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16वीं सदी के राजा कफ्फू चौहान के बारे में जान सीना हो जाता है चौड़ा, पर सरकार नहीं दे रही ध्यान

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Published : Nov 21, 2019, 9:51 AM IST

Updated : Nov 21, 2019, 10:43 AM IST

16वीं सदी के गढ़वाल के वीर योद्धा रहे कफ्फू चौहान के ऐतिहासिक धरोहर की दुर्दशा पर कफ्फू चौहान के वंशज दुखी हैं. खेम सिंह चौहान का आरोप है कि एक ऐतिहासिक धरोहर की न तो पर्यटन विभाग को चिंता है और न ही सरकार को.

16वीं सदी के वीर कफ्फू चौहान के गांव की दुर्दशा

टिहरी: उप्पुगढ़ 16वीं सदी के गढ़वाल में 52 गढ़ों में एक माना जाता था. इतिहासकार बताते हैं कि लगातार हमलों के बाद भी यहां के बाशिंदों ने कभी भी बाहरी लोगों की दासता स्वीकार नहीं की. इसी उप्पुगढ़ की धरती में पैदा हुए थे एक वीर, जिनका नाम था कफ्फू चौहान. इस वीर ने अपनी प्रजा की आजादी के लिए राजा अजयपाल की आधीनता स्वीकार नहीं की.

गढ़वाल के सोमपाल वंश का 37वां राजा था अजयपाल. बताया जाता है कि अजपाल ने चांदपुर गढ़ के विस्तार के लिए गढ़वाल के अन्य 52 गढ़ों को जीतने का संकल्प लिया था. उस वक्त अजयपाल के पास महज 4 गढ़ थे लेकिन, अपनी विशाल सेना के दम पर वह गढ़वाल के बाकी सभी गढ़ों को जीतने के मकसद से निकल पड़ा. इन 52 गढ़ों में आखिरी गढ़ था उप्पुगढ़. लेकिन उप्पुगढ़ के राजा कफ्फू चौहान ने अजयपाल के सामने आत्मसमर्पण करने से इंकार दिया. बताया जाता है कि राजा अजयपाल ने दीपावली के कुछ दिन पहले उप्पुगढ़ पर आक्रमण किया था, उस वक्त उप्पुगढ़ के लोग दिवाली की तैयारी कर रहे थे.

16वीं सदी के राजा कफ्फू चौहान के गांव की दुर्दशा

अजयपाल ने राजा कफ्फू चौहान की वीरता के किस्से सुने थे. इसलिए उसने रात के वक्त भागीरथी नदी के बांए तरफ रमोगढ़ की सीमा से उप्फुगढ़ पर हमला बोल दिया. हमले की खबर सुनकर कफ्फू चौहान अपने सैनिकों के साथ राजा अजयपाल की सेना पर टूट पड़े. लोग ऐसा कहते हैं कि कफ्फू चौहान ने अजयपाल की सेना को उप्पुगढ़ की सीमा से 15 किलोमीटर दूर अठूर जोगियाणा तक खदेड़ दिया. इस बीच कफ्फू चौहान की मां और पत्नी को युद्ध भूमि से कफ्फू चौहान के वीरगति की झूठी सूचना मिली. इस गम में दोनों ने जलती चिता में कूद लगाकर जीवनलीला समाप्त कर दी.

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इतिहासकार बताते हैं कि जब कफ्फू चौहान अपनी माता और रानी की मौत के बारे में सुने तो गम के चलते वह अपने सिर के बाल काट देते हैं. ऐसा माना जाता था कि कफ्फू चौहान को वरदान प्राप्त था कि जब तक उसके सिर में बालों की जटा रहेगी, उसे कोई हरा नहीं सकता. इस बीच युद्ध भूमि में राजा अजयपाल की सेना ने कफ्फू चौहान और उसकी सेना को बंदी बना दिया. वीर कफ्फू चौहान को मौत की सजा मिली.
लोग ऐसा भी बताते हैं कि राजा अजयपाल ने अपने सैनिकों को आदेश दिया था कि कफ्फू चौहान की गर्दन इस प्रकार काटी जाए कि धड़ से अलग होने के बाद सिर का हिस्सा उसके पैरो पर गिरे. लेकिन, इस बीच कफ्फू चौहान ने मुंह में रेत भर दी. सैनिकों ने कफ्फू का सिर कलम किया लेकिन राजा अजयपाल के पैरों में रेत गिरी और सिर का हिस्सा दूसरी ओर. इस घटना से प्रभावित होकर राजा अजयपाल ने भागीरथी नदी के किनारे कफ्फू चौहान के शव का अंतिम संस्कार किया.

राजा अजयपाल के इतिहास पर नजर डालें तो साल 1512 में अजयपाल ने अपनी राजधानी देवलगढ़ में स्थानांतरित की थी. 1517 में ही उसने अपनी राजधानी श्रीनगर बनाई. इसी दौरान राजा अजयपाल ने गढ़वाल के 52 गढ़ों को जीतकर एक बड़े साम्राज्य की स्थापना की थी. आज उप्पुगढ़ में चौहान जाति के सभी लोग वीर कफ्फू चौहान के वंशज माने जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि कप्फु का एक गूंगा भाई भी था. जो हमले के वक्त गांव से बाहर गया था. उसी ने चौहान वंश को आगे बढ़ाया.

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कफ्फू चौहान के वंशज और उप्पुगढ़ निवासी खेम सिंह चौहान बताते हैं कि इस ऐतिहासिक गढ़ में टिहरी झील बनने के बाद ये स्थान और रमणीक हो गया है. लेकिन पर्यटन विभाग और राज्य सरकार की लापरवाही के कारण ये स्थान अब वीरान हो चुका है. वे आगे कहते हैं कि कफ्फू चौहान की वीरता के कसीदे मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक कई मंचों पर कर चुके हैं. लेकिन, जब उप्पुगढ़ के विकास की बात उठती है तो कोई सामने नहीं आता.

इस मामले में स्थानीय पर्यटन अधिकारी सूरत सिंह राणा का कहना है कि पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने 52 गढ़ों के बारे में जानकारी मांगी है ताकि इनका डेवलपमेंट किया जा सके, जैस तरह के निर्देश सरकार से मिलेंगे उसी आधार पर काम होगा.

Intro:टिहरी पैकेज

पर्यटन बिभाग के उदासीनता के कारण बीर भड़ कफ्फु चौहान का गढ़ का नही हो पाया विकास,बीर भड़ कफ्फु चौहान के बंशजो ने की सरकार से इस गढ़ को डेवलपमेंट करवाने की मांग


16वी सदी के गढवाल मे 52 गढो के उप्पुगढ मे पराक्रमी बीर योद्धा नरेष कप्फुं चैहान के ऐतिहासिक धरोवर को नही रख पाया सजोंकर जिससे वर्तमान मे दुखी हे कप्फुं चैहान के बषंज। लेकिन इतिहास एवं पुरातत्व से जुडे इस स्थल की ओर न तो पर्यटन बिभाग ओर न ही टिहरी बाधं परियोजना ओर न ही उतराखण्ड सरकार का ध्यान इस ओर आर्कशित हो पाया। यदि इस ओर ध्यान नही दिया गया तो कुद बर्शो के भीतर इतिहास को सजोंने वाला यह स्थान गुम हो जायेगा।Body:टिहरी जिले के उप्पुगढ पहले गढवाल का हिस्सा 16वी सदी से पूर्व 52 गढो में बिभाजित था इन गढो की सत्ता का सचांलन स्वंम बीर भड किया करते थे लेकिन इन गढो मे अक्रमण होते रहे लेकिन इतिहास बताता हे कि यह के लोगो ने कभी भी बिपरित परिस्थितियो मे कभी भी पराधीनता स्वीकार नही की इसके लिये चाहे इन्हे कितनी भी बडी कुर्बानी देनी पडीं। इस बीर भूमि के रणबांकुरो मे एक था कप्फु चोहान जिसने अपनी प्रजा की आजादी के लिये राजा अजयपाल की पराधीनता स्वीकार नही की
गढवाल के पवांर बष का 37वां राजा अजयपाल जब चांदपुर गढ के बिस्तार के लिये गढवाल के अन्य 52 गढो को अपने राज्य में मिलाने के लिये चल पडा था उस समय राजा अजयपाल के पास मात्र 4 गढ थे ओर अन्य गढो को अपने राज्य मे मिलाने के लिये अन्य गढो मे आक्रमण करने के बाद जीतकर इन गढो को अपने राज्य में मिलाते हुये आगे बढ रहा था। ओर इन 52 गढो मे आखिरी गढ उप्पुगढ था साथ ही यह गढ ऐसा गढ था जिसे जीतने के लिये राजा अजयपाल की भरी भरकम सेना को लोहे के चने चबाने पडे। कई लोग बताते हे कि राजा अजयपाल ने दीपावली के कुछ दिन पहले उप्पुगढ पर आक्रमण किया था जब उप्पुगढ में दीवाली मनाने के तैयारी चल रही थी
राजा अजयपाल ने एक गढ जीत कर सम्पूर्ण गढवाल पर अपना अधिकार कर लिया था लेकिन अब राजा अजयपाल की नजर टिहरी के पास उप्पुगढ पर थी इस गढ का गढपति पराक्रमी बीर योद्धा कप्फुं चैहान था जिसकी बीरता के गाथे चारो तरफ फैली हुई थी। तो राजा अजयपाल ने रात मे भागीरथी नदी के के बायंे तरफ नदी के पार रमोलगढ की सीमा से आक्रमण कर दिया तो कप्फुं चैहान को पता चलते ही वह युद्ध मे जाने की तैयारी करने लगा तो उस समय कप्फुं चैहान की मां ने युद्ध मे जाते समय कप्फुं चैहान को कहा-जाओ बेटा युद्ध भूमि में बिजय होकर लौटना-माता दुर्गा तुम्हारी रक्षा करेगी। बीरमाता ने कप्फुं चैहान को तिलक लगाकर युद्ध के लिये रवाना किया
कहते हे कि कप्फुं चैहान की माता ने कप्फुं चैहान के सरदार से कहा था कि-यदि मेरा बेटा युद्धभूमि मे बीरगति को प्राप्त होगा तो इसकी खबर मुझे कर देना कप्फुं चैहान जेसे ही मेदान मे युद्ध करने लगा तेा कप्फुं चैहान अजयपाल की सेना पर टूट पडे ओर बुरी तरह से अजयपाल की सेना को काटने लगे। कहते हे कि कप्फुं चैहान ने अजयपाल की सेना को मारते2 उप्पुगढ से 15 किलो मीटर दूर अठूर जोगियाणा तक भगाकर ले गया ओर खून की नदिया बहने लगी,इसी दौरान उप्पुगढ में कप्फुं चैहान के सरदार ने कप्फुं चैहान की माता को झूठी सूचना दे दी कि कप्फुं चैहान युद्ध मे कही नही दिखाई दे रहे हे यानि कप्फुं चैहान बीरगति को प्राप्त हो गये हे। यह खबर सुन कर उप्पुगढ में हंहाकार मच गया तो कप्फुं चैहान की माता ने उप्पुगढ में आग लगा दी ओर सबसे पहले अपने आप को आग लगा दी इस सूचना को सुनकर उप्पुगढ के बीर कप्फुं चैहान की रानी सती हो गयी उधर कप्फुं चैहान युद्ध से बिजयी से खुष होकर जैसे ही अपने गढ उप्पु पहुचां तो उप्पुगढ आग की भेंट चढ चुका था ओर जब उसने अपनी माता की मोत तथा अपनी रानियो की सती होने की खबर सुनी तो वह मुर्छित हो गया तो अजयपाल के कुछ बचे हुई सेना ने कप्फुं चैहान र्मुिर्छत अवस्था मे गिरप्तार कर लिया
इतिहासकारो का कहना हे कि कई जगह यह भी लिखा हुआ मिलता हे कि जब कप्फुं चैहान अपनी माता ओर रानियो की मौत के बारे मे सुनता हे तो कप्फुं चैहान षेाकाकुल अवस्था में अपनी सिर के बाल जटा यानि लटुली काट देता हे ओर सिर मुडवा देता हे कप्फुं चैहान को देवी का वरदान प्राप्त था कि जब तक कप्फुं चैहान के सिर मे बालो की लटुली यानि लम्बी जटा रहेगी तब तक कप्फुं चैहान को कोई नही हरा सकता।
राजा अजयपाल केी सेना ने पकड कर कप्फुं चैहान से अपनी अधीनता स्वीकार करने को कहा तथा साथ ही उसे अपनी सेना मे सेनानायक बनने को कहा तो कप्फुं चैहान ने मना कर दिया ओर कप्फुं चैहान की एक ही रट थी कि मुझे गुलामी हरगिज मंजूर नही हे।
राजा अजयपाल ने कप्फुं चैहान को सजा-ए-मौत सुना दी ओर अजयपाल ने अपनी सेना को कहा कि कप्फुं चैहान की गर्दन इस प्रकार से काटी जाय कि ंइसका सिर सीधे मेरे चरणो मे आ गिरें,यह सुनकर इस पराक्रमी बीर योद्धा नरेष कप्फुं चैहान ने जमीन से दो मुठठी रेत उठाकर अपने मुहं में रेत भर ली तो जेसे ही कप्फुं चैहान की गर्दन पर तलवार से वार किया तो कप्फुं चैहान की गर्दन दूसरी तरफ जा गिरी ओर मुह मे भरी रेत अजयपाल के मुह मे जा गिरी,तब बीर योद्धा कप्फुं चैहान ने अपनी जिन्दगी को मौत के हवाले कर दिया लेकिन कप्फुं चैहान ने गुलमी का चोंला नही पहना
,राजा अजयपाल ने इस घटना से प्रभाबित होकर खुद कप्फुं चैहान का राजा की भांन्ति भागीरथी नदी के किनारे दहा सस्कार किया ओर कहा कि मेने गढवाल से एक महान बीर यौद्धा को खो दिया हे ओर यह गलत मारा गया।

राजा अजयपाल के इतिहास पर नजर डाले तो यह सोमपाल वंष का पहला राजा हुआ था ओर इसी का बंषज राजा अजयपाल था। सन 1512 मे अजयपाल ने अपनी राजधानी देवलगढ मे स्थानांतरित की अैार 1517 में उसने अपनी राजधानी श्रीनगर बनायी इस दौरान उसने गढवाल के 52 गढो को जीतकर एक बडा सामा्रज्य की स्थापना की।
बीओ 2- आज उप्पुगढ मे जो भी चैहान जाति के लोग हे यह सब कप्फुं चैहान के बंषज हे कहते हे कि कप्फुं चैहान सहित दो भाई थे कप्फुं चैहान का भाई गूगा था जो आक्रमण के समय दूसरे गावो मे जा रखा था इस लिये कप्फुं चैहान का गूगा भाई बच गया जिसकी यह सन्ताने हुई हे।
बीओ 3-लेकिन इस 52 गढो की गाथा स्थानीय गीतो मे नरेन्द्र सिहं नेगी ने खूब गाया हे जिस गीत के बोल इस प्रकार हे-बीरो भडो कू देष,बावन गढू कू देष,जै जै बद्री केदार,गढ भूमि गढ नरेष,उप्पुगढ कू जवान,धन रे कप्फुं चैहान। काटी तै सिर नि झुकी,कनु रै हुलू स्वाभिमान,

Conclusion:
बाईट-1-खेम सिहं चैहान उप्पु निवासी कप्फुं चैहान के बंषज कहते हे कि इस गढ मे एक सुरगं थी उस सुरगं में बर्तन को रस्सी से बाध कर इस सुरगं में डाल कर पानी निकालते थे क्योकि इस सुरगं का अन्तिम छोर सीधे नदी मे मिलता था तथा सुरक्षा को देखते हुये इस सुरगं को उपर से पत्थर से ढक रखा हे। ओर टिहरी झील बाने के बाद यह स्थान रमणीक हो गया है और यह पर कफ्फु के बीर गाथा सुनकर यह पहुंचते ही,जो पर्यटन बिभाग के अभाव में बिरान पडा है इनके बंशज का कहना है कि इस महान बीर भड़ के बारे के मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल तक हर मंच ओर जगह 2 चर्चा करते है लेकिन इस जगह के डेवलपमेंट करने के लिए कोई कदम नही उठा रहे है हमारी मांग है कि इसको डेवलपमेंट करे जिससे पर्यकन को बढ़ावा मिलेगा,

बाइट-2-सुरेंद्र नेगी ग्रामीण

इनका कहना हे कि अगर पर्यटन बिभाग ओर पुरातत्व बिभाग इस ऐतिहासिक धरोवर को सुरक्षित रखने का कार्य करती तो अब तक इस बचे हुये गढ को पर्यटको के लिये अच्छा केन्द्र बनता साथ ही इस गढ के नीचे से बहुत बडे रूप मे जमीन खिसक रही हे परन्तु इस तरफ किसी का ध्यान नही गया साथ ही इस बीर योद्धा की मूति को कुछ षरारती लोगो द्धारा नुकसान पहुचायी गई हें।लेकिन इतिहास एवं पुरातत्व से जुडे इस स्थल की ओर न तो पर्यटन बिभाग ओर न ही टिहरी बाधं परियोजना ओर न ही उतराखण्ड सरकार का ध्यान इस ओर आर्कशित हो पाया। यदि इस ओर ध्यान नही दिया गया तो कुछ बर्शो के भीतर इतिहास को सजोंने वाला यह गढ स्थल गुम हो जायेगा। ओर ठीक इसके पीछे की जमीन बुरी तरह से खिसक रही हे जिस पर सरकार का कोई ध्यान नही दे रही हे।ओर कप्फू चोहान की जो मुर्ति उप्पुगढ में बनाई गई हें वह भी टूटी ुूटी अवस्था में हें किसी शरारती तत्वो ने इस मुर्ति को खराब कर रखा हें इसको सजोनो के लिये किसी ने ध्यान नही दिया हे ना सरकार ने ओर ना जिला प्रशासन।

बाइट सूरत सिंह राणा
इनका कहना है कि पर्यटन मंत्री ने 52 गढ के बारे में जानकारी मांगी है ताकि निक डेवलपमेंट किया जा सके जैसे ही सरकार से हमे निर्देश मिलेंगे उसी आधार पर काम होगा
Last Updated : Nov 21, 2019, 10:43 AM IST
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