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जानिए क्या है वाराणसी के पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा का इतिहास

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Published : Jan 11, 2021, 7:57 PM IST

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पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा का इतिहास

अखाड़े का जिक्र आते ही हम सबके जहन में पहलवानों की कुश्ती के अखाड़ों का अक्स उभरता है. लेकिन अखाड़े के अलग-अलग पर्याय होते हैं. एक ओर जहां अखाड़ा कुश्ती के लिए प्रयोग किया जाता है. तो वहीं दूसरे अर्थ में अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है. जो शास्त्र विद्या में पारंगत होते हैं. जो संकट के समय राज धर्म के विरुद्ध परिस्थितियों में राष्ट्र रक्षा और धर्म रक्षा के लिए काम करते हैं.

वाराणसीः अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है जो शास्त्र विद्या में पारंगत होते हैं. यदि हम अखाड़े के इतिहास पर नजर डालें तो आदि शंकराचार्य ने चार पीठों की स्थापना की थी. जहां दक्षिण में शृंगेरी शंकराचार्य पीठ, पूर्व में गोवर्धन पीठ, पश्चिम में शारदा मठ तथा बद्रिकाश्रम में ज्योति पीठ की स्थापना की. जिसके रक्षा के लिए अखाड़ों का गठन हुआ.

पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा का इतिहास

बता दे कि शैव, वैष्णवों और उदासीन पंथ के सन्यासियों के मान्यता के अनुसार कुल 13 अखाड़े हैं. जहां नागा सन्यासी रहते हैं. साथ ही इन अखाड़ों का सिंहस्थ, कुंभ या अर्ध कुंभ में विशेष महत्व होता है. सभी अखाड़े महाकुंभ में अपनी परंपरा और प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं. उन्हीं अखाड़ों में से एक अखाड़ा शैव संप्रदाय का, जो वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित है. यह सदैव कुंभ में शिरकत कर अपनी परंपरा का निर्वहन करता है. इस अखाड़े को श्री शम्भू पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा कहा जाता है. जिसके महंत प्रेमपुरी महाराज हैं.

क्या है अखाड़े का इतिहास और उद्देश्य ?
काशी के श्री शंभू पंचदशनाम आवाहन अखाड़े की बात करें तो यह काशी के दशाश्वमेध घाट पर स्थित है. जिसे छठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित किया गया था. इस बाबत आवाहन अखाड़े के थानापति बताया कि यह अखाड़ा कई दशकों पुराना है. पहले इससे आवाहन सरकार के नाम से जाना जाता था. क्योंकि यह धर्म की रक्षा के साथ-साथ लोगों को धर्म के पथ पर चलना भी सिखाता था. उन्होंने बताया कि इस अखाड़े का उद्देश्य सदैव धर्म की रक्षा करना रहा है. वर्तमान समय में भी यह इसी उद्देश्य पर काम कर रहा है. जहां भी विधर्म होगा, वहां नागा साधुओं का यह अखाड़ा मौजूद रहेगा. नागा साधु हर परिस्थिति में धर्म की रक्षा करेंगे.

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वर्तमान में क्या है स्थिति ?

अखाड़े के थानापति ने बताया कि प्राचीन और वर्तमान समय की परिस्थितियों में थोड़ा फेरबदल अवश्य हुआ है. उस समय जो परिस्थितियां थीं, जो धर्म की मांग थी. वह अलग थी और वर्तमान समय में जो मांग है वह अलग है. परन्तु नागा सन्यासी उस समय भी धर्म की रक्षा के लिए तत्पर था. वर्तमान समय में भी धर्म की रक्षा के लिए तत्पर है. उन्होंने बताया कि आधुनिक परिवेश सामान्य लोगों के लिए होता है. साधु के लिए आधुनिकता का कोई मतलब नहीं. वर्तमान समय यांत्रिक या अन्य वस्तुओं का सन्यासी के लिए कोई काम नहीं है. वर्तमान समय में भी आवाहन अखाड़े पर आधुनिकता का कोई रंग नहीं चढ़ा है.

ऐसे होता है पदों का बंटवारा

थानापति ने बताया कि अखाड़े में कई पद होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य होते हैं. सबसे पहले श्री महंत होते हैं. उसके बाद अष्ट कौशल महंत होते हैं. तदोपरांत अखाड़े के थानापति होते हैं जो कि हर अखाड़े के अलग-अलग होते हैं, जिसमें दो पंच होते हैं. एक रमता पंच दूसरा शंभू पंच. उन्होंने बताया कि इसके अलावा पांच सरदारों की भी नियुक्ति की जाती है. जो अखाड़े के कार्यों को देखते हैं. जिनमें भंडारी, कोतवाल ,कोठारी, कारोबारी और पुजारी महंत होता है जो अखाड़े की पूजा अर्चना और धार्मिक कार्यों को देखते हैं. इसके साथ ही सभी सरदार अखाड़े के आवश्यक कार्यों का संचालन करते हैं, जिससे कि अखाड़े की क्रिया प्रतिक्रिया में कोई बाधा न हो सके.

ये हैं अखाड़े में शामिल होने के नियम

उन्होंने बताया कि अखाड़े में शामिल होने के लिए व्यक्ति को शुद्ध मन से गुरु की सेवा में लीन होना पड़ता है. उसे समाज की अनेकों बुराइयों का त्याग कर ईश्वर की भक्ति में खोना पड़ता है. तभी वह अखाड़े में शामिल होकर अखाड़े और गुरु की सेवा कर सकता है. इसके लिए व्यक्ति को संसार के सभी सुखों को त्यागना होता है. जिससे की वह अंश मात्र में भी अपना जीवन गुजार ले. उन्होंने बताया कि नागा सन्यासी बनना बेहद कठिन मार्ग है. नागा सन्यासियों को अस्त्र-शस्त्र की भी शिक्षा दीक्षा दी जाती है, जिसका वो समय के अनुसार प्रयोग करते हैं. कई लोग आधे रास्ते में ही पथ को छोड़ देते हैं. परन्तु जो अंत तक रहता है, वही नागा सन्यासी बनता है. उन्होंने बताया कि नाग सन्यासी कभी भिक्षा नहीं मांगते हैं. जो श्रद्धालु देते हैं वो उसे अपनी स्वीकृति के अनुसार स्वीकार करते हैं.

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