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भारत की दो-टूक-'मानवाधिकार उल्लंघन पर अमेरिकी रिपोर्ट बेहद पक्षपातपूर्ण' - MEA on US report

By PTI

Published : Apr 25, 2024, 6:29 PM IST

Updated : Apr 25, 2024, 6:35 PM IST

MEA on US report : भारत ने अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट को 'बेहद पक्षपातपूर्ण' करार दिया है. साथ ही दो-टूक कहा है कि वह ऐसी रिपोर्ट को कोई महत्व नहीं देता है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मीडिया से भी आग्रह किया कि अमेरिकी रिपोर्ट को महत्व न दें.

Randhir Jaiswal
रणधीर जायसवाल

नई दिल्ली : भारत ने शुक्रवार को मणिपुर सहित मानवाधिकार उल्लंघन की कथित घटनाओं का हवाला देने वाली अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट को 'बेहद पक्षपातपूर्ण' बताया. साथ ही कहा कि यह उसकी भारत के संबंध में खराब समझ को दर्शाता है. भारत इसे कोई महत्व नहीं देता है.

दरअसल अमेरिकी विदेश विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में जातीय संघर्ष के फैलने के बाद मणिपुर में मानवाधिकारों के हनन की घटनाओं पर प्रकाश डाला गया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, 'यह रिपोर्ट बेहद पक्षपातपूर्ण है और भारत के बारे में खराब समझ को दर्शाती है.' उन्होंने अपनी साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग में कहा, 'हम इसे कोई महत्व नहीं देते और आपसे भी ऐसा ही करने का आग्रह करते हैं.'

रिपोर्ट में बीबीसी ऑफिस पर रेड का जिक्र :रिपोर्ट में ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) के कार्यालय पर भारतीय कर अधिकारियों द्वारा की गई छापेमारी का भी जिक्र किया गया है. रिपोर्ट के भारत खंड में कहा गया है कि स्थानीय मानवाधिकार संगठनों, अल्पसंख्यक राजनीतिक दलों और प्रभावित समुदायों ने मणिपुर में हिंसा को रोकने और मानवीय सहायता प्रदान करने में देरी की कार्रवाई के लिए देश की सरकार की आलोचना की.

रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों द्वारा नागरिक समाज संगठनों के खिलाफ गलत सूचना रणनीति का उपयोग करने की कई प्रेस और नागरिक समाज रिपोर्टें थीं. धार्मिक अल्पसंख्यक, जैसे सिख और मुस्लिम, और राजनीतिक विरोध, कभी-कभी उन्हें सुरक्षा खतरों के रूप में चित्रित करते हैं.

बीबीसी कार्यालयों पर टैक्स रेड का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि कर अधिकारियों ने खोजों को बीबीसी के कर भुगतान और स्वामित्व संरचना में अनियमितताओं से प्रेरित बताया, अधिकारियों ने उन पत्रकारों की भी तलाशी ली और उनके उपकरण जब्त किए जो संगठन की वित्तीय प्रक्रियाओं में शामिल नहीं थे.

विदेश विभाग ने 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी की एक डॉक्यूमेंट्री का जिक्र करते हुए आरोप लगाया, जिसकी स्क्रीनिंग पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया था. 'सरकार ने वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने के लिए आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया, मीडिया कंपनियों को वीडियो के लिंक हटाने के लिए मजबूर किया, और छात्र प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया.'

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