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कोर्ट की टिप्पणी पर बोले वकील, पुलिस की जांच में लापरवाही से हार जाते हैं केस

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Published : Aug 30, 2021, 7:51 PM IST

दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े अधिकतर मामलों में पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई है. एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को मामले में हस्तक्षेप करने का निर्देश दिया है.

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Karkardooma Court

नई दिल्ली : उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े अधिकतर मामलों में पुलिस की जांच पर कड़कड़डूमा कोर्ट की टिप्पणी से दिल्ली पुलिस पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं. वकीलों का कहना है कि दिल्ली पुलिस को जांच में पेशेवर तरीका अपनाना चाहिए था न कि नेताओं के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, काम करना चाहिए था. कुछ वकीलों का कहना है कि अधिकांश मामलों में अभियोजन के केस के हारने की वजह उनकी जांच को लेकर लचर रवैया रहा है.



साकेत कोर्ट के वकील कामोद कुमार का कहना है कि दिल्ली पुलिस की जांच निष्पक्ष नहीं है. आधी-अधूरी जांच की वजह से कई बार पुलिस को कोर्ट ने फटकार लगाई है. वकील अरुण कुमार गुप्ता ने कहा कि न केवल दिल्ली दंगों के मामले में बल्कि अधिकांश मामलों में दिल्ली पुलिस और जांच अधिकारियों की जांच लचर होती है. जांच अधिकारी तो कोर्ट को ये तक नहीं बता पाते कि किस आरोपी के खिलाफ पहले से कितने मामले दर्ज हैं. उनके इस रवैये की वजह से कई आरोपियों को जमानत मिल जाती है.

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अरुण कुमार गुप्ता बताते हैं कि जांच अधिकारी चाहे तो नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो से किसी अपराधी के खिलाफ दर्ज पहले के मामलों का पता लगा सकते हैं, लेकिन कुछ हाईलाईटेड मामलों को छोड़कर वे ऐसी जहमत नहीं उठाते. जब कोई आरोपी कोर्ट में जमानत याचिका दायर करता है तो याचिका की एक प्रति जांच अधिकारी को भेजी जाती है. जांच अधिकारी को कोर्ट में उपस्थित होना होता है, लेकिन कई मामलों में तो जांच अधिकारी पेश भी नहीं होते. यहां तक कि जमानत याचिका की प्रति मिलने के बाद उन्हें शिकायतकर्ता को भी पाबंदीनामा के जरिये सुनवाई की सूचना देनी होती है, लेकिन जांच अधिकारी शिकायतकर्ता को ये बताते भी नहीं है कि उनके मामले के आरोपी की जमानत याचिका कोर्ट में सुनवाई के लिए लिस्टेड है.

ऐसे में शिकायतकर्ता कोर्ट में आरोपी की जमानत याचिका का विरोध नहीं कर पाता और आरोपी को जमानत मिल जाती है. आपराधिक मामले की सुनवाई वाले दिन सुबह में जांच अधिकारी सरकारी वकील को केस के बारे में पूरी सूचना देता है, लेकिन आम तौर पर जांच अधिकारी सरकारी वकील को केवल चार्जशीट की कॉपी ई-मेल कर देते हैं. चार्जशीट में सारी बातें नहीं लिखी होती हैं. कई बातें जांच अधिकारी और सरकारी वकील के बीच बातचीत के बाद पता चलती हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है.

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कड़कड़डूमा कोर्ट के वकील सुनील कुमार बताते हैं उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के मामलों में पुलिस को पेशेवर तरीके से जांच करनी चाहिए. उन्हें राजनीतिक आकाओं को खुश करने के चक्कर में कोर्ट की फटकार सुननी पड़ती है. अगर दिल्ली पुलिस पेशेवर तरीके से जांच करती तो कोर्ट की ये टिप्पणी नहीं आती. बता दें कि दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से जुड़े अधिकतर मामलों में जांच पर सवाल उठाते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई.

एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को हस्तक्षेप करने का निर्देश दिया है. दिल्ली हिंसा के एक मामले के आरोपी अशरफ अली के खिलाफ आरोप तय करने के दौरन कोर्ट ने यह टिप्पणी की है. अशरफ अली पर दिल्ली हिंसा के दौरान 25 फरवरी 2020 को पुलिस बल पर एसिड, बोतलों और ईंटों से हमले करने का आरोप है. कोर्ट ने कहा कि ये काफी दुखद है कि दिल्ली दंगों से जुड़े अधिकांश मामलों में पुलिस की जांच का स्तर काफी खराब है. अधिकांश मामलों में जांच अधिकारी खुद कोर्ट में पेश नहीं होते हैं. कोर्ट ने कहा कि पुलिस मामले की जांच को शायद ही पूरा करना चाहती है. पुलिस आधे-अधूरे चार्जशीट दाखिल करती है, जिसकी वजह से कई आरोपी जेलों में बंद हैं.

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कोर्ट ने कहा कि अशरफ अली का मामला ऐसा है, जिसमें पुलिसकर्मी खुद पीड़ित हैं. उसके बावजदू जांच अधिकारी ने एसिड का सैंपल एकत्र करने की जहमत नहीं उठाई. ताकि उसके केमिकल की पड़ताल की जा सके. इसके अलावा जांच अधिकारी ने जख्मों की प्रकृति पर डॉक्टर की राय भी नहीं ली. कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी वकीलों को दलीलें पेश करने से पहले केस का पूरा विवरण भी नहीं बताते हैं. सुनवाई के दिन सुबह केवल चार्जशीट की पीडीएफ कॉपी ई-मेल करते हैं. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को इस आदेश की प्रति भेजने का निर्देश दिया और पुलिस कमिश्नर को इस पर उपचारात्मक कार्रवाई करने के निर्देश दिये हैं.

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