जबलपुर. ग्रेनेडियर्स रेजिमेंटल सेंटर ने जानकारी देते हुए बताया है कि एके-47 और इंसास राइफल के बाद अब सेना और सुरक्षा एजेंसियां जवानों को नई राइफल एके-203 देने जा रही है. इसे बेहद अत्याधुनिक हथियार इंडो रशियन तकनीक पर भारत में ही बनाया गया है. यह पिछली दोनों ही राइफलों से कई ज्यादा कारगर है और मारक क्षमता में और आगे है. जंग की स्थिति में किसी जवान की सबसे बड़ी ताकत उसकी बंदूक होती है, ऐसी स्थिति में यदि भारतीय जवानों के पास एके 203 राइफल हो, तो दुश्मन की खैर नहीं होगी.
जीआरसी में हुई एके 203 की ट्रेनिंग
जबलपुर का ग्रेनेडियर्स रेजिमेंटल सेंटर (जीआरसी) सेना के जवानों को प्रशिक्षित करने का एक ट्रेनिंग सेंटर है. यहां सेना के मध्य भारत क्षेत्र के जवानों के एक दल ने नई बंदूक एके-203 राइफल को चलाने की ट्रेनिंग ली है. माना जा रहा है कि इसके बाद इन जवानों के माध्यम से सेना और दूसरी सुरक्षा एजेंसियों के जवानों को इसे चलाने की ट्रेनिंग दी जाएगी.
क्यों बेहतर गन है AK-203?
अभी तक सेना ज्यादातर एके-47 और इंसास राइफल का इस्तेमाल कर रही है लेकिन AK-203 राइफल इन दोनों ही राइफल से कई मामलों में बेहतर है. यह वजन में हल्की है, इसका वजन महज 3.8 किलोग्राम है और इसकी मारक क्षमता इन दोनों ही राइफल से कुछ ज्यादा है. ये राइफल लगभग 800 मीटर (1 किलोमीटर से थोड़ा कम) तक सटीक निशाना साध सकती है. इंसास राइफल के मुकाबले इस राइफल से 50 राउंड प्रति मिनट ज्यादा दागे जा सकते हैं. यानी एक मिनट में AK-203 राइफल 700 राउंड तक फायर कर सकती है.
एके-47 और इंसास से कैसे बेहतर है AK203?
एक जवान को बंदूक को दिन भर अपने कंधे पर टंगे रखना होता है या फिर वह उसे अपने हाथ में रखता है, ऐसे में बंदूक का वजन काफी महत्वपूर्ण होता है. इसलिए सेना को कम वजन की अच्छी बंदूक की जरूरत थी. AK-47 राइफल का वजन 4.6 किलो था, वहीं इससे बेहतर राइफल इंसास बनाई गई जिसका वजन 4.1 किलोग्राम था. लेकिन इन दोनों से बेहतर बंदूक एके 203 साबित हुई इसका वजन 3.8 किलोग्राम है, यह वजन में काफी हल्की है.