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उत्तराखंड: तबाही की कगार पर पहुंचे पहाड़, जानिए कैसे होती है बादल फटने की घटना

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Published : Aug 19, 2019, 10:11 PM IST

Updated : Aug 19, 2019, 11:51 PM IST

उत्तरकाशी में तबाही

जब ज्यादा नमी वाले बादल एक ही जगह पर रुक जाते हैं और बूंदों का धनत्व बढ़ने के कारण उसी स्थान पर बरस जाते हैं. कुछ ही सेकेंड में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. इस घटना को बादल फटना कहते हैं.

उत्तरकाशी: उत्तराखंड में हर साल मानसून अपने साथ भारी तबाही लेकर आता है. उत्तराखंड में अमूमन बादल फटने की घटनाएं देखने को मिलती हैं. इस कारण पर्वतीय क्षेत्र तबाही के कगार पर पहुंच गए हैं. पहाड़ी जिलों में अक्सर तीन चार दिन के बाद बादल फटने की घटनाएं देखने को मिलती हैं. ताजा मामला रविवार का है, जहां उत्तरकाशी जिले के मोरी क्षेत्र में बादल फटने से 12 लोगों की मौत हो गई, जबकि 5 लोग अभी भी लापता हैं.

बीते कुछ सालों की बात करें तो उत्तरकाशी में ये आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है. अत्यधिक भारी बारिश से सिर्फ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर को भी काफी नुकसान होता है.

तबाही की कगार पर पहुंचे पहाड़

उत्तराखंड में बीते कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यहां बादल फटने की घटनाएं बढ़ गई हैं. आम बोल-चाल की भाषा में बादल फटने शब्द का प्रयोग किया जाता है, लेकिन मौसम विभाग के अनुसार अगर एक ही स्थान पर एक मिनट में 2 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होती है तो वहां पर बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं. इस तरह के हालात को बादल फटना कहते हैं. उत्तरकाशी जिला इस दर्द को कई बार झेल चुका है.

पढ़ें- जानिए क्या है बादल फटना, आखिर पहाड़ों पर ही क्यों होती है ऐसी घटना?

जानिए क्या है बादल फटना
आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि कई बार किसी स्थान पर बहुत तेज बारिश होती है. जिस कारण वहां बाढ़ जैसे हालत बन जाते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि अगर किसी स्थान पर एक घंटे में 50 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई हो या फिर किसी एक जगह, एक मिनट में 2.5 सेंटीमीटर या उससे अधिक बारिश रिकॉर्ड दर्ज होती है तो उसे बादल फटना कहते हैं.

बादल फटने की घटना तब होती है, जब बहुत ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह रुक जाते हैं. पानी की बूंदों का वजन बढ़ने से बादल का घनत्व काफी बढ़ जाता है और फिर अचानक मूसलाधार बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिलीमीटर प्रति घंटे की दर से पानी बरसता है. इस दौरान इतना पानी बरसता है कि क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं.

बादल फटने के बाद इलाके का मंजर भयावह होता है. नदी और नालों का जलस्तर अचानक बढ़ने से आपदा जैसे हालात बन जाते हैं. पहाड़ पर बारिश का पानी रुक नहीं पाता, इसीलिए पानी तेजी से नीचे की ओर आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़ों के साथ लेकर आता है. कीचड़ का यह सैलाब इतना खतरनाक होता है कि जो भी उसके रास्ते में आता है उसको अपने साथ बहा ले जाता है.

पढ़ें- उत्तराखंड में भारी बारिश से त्राहिमाम, इस साल 44 लोगों की गई जान, इतने करोड़ का हुआ नुकसान

उत्तरकाशी में बादल फटने की घटनाएं
उत्तरकाशी में इससे पहले कई बार बादल फटने की घटनाएं सामने आ चुकी है, जिससे भारी तबाही हुई है. 2012-13 की आपदा लोगों के जहन में अभी भी ताजा है. वहीं साल 1978 की बाढ़ ने उत्तरकाशी में जमकर कहर बरपाया था. 80 के दशक में नगर क्षेत्र के पादुली नाले में बादल फटने से 4 लोगों की जान गई थी. उसके बाद 2005 में फिर पादुली नाले में बादल फ़टा था, जिसमें कई दुकानें क्षतिग्रस्त हो गई थीं. बीते साल मनेरी के पास भी बादल फटा था. इस हादसे में 1 मासूम सहित तीन लोगों की मौत हो गई थी.

Intro:पहाड़ों में बरसात के दौरान बादल फटने की घटनाएं अधिक बढ़ जाती है। वहीं अगर एक मिनिट में किसी क्षेत्र में 2 सेंटीमीटर बारिश होती है। तो वहां पर बाढ़ जैसे हालत बन जाते हैं। उत्तरकाशी। पहाड़ो में बरसात के दौरान अमूमन बादल फटने की घटनाएं देखने को मिलती है। इसमें कई लोग तबाह हो गए हैं। बादल फटने की घटना को आम बोल-चाल की भाषा मे प्रयोग किया जाता है। हालांकि मौसम विभाग की और से इसके मानकों के अनुसार अगर एक ही स्थान पर एक मिनिट में 2 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होती है। तो वहां पर बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। साथ ही उत्तरकाशी कई बार बादल फटने की घटनाओं का दर्द सह चुका है। Body:वीओ-1, आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल ने बताया कि कई बार किसी स्थान पर बहुत तेज बारिश होती है। जिस कारण वहां पर अत्यधिक पानी के कारण बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। साथ ही कहा कि अगर किसी स्थान पर एक घण्टे में 50 मिलीमीटर से अधिक बारिश और एक मिनिट में 2 सेंटीमीटर से अधिक बारिश होती है। तो वहां पर पानी का दबाव बनने के कारण धरती से मिट्टी को उखाड़ते हुए पानी आगे बढ़ता है। जिससे कि बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। पहाड़ो में बादलों की दूरी कम होने के कारण यह स्थिति ज्यादा बनती है। Conclusion:वीओ-2, उत्तरकाशी में यह पहली घटना नहीं है। जिसने घर और पूरे गांव बर्बाद कर दिए हों। इससे पूर्व 2012 और 13 कि आपदा की यादें अभी लोगों के जहन में ताजा हैं। तो साथ ही 1978 कि बाढ़ ने भी उत्तरकाशी में जमकर कहर बरपाया था। साथ ही 80 के दशक में नगर क्षेत्र के पादुली नाले में बादल फटने से 4 लोगों की जान गई थी। उसके बाद 2005 में फिर पादुली नाले में बादल फ़टा। जिसमे माल और दुकानों को नुकसान हुआ था। वहीं गत वर्ष मनेरी के समीप नाले में बादल फटने से 1 मासूम सहित 3 लोगों की जान गई थी। बाइट- देवेंद्र पटवाल,आपदा प्रबंधन अधिकारी।
Last Updated :Aug 19, 2019, 11:51 PM IST
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