान आईं, जिसमें एक महिला, जो केवल उर्दू जानती थी, उससे पैदा हुए बच्चे को सौंपा गया था और बाद में गोद दे दिया गया था.
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इसमें कहा गया है कि सीडब्ल्यूसी रिकॉर्ड से पता चला है कि आत्मसमर्पण का आवेदन, आत्मसमर्पण का स्पष्टीकरण आदि सभी अंग्रेजी में लिखे या भरे गए थे. इन परिस्थितियों में यह और भी महत्वपूर्ण था कि पूरी कार्यवाही पीड़िता के साथ-साथ उसके अभिभावकों को उनकी स्थानीय भाषा या जिस भाषा में वे बोलते और समझते हैं और सीडब्ल्यूसी सदस्यों द्वारा समझाई जानी चाहिए थी.