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कमाल का क्लासरूम! राइंका टिकोची में छत के नीचे छाता, छाते के नीचे हो रही पढ़ाई

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Published : Aug 9, 2023, 10:27 PM IST

Government Inter College Tikochi
राजकीय इंटर कॉलेज टिकोची

हिमाचल प्रदेश की सीमा से सटे आराकोट बंगाण क्षेत्र में आपदा के जख्म अभी तक नहीं भर पाए हैं. इसका अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि छात्रों को पढ़ाई भी छाता लेकर करनी पड़ रही है. इतना ही नहीं कब चादरों और लकड़ी से बने कक्ष धराशायी हो जाए पता नहीं. कॉलेज परिसर में हर तरफ मिट्टी, रेत और लकड़ी के ढेर लगे हुए हैं.

उत्तरकाशीः साल 2019 की आपदा के बाद राजकीय इंटर कॉलेज टिकोची के हाल बेहद खस्ता है. अभी तक स्कूल का भवन नहीं बन पाया है. वैकल्पिक तौर पर बनाए गए तीन अतिरिक्त कमरों में कक्षाएं संचालित की जा रही है, लेकिन हाल ये है कि बारिश आने पर पूरी छत टपकने लगती है. ऐसे में छात्रों को मजबूरन छाता लगाकर पढ़ाई करना पड़ रहा है. चादरों और लकड़ी से बनाए अस्थायी कक्षों में छात्र अपने भविष्य संवारने में जुटे हैं, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है.

बता दें कि उत्तरकाशी जिले के मोरी विकासखंड के राजकीय इंटर कॉलेज टिकोची में क्षेत्र के दूचाणू, किराणु, गोकुल, बरनाली, झोटाड़ी, चिंवा, बलावट, मौंडा, जागटा, माकुड़ी, डगोली समेत 14 गांवों के बच्चे अध्ययनरत हैं. प्रधानाचार्य युद्धवीर सिंह रावत बताते हैं कि साल 2019 की आपदा से पहले जीआईसी टिकोची में 280 छात्र बच्चे अध्ययनरत थे, लेकिन आपदा में कॉलेज भवन बह गया. ऐसे में छात्रों के लिए बैठने की कोई व्यवस्था नहीं थी. जिसके चलते 65 छात्र एक साथ अपनी टीसी कटवाकर अध्ययन के लिए अन्यत्र चले गए. अब वर्तमान में कॉलेज में केवल 153 छात्र छात्राएं अध्ययनरत हैं.

Government Inter College Tikochi
जीआईसी टिकोची में छाता लेकर भविष्य संवारते छात्र

उन्होंने बताया कि छात्रों के लिए न ही खेल मैदान है, न ही अध्ययन के लिए पर्याप्त कक्ष हैं. जो तीन अतिरिक्त कक्ष बनाए भी गए हैं, उनकी स्थिति ऐसी है कि बारिश में पूरी छत टपकने लगती है. छात्रों को अंदर भी छाता लेकर अध्ययन करना पड़ता है. युद्धवीर रावत ने बताया कि कॉलेज परिसर में जगह-जगह मिट्टी, रेत और लकड़ी के ढेर लगे हैं. उनका ज्यादातार समय तो छात्रों की सुरक्षा और उनकी चिंता में ही निकल जाता है कि कहीं कोई छात्र मिट्टी, रेत से फिसल कर या लकड़ी आदि से चोटिल न हो जाए.

वहीं, अभिभावक संघ के अध्यक्ष विनोद रावत, पूर्व प्रधान शशि बाला, मनमोहन चौहान आदि ने जल्द विद्यालय भवन बनाने और कॉलेज में इतिहास, गणित, अर्थशास्त्र जैसे महत्वपूर्ण विषयों के रिक्त चल रहे पदों पर अध्यापकों की नियुक्ति करने की मांग की. अभिभावकों का भी कहना है कि वो अपने बच्चों को जान जोखिम में डालकर स्कूल भेजते हैं. उन्हें भी डर सताता रहता है कि कहीं उनके साथ हादसा न हो जाए.
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2019 में आई थी आपदाः गौर हो कि 18 अगस्त 2019 को आराकोट बंगाण के कोठीगाड़ क्षेत्र में बादल फटा था. जिसमें भारी तबाही मची थी. इस आपदा में कई लोग काल कवलित हो गए थे. कई घर भी जमींदोज हो गए थे. खासकर चिंवा, टिकोची, माकुड़ी, आराकोट और सनैल कस्बों में भारी मलबा आ गया था. आपदा के बाद घाटी का संपर्क पूरी तरह से मुख्यालय से कट गया था.

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छात्रों को छाता लेकर करनी पड़ रही पढ़ाई

कई गांवों में बागवानों की कई हेक्टेयर भूमि और सेब की फसल तबाह हो गई थी. मोटर मार्ग से लेकर पेयजल योजनाएं, पुल, अस्पताल समेत स्कूल आदि बह गए थे. आराकोट बंगाण क्षेत्र सेब उत्पादन में विशेष पहचान रखता है. यहां कई कई वैरायटी के सेब, नाशपाती आदि की पैदावार होती है. यही वजह है कि घाटी फल पट्टी के रूप में जानी जाती है.

जब आराकोट क्षेत्र में आपदा आई तो संचार सुविधा न होने की वजह से ग्रामीणों ने तबाही की जानकारी हिमाचल के नेटवर्क के जरिए दी. कई हेलीकॉप्टरों को घाटी में राहत और बचाव कार्य में लगाए गए. इस दौरान दो हेलीकॉप्टर भी हादसे का शिकार हो गए. 21 अगस्त को पहले हेलीकॉप्टर हादसे में पायलट समेत 3 लोगों की जान गई थी. जबकि, 23 अगस्त को दूसरे हेलीकॉप्टर की आपात लैंडिंग करानी पड़ी थी. हालांकि, इस आपात लैंडिंग में कोई जनहानि नहीं हुई थी, लेकिन हेलीकॉप्टर को नुकसान पहुंचा था.

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