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28 को जंतर मंतर पर भूख हड़ताल पर बैठेंगे मृतक, पढ़ें क्या है मामला

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Published : Aug 26, 2022, 10:21 PM IST

फिल्म कागज
फिल्म कागज

डिजिटल स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर 2021 में फिल्म 'कागज' रिलीज हुई थी. सतीश कौशिक के निर्देशन में बनी इस फिल्म में पंकज त्रिपाठी लीड रोल में थे. त्रिपाठी ने एक ऐसे व्यक्ति का राेल निभाया था, जिसे सरकारी कागज पर मृत घोषित कर दिया गया था. उनकाे कागज पर खुद काे जिंदा साबित करने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े थे. यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है. ऐसे ही मृत लाेगों के लिए 28 अगस्त काे जंतर मंतर पर एक दिन का उपवास रखा जाएगा. dead on paper

नई दिल्लीः देश में कई ऐसे व्यक्ति जिंदा हैं, जिन्हें कागज पर मृत घोषित कर दिया गया है (dead on paper). परिवार वालों ने पारिवारिक विवाद के चलते या फिर अपने स्वार्थ के लिए मृत घोषित करवा दिया है. हाड़ मांस का ये जिंदा शख्स सालों से खुद के जिंदा होने की लड़ाई लड़ रहा है. क्याेंकि कागज पर जिंदा हाेने पर ही उन्हें उनका अधिकार मिल सकेगा. इसके लिए कई लोग लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं.

समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा.

इन लोगों का साथ देने के लिए 28 अगस्त को दिल्ली में रहने वाले समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट हरपाल राणा जंतर मंतर पर एक दिन का सांकेतिक उपवास रखेंगे (Harpal Rana will go on hunger strike). राणा ने बताया कि हमारे संपर्क में यूपी, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश के करीब 20 से 25 लोग हैं. जिन्हें उनके परिवार के लोगों ने परिवार विवाद के चलते सरकारी तौर पर मृत घोषित करवा दिया. उनकी जमीन पर अधिकार कर लिया. कई ऐसे शख्स हैं, जो पिछले कई सालों से जंतर मंतर पर बैठकर लगातार शासन और प्रशासन के खिलाफ जिंदा घोषित करने का मुहिम चला रहे हैं.

यूपी, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश से आई शिकायत.

सालों लंबी लड़ाई के बाद भी आज तक उन्हें सफलता नहीं मिली है. साथ ही कुछ लोगों को लंबी लड़ाई के बाद जिंदा तो घोषित किया गया, लेकिन अभी तक अधिकारों से वंचित है. प्रशासन की लापरवाही के शिकार ऐसे लोग अब 28 तारीख को जंतर मंतर पर धरना देने के लिए दिल्ली आ रहे हैं (Movement of people declared dead at Jantar Mantar). हरपाल राणा ने कहा कि ऐसे लोगों के लिए आवाज उठाना बेहद जरूरी है. इनके साथ परिवार के लोगों ने धोखा कर अपने निजी स्वार्थ के लिए उन्हें मृत घोषित करवा दिया और अब वह दर बदर की ठोकर खाकर किसी तरह अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

कोई रेलवे स्टेशन पर, तो कोई किसी मंदिर या गुरुद्वारे के बाहर बैठकर भीख मांग रहा है. एक शख्स पिछले 10 सालों से जंतर मंतर पर चाय की दुकान लगाकर अपने जीवन को दोबारा से संवारने की लड़ाई लड़ रहा है. उसने बोर्ड भी लगाया हुआ है कि मैं जिंदा हूं. कहीं पर परिवार के लोगों ने ही सरकारी पेंशन का लाभ लेने के लिए अपनों को मृत घोषित करा दिया और पेंशन का लाभ ले रहे हैं. यदि लड़ाई के बाद भी सरकारी तौर पर लोगों को न्याय नहीं मिला तो न्यायालय से इंसाफ की गुहार लगाएंगे.

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